OM SRI SAI NATHAYA NAMAH. Dear Visitor, Please Join our Forum and be a part of Sai Family to share your experiences & Sai Leelas with the whole world. JAI SAI RAM

Friday, September 24, 2010

Khaparde's Shirdi Diary~~~खापर्डे शिरडी डायरी~~~

ॐ साईं राम!!!

२९ दिसम्बर , १९११ ~~~

मुझे उठने में थोड़ी देर हुई और फिर श्री नाटेकर , जिन्हें हम 'हंस ' और स्वामी कहते हैं , के साथ मैं बात चीत करने के लिए बैठ गया | मैं पूजा वगैरह समय पर समाप्त नहीं कर पाया और साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन भी नहीं कर पाया | जब वे मस्जिद लौटे तब मैंने उनके दर्शन किए| हंस मेरे साथ थे | साईं महाराज बहुत अच्छे भाव में थे और उन्होंने एक कहानी शुरू की जो कि बहुत बहुत प्रेरक थी लेकिन दुर्भाग्य वश त्रिम्बक राव जिसे हम मारुति कहते है , ने अत्यंत मुर्खता वश बीच में ही टोक दिया और साईं महाराज ने उसके बाद विषय बदल दिया | उन्होंने कहा कि एक नौजवान था , जो भूखा था और वह लगभग हर लिहाज से जरूरतमंद था | वह नौजवान आदमी इधर- उधर घुमने के बाद साईं साहेब के पिता के घर गया और जहां उसका बहुत अच्छी तरह सत्कार हुआ और उसे जो भी चाहिए था वह दिया गया | लड़के ने वहां कुछ समय बिताया , मोटा हो गया , कुछ चीजे जमा कर ली , गहने चुराए , और इन सब का एक बंडल बना कर जहां से आया था वहीं लौट जाना चाहा | वास्तव में वः साईं साहेब के पिता के घर में ही पैदा हुआ था और वही का था लेकिन इस बात को नहीं जानता था | इस लड़के ने बंडल गली के एक कोने में डाल दिया लेकिन इससे पहले कि वे बाहर निकले , देख लिया गया | इसी लिए उसे देर करनी पडी | इस बीच में चोर उसके बंडल से गहने ले गए | ठीक निकलने से पहले उसने उन्हें गायब पाया इसी किए वह घर में ही रुक गया और कुछ और गहने इकठ्ठे किए और फिर चल पडा , लेकिन रास्ते में लोगो ने उसे उन चीज़ों को चुराने के संदेह में कैद कर लिया | इस मोड़ पर आकर कहानी का विषय बदल गया और वह अचानक ही रुक गयी |

मध्यान्ह आरती से लौटने के बाद मैंने हंस से मेरे साथ भोजन लेने का आग्रह किया और उसने मेरा निमंत्रण स्वीकार कर लिया | वह सीधा साधा बहुत ही भला आदमी हैं , और खाना खाने के बाद उसने हमें हिमालय में अपने भ्रमण के बारे में बता या , वह किस तरह मानसरोवर पहुचाँ , किस तरह उसने वहां एक उपनिषद का गायन सुना , किस तरह वहपद चिन्हों के पीछे गया , किस तरह वह एक गुफा में पहुचाँ , एक महात्मा को देखा , किस तरह उस महात्मा ने उसी दिन बंबई में हुई तिलक ही सना के बारे में बात की , किस पतः उस महात्मा ने उसे अपने भाई { बड़े सहपाठी } से मिलवाया , किस तरह आखिरकार वह अपने गुरु से मिला और ' क्रतार्थ ' हुआ | बाद में हम साईं बाबा के पास गए और मस्जिद में उनके दर्शन किए | उन्होंने आज दोपहर मेरे पास सन्देश भेजा कि मुझे यहाँ और दो महीने रुकना पडेगा | दोपहर में उन्होंने अपने सन्देश की पुष्टि की और फिर कहाँ कि उनकी ' उदी ' में महत अध्यात्मिक गुण है | उन्होंने मेरी पत्नी से कहाँ कि गवर्नर एक सरकारी नौकर के साथ आया और साईं महाराज की उससे अनबन हुई और उसे उन्होंने बाहर निकाल दिया और आखिरकार गवर्नर के साथ समझोता कर लिया | भाषा अत्यंत संकेतात्मक है इसीलिए उसकी व्याख्या करना कठिन है | शाम को हम शेज आरती में उपस्थित हुए और उसके बाद भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई |


जय साईं राम!!!