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Tuesday, April 10, 2012

ॐ साईं राम

१२ जनवरी १९१२-


प्रातः जल्दी उठ कर प्रार्थना करने के बाद दिनचर्या प्रारंभ की ही थी कि नारायण राव के पुत्र गोविंद और भाई भाऊ साहेब आ गए। वे कुछ समय पूर्व हौशँगाबाद से अमरावती आए थे, किन्तु मुझे और मेरी पत्नि को वहाँ ना पा कर हम से मिलने यहाँ आ गए। स्वभाविक रूप से परस्पर मिल कर हम बहुत प्रसन्न हुए और बैठ कर बातें की। योगवशिष्ठ का पठन कुछ देर से शुरू हुआ, क्योंकि बापू साहेब जोग व्यस्त थे।


हमने साईं महाराज के मस्जिद से बाहर जाते हुए और फिर वापिस आते हुए दर्शन किए। उनके मुख पर अद्भुत तेज था और उन्होंने कई बार मुझ पर चिलम का धुआँ फेंका। आश्चर्यजनक रूप से मेरे मन की कई शँकाए दूर हो गईं और मेरा मन आनन्द से भर गया। दोपहर की आरती के बाद हमने खाना खाया और मैंने कुछ देर आराम किया। दीक्षित मस्जिद में ज्यादा देर तक रुके अतः उन्होंने रामायण पढना देर से शुरू किया। हम एक अध्याय भी पूरा नहीं पढ पाए क्योंकि वह बहुत लम्बा और कठिन भी था। इसके पश्चात हम मस्जिद में साईं महाराज के दर्शन के लिए गए। वहाँ दो लडकियाँ सँगीत के साथ गाना गा रही थीं और नाच रही थीं। रात को शेज आरती में सम्मिलित हुए। साईं महाराज (मेरे पुत्र) बलवन्त के प्रति अत्यँत दयालु हैं। उन्होंने उसे बुलवाया था और पूरी दोपहर उसके साथ बिताई।


जय साईं राम