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Thursday, June 28, 2012

ॐ साईं राम


१३ मार्च, बुधवार, १९१२-


मैंने काँकड़ आरती में हिस्सा लिया और साईं साहेब अत्यँत प्रसन्नचित्त दिखाई दिए। श्रीमान दीक्षित लगभग प्रातः ९ बजे लौटे। वह अकेले ही आए हैं, पत्नि को वहीं छोड़ दिया है। हम बैठ कर बात करने लगे और पँचदशी की सँगत नहीं कर पाए। काफी अजीब तरीके से मुझे नींद आ गई और मैं लेट गया। हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए और बाद में मस्जिद में भी। उन्होंने एक लम्बी कहानी सुनाई जिसका सार यह था कि एक वृद्ध पाटिल उनके पास आया करता था, कि कोई चार और बाद में लगभग बारह गोविनदास ( जासूस ) उस पर नज़र रखते थे, कि उस व्यक्ति और उन जासूसों में कहा सुनी हो गई। साईं साहेब ने वृद्ध का साथ दिया, उसके खेत में गए और जब एक बार जासूसों ने वृद्धपर हमला किया तो उनको मारा भी। अन्ततः वह बूढ़ा व्यक्ति उनसे निपटने के लिए एक बड़े शहर में स्थानाँतरित हो गया, कि साईं साहेब ने हस्तक्षेप किया और उसे उनसे छुड़ाया। 

बाबा पालेकर को मुझे कल या परसों ले जाने की अनुमति प्राप्त हो गई। दोपहर में हमने अपनी पँचदशी की सँगत की और साईं साहेब की शाम की सैर के समय उनके दर्शन किए। रात्रि में रामायण और स्वामीभाव दिनकर का पाठ हुआ और भजन हुए।


जय साईं राम