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Saturday, May 12, 2012

ॐ साईं राम


१७ फरवरी १९१२, शनिवार-


मैं प्रातः जल्दी उठा, प्रार्थना की, और हमेशा की तरह उपासनी, बापू साहेब जोग, कल्याण के कुन्ते शास्त्री और मोरेगाँवकर के साथ पँचदशी के पाठ की सँगत में सम्मिलित हुआ। आज हमने तीसरा अध्याय पूरा किया। हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और जब वे लौटे, तब दर्शन किए। वे अत्यँत प्रसन्नचित्त थे और ठिठोली कर रहे थे।


दोपहर की आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई और उसके बाद हमने भोजन किया। श्रीमान दीक्षित अपने पुत्र के मुँज (मुँडन) के लिए नागपुर जाना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि इसके लिए वे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को साथ ले जाऐं, परन्तु सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि साईं महाराज क्या आदेश देते हैं।


दोपहर को दीक्षित की रामायण हुई और हमने अपनी परमामृत की सँगत में अच्छी प्रगति की। बाद में साईं महाराज की सैर के समय हमने उनके दर्शन किए, फिर वाड़ा आरती और शेज आरती हुई। शेज आरती में मेरे हाथ बड़ा पँखा आया। हमारे वापिस आने के बाद कल्याण के कुन्ते शास्त्री नें कीर्तन किया। उन्होंने उत्तर गोग्रहन की कहानी सुनाई। वह एक बूढे व्यक्ति हैं, और उनकी आयु , जो कि लगभग ८० वर्ष है, को देखते हुए उनकी सहनशक्ति, जोश और अन्य गुण काबिले तारीफ और विलक्षण हैं। दीक्षित की रामायण और भीष्म के भजन भी हुए।


जय साईं राम