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Wednesday, April 25, 2012

ॐ साईं राम


४ फरवरी १९१२-


प्रातः मैं जल्दी उठा, काँकड आरती में सम्मिलित हुआ और अपनी प्रार्थना पूर्ण की। जब मैं नहा रहा था तब दो लोग नारायण राव बामनगाँवकर को पूछते हुए आए। वे लिंगायत शास्त्री थे। ज्येष्ठ व्यक्ति शिवानन्द शास्त्री के नाम से जाना जाता है। उनके साथ दो स्त्रियाँ भी थीं। ये स्त्रियाँ ब्राह्मण थीं। उनमें से बडी स्त्री का नाम ब्रह्मानन्द बाई था। लगभग तीन वर्ष पूर्व वह नासिक में एक लिंगायत स्त्री से मिली जिसका नाम निजानन्द बाई था। वह एक उच्च श्रेणी की योगिनी थी। उसने ब्रह्मानन्द बाई को उपदेश दिया था।

हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और फिर उस समय दर्शन किए जब वे मस्जिद लौटे। ब्रह्मानन्द बाई ने उनकी पूजा की और बडी नज़ाकत से दो आरतियाँ गाईं। दोपहर की आरती के बाद मैंने भोजन किया और कुछ देर लेटा। उसके बाद दीक्षित ने पारायण किया, फिर हम शाम की सैर के समय साईं महाराज के दर्शन के लिए गए। रात को वाडे की आरती के बाद दीक्षित का पुराण और भीष्म के भजन हुए। दोनों स्त्रियों- ब्रह्मानन्द बाई और उनकी साथी ने
अति सुन्दर भजन गाए और हमने भजनों का बहुत आनन्द लिया। शिवानन्द शास्त्री ने भी गाया। शास्त्री और स्त्रियाँ नासिक से आए हैं। वे वहीं के स्थायी निवासी हैं।


जय साईं राम