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Friday, April 20, 2012

ॐ साईं राम


२५ जनवरी १९१२-


प्रातः माधवराव देशपाँडे ने मुझे उठाया और कहा कि उन्हें मुझे एक बार से ज़्यादा बार आवाज़ देनी पडी तभी मैं जागा। मैने प्रार्थना की और काँकड आरती में सम्मिलित हुआ। साईं बाबा चुपचाप मस्जिद की ओर गए। वापिस आकर मैंने उपासनी, बापू साहेब जोग, भीष्म और श्रीमति कौजल्गी के साथ परमामृत का पठन किया। हमने 'महावाक्य विवेक' के विषय में अध्याय पूरा किया। फिर हमने दो बार साईं महाराज के दर्शन किए, एक बार जब वे बाहर जा रहे थे, और दूसरी बार जब वे मस्जिद लौटे।


दोपहर की आरती रोज़ की तरह सम्पन्न हुई और साईं साहेब ने मुझे कई बार चिलम का धुआँ दिया। भोजन के बाद मैंने कुछ देर आराम किया और फिर हमने रामायण पढी। दीक्षित ने यह पठन किया। इसके बाद हम साईं बाबा के दर्शन के लिए गए। वे प्रसन्न भाव में थे। रात को वाडे में आरती, भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई। मैं यह बताना चाहता हूँ कि शाम की सैर के समय साईं बाबा ने मुझे श्रीमति लक्ष्मीबाई कौजल्गी की सम्पूर्ण जीवन गाथा सुनाई। मुझे पता है कि वह सब सही था क्योंकि मुझे उसके बारे में पहले से ज्ञात था।


जय साईं राम