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Thursday, June 28, 2012


ॐ साईं राम


१७ मार्च, रविवार, १९१२-


मैं प्रातः थोड़ा देर से उठा और प्रार्थना के बाद अपनी पुरानी जीवन शैली में लौटने का प्रयास किया। कुछ मुव्क्किल आए और कुछ लोग मुझसे मिलने आए। मैंने बैठकर उनसे बात की। मैंने कुछ पत्र लिखे। डा॰ शाहानी आए और मेरे सुझाव पर अगले बुधवार को दुर्गे जोशी की बाईं आँख की शल्यचिकित्सा करने को तैयार हो गए। अकोला में एक बड़े मुकदमें का प्रस्ताव है। गोरे भी कोनकन के एक ब्राहम्ण के साथ आए। दोपहर के भोजन के तुरँत बाद श्रीमान नाटेकर जो हमसा के नाम से जाने जाते हैं, अकोला से पुरोहित के साथ आए। उन्होंने ऐसा करके बड़ी कृपा की। वह एक धार्मिक व्यक्ति हैं, यौगिक तपस्या करते हैं और उनन्त शक्तियाँ प्राप्त कर चुके हैं। हम उनके साथ बात करने बैठे। हिमालय में उनके अनुभव अद्भुत हैं, और मैं उनके बारे में सुनते हुए कभी नहीं थकता। 

वी॰के॰काले और करँदिकर हमारे थियोसोफिक समाज में जाने के लिए आए पर हमसा के मेरे साथ होने के कारण मैं नहीं गया। शाम होते होते हमसा थोड़ी देर हवा खाने गए। कल और परसों उनको थोड़ा बुखार और पेट दर्द था। उन्हें आज भी वह तकलीफ है। मैं बामनगाँवकर, वामनराव जोशी, भाऊ दुरानी, बाबा पालेकर, श्रीराम और अन्य लोगों के साथ छत पर बातें करने बैठा। हमसा कल चले जाना चाहते हैं।


जय साईं राम