ॐ साईं राम!!!
३० दिसम्बर , १९११~~~
सुबह प्रार्थना के बाद मैंने दो पत्र लिखे- एक अपने पुत्र बाबा और दूसरा भाऊ दुर्रानी को , उन्हें यह बतलाने के लिए कि मेरा और दो महीने तक लौटना नहीं हो सकेगा| श्री नाटेकर राधाकृष्णाबाई के पास गये | ऐसा लगता है कि वे फिर बाहर गई थी | वे वहां बैठे और उन्होंने इतना सुकून और अच्छा अनुभव किया कि सारा दिन वहीं बैठे रहे| मैंने सुबह रामायण का पाठ किया और दोपहर को भागवत सुनी और सांझ ढलने से पहले साईं महाराज के पास गया | उन्होंने मेरे साथ बड़ा ही प्रेम पूर्वक व्यवहार किया , मुझे मेरे नाम से पुकारा और धैर्य के गुण का असर बढाने के लिए एक छोटी सी कहानी गड़कर सुनाई | उन्होंने कहाँ कि एक बार घूमते हुए वे औरंगाबाद गए और एक मस्जिद में बैठे हुए एक फकीर को देखा | जिसके पास इमली का बहूत उंचा दरख्त था , फकीर ने पहले उन्हें मस्जिद में घुसने नहीं दिया लेकिन आखिर में उनके वहां रहने पे राजी हो गया | वह फकीर रोटी के टुकड़े पर पुरी तरह निर्भर था जो उसे बूढी औरत दोपहर में देती थी | साईं महाराज उसके लिए भिक्षा मागंने के लिए तत्पर हुए और बारह साल तक उसे ढेर सारा खाना देते रहे और फिर वहां से जाने की सोची | बूढ़े फकीर ने जुदाई पर आंसू बहाए और उसको कोमल शब्दों में दिलासा देनी पढ़ी | साईं महाराज उसके पास चार साल बाद आए और उसे वहां ठीक ठाक पाया | वह फकीर फिर कुछ साल पहले यहाँ आया और चावड़ी में ठहरा |
माँ-बाबा फकीर ने देखभाल की | जो कहा गया उससे मैंने समझा कि साईं बाबा बारह साल पहले औरंगाबाद के फकीर को दीक्षा देने के लिए ठहरे और उसे आध्यात्मिक दुनिया में पूरी तरह जमाया | रात कू भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई | नाटेकर भी वहां आये और उन्होंने भी एक अध्याय पढ़ा|
जय साईं राम!!!
३० दिसम्बर , १९११~~~
सुबह प्रार्थना के बाद मैंने दो पत्र लिखे- एक अपने पुत्र बाबा और दूसरा भाऊ दुर्रानी को , उन्हें यह बतलाने के लिए कि मेरा और दो महीने तक लौटना नहीं हो सकेगा| श्री नाटेकर राधाकृष्णाबाई के पास गये | ऐसा लगता है कि वे फिर बाहर गई थी | वे वहां बैठे और उन्होंने इतना सुकून और अच्छा अनुभव किया कि सारा दिन वहीं बैठे रहे| मैंने सुबह रामायण का पाठ किया और दोपहर को भागवत सुनी और सांझ ढलने से पहले साईं महाराज के पास गया | उन्होंने मेरे साथ बड़ा ही प्रेम पूर्वक व्यवहार किया , मुझे मेरे नाम से पुकारा और धैर्य के गुण का असर बढाने के लिए एक छोटी सी कहानी गड़कर सुनाई | उन्होंने कहाँ कि एक बार घूमते हुए वे औरंगाबाद गए और एक मस्जिद में बैठे हुए एक फकीर को देखा | जिसके पास इमली का बहूत उंचा दरख्त था , फकीर ने पहले उन्हें मस्जिद में घुसने नहीं दिया लेकिन आखिर में उनके वहां रहने पे राजी हो गया | वह फकीर रोटी के टुकड़े पर पुरी तरह निर्भर था जो उसे बूढी औरत दोपहर में देती थी | साईं महाराज उसके लिए भिक्षा मागंने के लिए तत्पर हुए और बारह साल तक उसे ढेर सारा खाना देते रहे और फिर वहां से जाने की सोची | बूढ़े फकीर ने जुदाई पर आंसू बहाए और उसको कोमल शब्दों में दिलासा देनी पढ़ी | साईं महाराज उसके पास चार साल बाद आए और उसे वहां ठीक ठाक पाया | वह फकीर फिर कुछ साल पहले यहाँ आया और चावड़ी में ठहरा |
माँ-बाबा फकीर ने देखभाल की | जो कहा गया उससे मैंने समझा कि साईं बाबा बारह साल पहले औरंगाबाद के फकीर को दीक्षा देने के लिए ठहरे और उसे आध्यात्मिक दुनिया में पूरी तरह जमाया | रात कू भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई | नाटेकर भी वहां आये और उन्होंने भी एक अध्याय पढ़ा|
जय साईं राम!!!