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Saturday, May 12, 2012

ॐ साईं राम


१६ फरवरी १९१२, शुक्रवार-


मैं काँकड आरती में सम्मिलित हुआ। साईं साहेब ने अत्यँत ईश्वरीय प्रभाव के साथ कटु शब्दों का प्रयोग भी किया। हमने प्रातःकालीन प्रार्थना मे बाद पँचदशी के पाठ की सँगत की। मेरी पत्नि और अन्य लोग कोपरगाँव नहीं जा सके क्योंकि उन्हें जाने के लिए कोई ताँगा नहीं मिला। हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए।


श्रीमान मोरगाँवकर आए और उन्होंने परा पूजा के अनुवाद की प्रतिलिपियाँ बाँटी। यहाँ कल्याण भिवँडी के एक शास्त्री हैं। वे बापूसाहेब जोग के साथ रह रहे हैं, और बहुत शाँत भले व्यक्ति हैं। उन्होंने शिवरात्री के उपलक्ष्य में व्रत रखा। दोपहर को दीक्षित की पुराण हुई और उसके बाद हमने परमामृत के पाठ की सँगत की और अच्छी प्रगति की। हमने दोपहर की आरती के समय साईं साहेब के दर्शन किए और फिेर उनकी शाम की सैर के समय भी। वे अत्यँत प्रसन्नचित्त थे। वाड़ा आरती के बाद हमेशा की तरह पुराण और भजन हुए।


जय साईं राम