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Saturday, May 12, 2012

ॐ साईं राम


३ मार्च, रविवार, १९१२-

मैंने काँकड आरती में भाग लिया। साईं बाबा प्रसन्नचित्त लग रहे थे और वे बिना कटु शब्दों का प्रयोग किए मस्जिद में गए। अब्दुल्ला एक लटकते हुए लैम्प को उतारने की कोशिश कर रहा था पर उसने गलती से उसे वैसे ही छोड़ दिया और वह ज़मीन पर गिर कर टुकड़े टुकड़े हो गया। मुझे लगा कि शायद साईं बाबा क्रोधित होंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने उस ओर कोई ध्यान नहीं दिया।

हमने अपनी पँचदशी की सँगत की, हम मेरे कमरे में बैठे क्योंकि बरामदे में बहुत हवा थी। हमने साईं बाबा के बाहर जाते हुए और उनके लौटने के बाद दर्शन किए। उन्होंने कहा कि मैं पिछले जन्म में दो या तीन वर्ष के लिए उनके साथ था, और फिर राजसी सेवा में चला गया, जबकि घर में आराम के सारे साधन मौजूद थे। मैं इसके आगे का विवरण भी जानना चाहता था परन्तु साईं बाबा ने आगे नहीं बताया।

दोपहर की आरती रोज़ की तरह सम्पूर्ण हुई और दोपहर के भोजन के बाद मैं थोडी देर लेटा और फिर हमने पँचदशी की सँगत को आगे बढाया। हम साईं महाराज की शाम की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गए। रात को वाड़ा आरती के बाद भीष्म के भजन हुए। आज धूलिया से कोई एक डा॰ रानाडे आए हैं। उन्होंने कहा कि वह उस रानाडे के सँबँधी हैं जो कि बाबा महाराज के सामने रहता था। उन्होंने यह भी कहा कि वह मुझसे सिंहागद में मिले थे। यहाँ बम्बई के एक सज्जन हैं जोकि जाति से पालसे हैं, उन्होंने कहा कि वह कुछ वर्ष पूर्व मेरे पास अमरावती आए थे।


जय साईं राम