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Thursday, June 28, 2012


ॐ साईं राम


१७ जून, सोमवार, १९१२-
अमरावती-


मैं प्रातः जल्दी उठा और हॅाल में बैठ कर दो याचिकाँओ के ज्ञापन बनाए और बाद में श्रीमान असगर हुसैन की सहायता से यिओतवाल के मुवक्किल के लिए याचिका बनाई। इसमें ही पूरी सुबह चली गई। दोपहर की आरती कर बाद मैं थोड़ी देर लेट गया पर मुझे आराम करने के लिए मुझे बहुत बँद और गर्म लगा। अतः मैं उठ गया और बैठ कर पढ़ने लगा। दोपहर को बारिश शुरू हो गई और रात होने तक गिरती रही। करँजा से एक आदमी आया और उसने एक लम्बी कहानी सुनाई कि किस प्रकार कुछ युवकों ने एक सँस्था अन्धे, लँगड़े और गरीबों की सहायता के लिए बनाई, किस प्रकार उन्होंने छोटी सी धन राशी एकत्रित की और उसे पहले बापू साहेब घुडे, फिर जोधा के और फिर एक पलोसकर के पास रक्खा लेकिन कभी भी सँतोषजनक रूप से उसका हिसाब नहीं दे पाए। पुलिस को उसकी भनक लग गई और वह अब पूछताछ कर रही है। बाद में वी॰ के॰काले, असनारे, गोडबोले और हमारे अन्य लोग आए और हम बैठ कर बात करने लगे। मुधोलकर के विरूद्ध मुकद्दमा दायर कर दिया गया है। वह हिसाब किताब के सिलसिले में ही है। 


इसके पश्चात करखानिस आए। मैंनें उन्हें माधवराव देशपाँडे द्वारा साईं महाराज के कहने पर लिखा गया पत्र पढ़ने के लिए दिया। उसने कहा कि वह साईं महाराज के प्रति गहन श्रद्धा रखता है और उनकी हर बात मानेगा सिवाए अपनी पत्नि के मामले को ले कर। मैंने उसे जा कर साईं महाराज के दर्शन करने को कहा। उसने कहा कि वह अभी ऐसा नहीं करेगा। और अँत में मैंने उसे रोज़ साईं महाराज की पूजा करने के लिए कहा और वह ऐसा करने को तैयार हो गया।


उसके जाने के बाद ब्वाजी आए और हमने बैठ कर बात की। वह अपने साथ एक मोची को लाए, उसने मेरे पैर का नाप लिया और कहा कि वह मेरे लिए एक चप्पल बनाएगा। हालाँकि बहुत बारिश नहीं हुई थी पर हमें अच्छा और ठँडा लगा।


जय साईं राम