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Wednesday, April 25, 2012

ॐ साईं राम


२ फरवरी १९१२-


मैं काँकड आरती के लिए उठा और उसके बाद हमने अपनी पँचदशी की जमात शुरू की। किन्तु पता नहीं क्यों, मैं पहले पँचदशी के विषय में थोडा बोला और फिर उसका पठन शुरू किया। यह अपने विषय की लगभग सर्वश्रेष्ठ कृति है, उससे बेहतर और कोई नहीं है। साईं महाराज के बाहर जाने से पूर्व मैं उनका दर्शन करने के लिए मस्जिद में गया और साठे वाडा तक उनके साथ चला। इसके पश्चात दोपहर ही आरती में सम्मिलित हुआ।


आज मुझे अमरावती से एक पत्र प्राप्त हुआ जिसमें मुझे अपनी वकालत पर लौट आने के लिए कहा गया था। मैंने माधवराव देशपाँडे से साईं महाराज से आज्ञा लेने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि वह ऐसा करेंगे।


जय साईं राम