ॐ साईं राम!!!
३१ दिसम्बर , १९११~~~
सुबह मैं बहुत जल्दी उठ गया, प्रार्थना की, और बरामदे में टहल रहा था जब हंस नीचे आये और कहा कि नह ठीक से सो नहीं पाये और खंडोबा मंदिर गये , फिर वे उस घर में जनान फिलहाल राधाकृष्णाबाई रहती हैं , वहां उन्हें पूजन करते हुए सुनाने की आशा से गये लेकिन वहां दिन शुरू होने का कोइ भी लक्षण नहीं था इसलिए वो गाँव के फाटक तक घुमाने को गये | बाद में वे फिर से राधाकृष्णाबाई से मिले | उन्होंने ने उनकी अच्छी तरह सहायता की | फिर उन्होंने स्नान किया और साईं नाथ महाराज के द्वारा भेजे गए प्रसाद में से नाश्ता किया | मैं उनके साथ खड़े खड़े बात चीत करता रहा | वे फिर से राधाकृष्णाबाई के पास से विदा कहने गये और उन्होंने उन्हें प्रसाद के रूप में धोती और कुर्ता दिया | उसके बाद नहान तीन और अन्य युवक , जो उनके साथ थे , उन लोगों के साथ वे बंबई लौट गये | उनमें से एक का नाम रेगे था |इन सब कारणों से मुझे हर चीज़ में देर हुई , और फिर हजामत करने वाले ने और भी देर करा दी | मैंने साईं बाबा के बाहर जाते हुए दर्शन किए लेकिन उन्होंन किसी को भी नज़दीक आकर प्रणाम नहीं करने दिया | बाद में मैं मस्जिद गया और वहां पर दोपहर की पूजा नें सम्मलित होने के लिए मैं बैठा रहा | आरती के समय सभी पुरुषों को चबूतरे से नीचे खुले आँगन में खडा होना पडा और महिलाएं मस्जिद में रही | व्यवस्था बहुत अच्छी थी | लौटने पर मैं कोपरगावं के मामलेदार से बात करने बैठा जो यहाँ आये हुए हैं | बाद में दहाणु के मामलेदार श्री देव आए | नानासाहेब चांदोरकर आरती से पहले लौटे |हमारा नाश्ता रोजाना की तरह लगभग दो बजे हुआ |इसके बाद मैं आज मिले हुए अखबारों को पड़ने बैठा | शाम ढलने पर मैं मस्जिद गया लेकिन साईं महारां ने जल्दी ही उदी दे दी | इसीलिये मैं नयी इमारत के नीवं के चबूतरे पर गुजराती शास्त्री , जो गोवर्धनदास के साथ हैं , के साथ बातचीत करने बैठा | हमने साईं नाथ महाराज को हर रोज़ की तरह जब वो सैर पर निकले नमन किया और बाद में शेज आरती के समय | उसके बाद हमने भीष्म के भजन सुने और दीक्षित के रामायण|
जय साईं राम!!!
३१ दिसम्बर , १९११~~~
सुबह मैं बहुत जल्दी उठ गया, प्रार्थना की, और बरामदे में टहल रहा था जब हंस नीचे आये और कहा कि नह ठीक से सो नहीं पाये और खंडोबा मंदिर गये , फिर वे उस घर में जनान फिलहाल राधाकृष्णाबाई रहती हैं , वहां उन्हें पूजन करते हुए सुनाने की आशा से गये लेकिन वहां दिन शुरू होने का कोइ भी लक्षण नहीं था इसलिए वो गाँव के फाटक तक घुमाने को गये | बाद में वे फिर से राधाकृष्णाबाई से मिले | उन्होंने ने उनकी अच्छी तरह सहायता की | फिर उन्होंने स्नान किया और साईं नाथ महाराज के द्वारा भेजे गए प्रसाद में से नाश्ता किया | मैं उनके साथ खड़े खड़े बात चीत करता रहा | वे फिर से राधाकृष्णाबाई के पास से विदा कहने गये और उन्होंने उन्हें प्रसाद के रूप में धोती और कुर्ता दिया | उसके बाद नहान तीन और अन्य युवक , जो उनके साथ थे , उन लोगों के साथ वे बंबई लौट गये | उनमें से एक का नाम रेगे था |इन सब कारणों से मुझे हर चीज़ में देर हुई , और फिर हजामत करने वाले ने और भी देर करा दी | मैंने साईं बाबा के बाहर जाते हुए दर्शन किए लेकिन उन्होंन किसी को भी नज़दीक आकर प्रणाम नहीं करने दिया | बाद में मैं मस्जिद गया और वहां पर दोपहर की पूजा नें सम्मलित होने के लिए मैं बैठा रहा | आरती के समय सभी पुरुषों को चबूतरे से नीचे खुले आँगन में खडा होना पडा और महिलाएं मस्जिद में रही | व्यवस्था बहुत अच्छी थी | लौटने पर मैं कोपरगावं के मामलेदार से बात करने बैठा जो यहाँ आये हुए हैं | बाद में दहाणु के मामलेदार श्री देव आए | नानासाहेब चांदोरकर आरती से पहले लौटे |हमारा नाश्ता रोजाना की तरह लगभग दो बजे हुआ |इसके बाद मैं आज मिले हुए अखबारों को पड़ने बैठा | शाम ढलने पर मैं मस्जिद गया लेकिन साईं महारां ने जल्दी ही उदी दे दी | इसीलिये मैं नयी इमारत के नीवं के चबूतरे पर गुजराती शास्त्री , जो गोवर्धनदास के साथ हैं , के साथ बातचीत करने बैठा | हमने साईं नाथ महाराज को हर रोज़ की तरह जब वो सैर पर निकले नमन किया और बाद में शेज आरती के समय | उसके बाद हमने भीष्म के भजन सुने और दीक्षित के रामायण|
जय साईं राम!!!