OM SRI SAI NATHAYA NAMAH. Dear Visitor, Please Join our Forum and be a part of Sai Family to share your experiences & Sai Leelas with the whole world. JAI SAI RAM

Monday, April 30, 2012

ॐ साईं राम


११ फरवरी १९१२-


प्रातः जब तक मैंने अपनी प्रार्थना समाप्त की, मैंने देखा कि श्री गडरे उठ गए थे, और मैं बैठ कर उनसे बातें करने लगा। उन्हें लौटने की अनुमति मिल गई और वह नासिक वापिस चले गए। हमने साईं महाराज के बाहर जाते समय दर्शन किए और अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत उपासनी, बापूसाहेब जोग और श्रीमति कौजल्गी के साथ की। नासिक जिले के श्री लेले, जो कि नासिक जिले के राजस्व निरीक्षक हैं, उन्होंने भी पाठ में भाग लिया। वह बहुत भले व्यक्ति हैं और साईं महाराज उन्हें बहुत पसँद करते हैं।


साईं महाराज के वापिस लौटने के बाद मैं रोज़ की तरह मस्जिद में गया और देखा कि बहुत से व्यक्ति वहाँ बैठे हैं। उनमें से अधिकतर अजनबी हैं। उनमें से एक अकोला पुलिस में हैं, वह मुझे देखते ही बोले कि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और नागपुर के बैरिस्टर श्री गोविन्द राव देशमुख के साथ नौकरी में पदभार ग्रहण कर लिया है।


दोपहर की आरती के बाद मैं कुछ देर के लिए लेट गया और फिर दीक्षित के रामायण पुराण में सम्मिलित हुआ। बाद में हम साईं महाराज की शाम की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गए और श्री लेले को वहाँ पाकर उनसे बातें करने लगे। शाम को वाडे में और बाद में शेज आरती, भीष्म का भागवत पाठ, और दीक्षित की रामायण हुई। शिवानन्द शास्त्री को आज लौटने की अनुमति नहीं मिली।


जय साईं राम
ॐ साईं राम


१० फरवरी १९१२-


प्रातः मैं काँकड आरती में सम्मिलित हुआ। गणपतराव को मेरे पुत्र बलवन्त के साथ सतारा जाने की अनुमति मिल गई।उस समय माधवराव देशपाँडे उनके साथ थे। मैंने, बापूसाहेब जोग, उपासनी और श्रीमति एल॰ कौजल्गी ने हमारी पँचदशी के पाठ की सँगत की, और उसके बाद मैं मस्जिद में गया। साईं बाबा बहुत प्रसन्न चित्त थे और उन्होंने कहा कि उनकी टाँग उनके शरीर से अलग हो गई थी, कि वे अपने शरीर से तो उठ सकते हैं पर अपनी टाँग नहीं उठा सकते। उन्होंने कहा कि उनका तेली से झगडा हो गया था, कि जब वे युवा थे तब पारिवारिक उद्देश्य से उन्होंने धन कमाया और महाजन को ऋण चुकाने के लिए सहमत हो गए। पर उन्हें पता चला कि वे काम नहीं कर सकते अतः उन्होंने अपनी आँखों में भिलाँवा डाला और शरीर पर शार लगाया और बीमार हो गए। वे एक वर्ष के लिए बिस्तर पर थे, पर जैसे ही वे ठीक हुए, उन्होंने दिन रात काम किया और अपना ऋण चुका दिया।


उन्होंने बैठकर बडी मधुरता से बातें कीं पर दोपहर की आरती के समाप्त होते होते वे बेचैन दिखाई देने लगे। नासिक के अधिवक्ता श्री गडरे यहाँ हैं। मैं उनसे दीक्षित वाडे में मिला और बैठ कर बातें कीं। मैं उन्हें पहले से जानता हूँ। श्रीमान दीक्षित ने दोपहर को और रात को रामायण पढी। शाम को भीष्म के भजन हुए। गणपतराव और मेरा पुत्र बलवन्त आज अमरावती चले गए। वहाँ से वे सतारा चले जाऐंगे। हमें स्वाभाविक रूप से उनकी कमी महसूस हो रही है।


जय साईं राम
ॐ साईं राम


९ फरवरी १९१२-


मैं रोज़ की तरह उठा, प्रार्थना की, और पँचदशी की सँगत में गया। इस दौरान हमने साईं महाराज को बाहर जाते हुए देखा। सामूहिक पाठ के बाद हम मस्जिद में गए। साईं बाबा बहुत प्रसन्नचित्त थे। वह युवक किष्य, जिसे हम पिष्य कहते हैं, हमेशा की तरह आया और उसे देख कर साईं साहेब ने कहा कि पिष्य अपने पिछले जन्म में एक रोहिल्ला था, कि वह एक बहुत अच्छा इंसान था, कि वह बहुत पूजा पाठ करता था और साईं साहेब के दादा के पास अतिथि बन कर आया था। उनकी एक बहन थी जो कि अलग रहा करती थी। स्वँय साईं साहेब युवा थे, उन्होंने मजाक में सुझाव दिया कि रोहिल्ला को उस से विवाह कर लेना चाहिए। ऐसा ही हुआ। रोहिल्ला ने उसके साथ अँततः विवाह कर लिया। लम्बे समय तक वह अपनी पत्नि के साथ वहाँ रहा और फिर आखिरकार उसके साथ चला गया, कोई नहीं जानता कि कहाँ। वह मर गया और साईं साहेब ने उसे उसकी वर्तमान माँ के गर्भ में डाल दिया। उन्होंने कहा कि पिष्य बहुत ही भाग्यशाली होगा और हजारों का सँरक्षक होगा।


दोपहर की आरती रोज़ की तरह सँपन्न हुई। उसके मध्य में साईं साहेब ने शिवानन्द शास्त्री से कुछ कहा और कुछ सँकेत भी दिए। दुर्भाग्यवश शास्त्री उसका अभिप्राय ग्रहण नहीं कर पाए। साईं साहेब ने बापू साहेब जोग को भी सँकेत दिए। थाने के अभिवक्ता श्री ओके भी यहाँ है I मैंने उन्हें कहा कि वे बाबा गु्प्ते और दूसरे मित्रों को मेरी याद दिलाऐं।


जय साईं राम
ॐ साईं राम


८ फरवरी १९१२-


मैं काँकड आरती के लिए उठा, और उसके बाद अपनी दिनचर्या के कार्य प्रारँभ किए। नारायणराव बामनगाँवकर को लौटने की अनुमति मिल गई। उनके पास अमरावती में देने के लिए मेरी पत्नि की ओर से दिया गया कुछ सामान भी है, और वे वास्तव में ताँगा ले कर चले गए। उनके चलने से पूर्व गणपतराव, मेरे एक सँबन्धी, खरबरी के पुत्र जो सतारा के मुतालिक हैं, मिलने आए। वे तिल सक्रान्ति के लिए तिल से बने हुए पारँपरिक उपहार लाए। इनमें बहुत कलात्मक रूप से तैयार की गई तिल और चीनी की बनी वस्तुऐं हैं।


आज तीन सप्ताह में पहली बार बलवन्त ने बाहर मस्जिद तक जाने का साहस किया, और अपना सिर साईं महाराज के चरणों में रखा। उसमें काफी सुधार हुआ है। गणपतराव चाहते थे कि मेरा पुत्र बलवन्त रँगपँचमी के लिए उनके साथ सतारा जाए। मैंने उन्हे साईं महाराज के पास भेज दिया।


दोपहर की आरती रोज़ की तरह सम्पन्न हुई, सिवाए इसके कि आरती के अन्त में साईं साहेब ने क्रोध का प्रदर्शन किया। हमने दोपहर का समय दीक्षित की रामायण पढने और मेरे दासबोध के पठन में बिताया। सुबह हमारी पँचदशी की सँगत भी हुई थी।


हमने साईं महाराज के दर्शन उनकी शाम की सैर के समय किए। कोई एक श्री कुलकर्णी बम्बई से आए हैं। उनकी एक प्रयोगशाला है जिसमें वह कच्ची धातु आदि का परीक्षण करते हैं। वे बोले कि उन्होंने मुझे १९०७ में सूरत में देखा था। हमने बैठकर पुरानी चीज़ों के बारे में बातचीत की। रात में भीष्म के भजन हुए, और दीक्षत ने रामायण पढी।


जय साईं राम
ॐ साईं राम


७ फरवरी १९१२-


मैं जल्दी उठा, प्रार्थना की और रोज़ की तरह हमारी पँचदशी की सँगत हुई। मैं साईं महाराज से अनुमति माँगने नहीं गया। हमने उन्हें बाहर जाते हुए देखा, और जब वे लौटे तब हम मस्जिद में गए। मैंने देखा कि साईं महाराज बैठे हुए थे और बाहर आँगन में एक व्यक्ति एक बँदर को उसके द्वारा सिखाई गई तरकीबों का प्रदर्शन कर रहा था। वहाँ पर एक पेशेवर गायिका और नर्तकी भी आई हुई थी। उसकी आवाज़ बहुत मधुर थी और उसने धार्मिक गानें सुनाए। बाद में ब्रह्मानन्द बाई और उसके सँगी सालूबाई और शिवानन्द शास्त्री आए। उन्होंने अर्चना की और ब्रह्मानन्द बाई ने, जिन्हें वे माईसाहेब कहते हैं, बडी ही सुन्दरता से गाया। साईं साहेब ने आसन आदि लाने का निर्देश दिया, और जब सब चीज़ों की व्यवस्था हो गई तब हम सब अपने स्थानों पर खडे हो गए। माईसाहेब ने पुनः दो भजन इतनी मधुरता से गाए कि हम सब मन्त्रमुग्ध से खडे रह गए। मुझे लगता है कि साईं महाराज को वे पसँद आए। फिर हमने रोज़ाना की तरह आरती की और दोपहर के भोजन के लिए वापिस आ गए। माईसाहेब और उनके लोगों ने मेरे स्थान पर ही भोजन किया। भोजन के उपरान्त बामनगाँवकर और माईसाहेब वापसी की अनुमति माँगने साईं साहेब के पास गए। माईसाहेब और सालूबाई को लौटने की अनुमति मिल गई और वे ताँगे से चले गए। शिवानन्द शास्त्री और बामनगाँवकर को साईं महाराज के द्वारा रोक लिया गया, और वे ठहर गए।


मैं लेटा और एक अच्छी झपकी ली। इसके बाद दीक्षित ने रामायण पढी और स्वँय मैने दासबोध का पठन किया। हम सबने साईं महाराज की सैर के समय उनके दर्शन किए। वाडा आरती के बाद हम शेज आरती में सम्मिलित हुए। रात को भीष्म ने भागवत का पठन किया और दीक्षित ने रामायण का।


जय साईं राम

Wednesday, April 25, 2012

ॐ साईं राम


६ फरवरी १९१२-


मैं उठा और काँकड आरती में सम्मिलित हुआ। माधवराव देशपाँडे ने कहा कि आज मुझे घर जाने की अनुमति मिल जाएगी। अतः मैं उनके और बामनगावॆँकर के साथ प्रातः लगभग ७॰३० बजे साईं साहेब के पास गया, किन्तु साईं साहेब ने हमसे कहा कि हम दोपहर को पुनः आऐं। अतः हम वापिस आ गए और मैंने अपनी दिनचर्या के कार्य शुरू किए। मैंने उपासनी और बापू साहेब जोग ने पँचदशी का पाठ किया। साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए, और दोपहर की आरती में सम्मिलित हुए। ब्रह्मानन्द बाई ने एक आरती और कुछ पदों का गायन किया। आज बापू साहेब जोग अपना निवृत्ति वेतन लेने कोपरगाँव गए, अतः आरती जल्दी समाप्त हो गई।


दोपहर के भोजन के बाद मैं और बामनगाँवकर मस्जिद में गए। काका साहेब दीक्षित वहाँ थे। साईं साहेब ने कहा कि हम शायद कल जाऐंगे। माधवराव देशपाँडे भी वहाँ आए। साईं साहेब बोले कि वे बहुत देर से सोच रहे थे और दिन और रात सोच रहे थे। सब चोर थे। किन्तु हमें उनसे निपटना ही था। उन्होंने कहा कि उन्होंने ईश्वर से उनके सुधार या बदलाव के लिए दिन रात प्रार्थना की, किन्तु ईश्वर ने देरी की और स्पष्ट रूप से उन लोगों के रवैये को और प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया। वे एक या दो दिन इँतज़ार करेंगे ,फिर देखेंगे कि क्या करना है। पर चाहे कुछ भी हो जाऐ वे वह ले कर ही रहेंगे जिसके लिए वे प्रार्थना कर रहे है। वे तेली या वणी के पास नहीं जाऐंगे और कभी उनसे भीख नहीं माँगेगे। लोग अच्छे और समर्पित भक्त नहीं हैं। वह मस्तिष्क से अस्थिर हैं आदि।


उन्होंने आगे कहा कि कुछ मित्र एकत्रित होंगे और दैविक ज्ञान की चर्चा करेंगे और बैठकर ध्यान करेंगे। उन्होंने कुछ हजार रुपयों का भी उल्लेख किया। परन्तु मुझे यह याद नहीं है कि उन्होंने किस सँदर्भ में वह बात की थी। इसके बाद मैं लौटा और दीक्षित ने रामायण पुराण का पठन किया। बाद में साईं महाराज की सैर के समय हम उनका दर्शन करने गए। वे अत्यँत प्रसन्नचित्त थे। श्री राजारामपँत दीक्षित आज खँडवा के लिए रवाना हो गए। उपासनी शास्त्री की पत्नि चल बसीं। यह दुखद समाचार एक पत्र से प्राप्त हुआ। मैं दीक्षित और माधवराव उपासनी के पास गए, सँवेदना प्रकट की और उन्हें वाडे में ले आए।


फकीर बाबा ने मेरे प्रस्थान के बारे में पूछा और साईं बाबा ने उत्तर दिया कि मैंने उसे कहा था कि वह कल जाएगा। जब मेरी पत्नि ने मेरे जाने के बारे में पूछा तो साईं बाबा ने कहा कि मैंने उनसे व्यक्तिगत रूप से जाने की आज्ञा नहीं माँगी, अतः वे कुछ नहीं कह सकते। मुझे इसके कुछ ही देर बाद वहाँ जाना पडा और तब साईं बाबा ने कहा कि मैं दादा भट्ट से पाँच सौ रूपये और दो सौ रुपये किसी और से ले कर, उन्हें इकट्ठा कर उन्हें दिए बिना नहीं जा सकता। रात को वाडा आरती कुछ देर से हुई, क्योंकि बापू साहेब जोग को कोपरगाँव से लौटना था। ब्रह्मानन्द बाई और शिवानन्द शास्त्री ने भजन गाए, और भीष्म ने भी।


जय साईं राम
ॐ साईं राम


५ फरवरी १९१२-


आज प्रातः जैसे ही अपनी प्रार्थना समाप्त की, नागपुर से राजारामपँत दीक्षित आ गए। वह काका साहेब दीक्षित के बडे भाई हैं। वह साईं साहेब से मिलने गए। मैं अपनी पाठ की सँगत में सम्मिलित हुआ, जिसमें हमने पँचदशी का और अमृतानुभव के एक पद का पठन बापू साहेब जोग, उपासनी शास्त्री, शिवानन्द शास्त्री, ब्रह्मानन्द बाई और अन्य लोगों के साथ किया। हमने साईं साहेब के दर्शन बाहर जाते हुए और उस समय किए जब वे मस्जिद में वापिस लौटे। वे मेरे प्रति अत्यँत कृपालु थे। उन्होंने कुछ शब्द कहे, और जब आरती के बाद सब लोग विदा हो रहे थे तब मेरा नाम ले कर मुझे बुलाया, और कहा कि मुझे आलस्य त्याग कर सब स्त्रियों और बच्चों की देख भाल करनी चाहिए।


श्रीमति लक्ष्मी बाई कौजल्गी को एक रोटी का टुकडा दिया गया और कहा गया कि वह उसे जा कर राधाकृष्णा बाई के साथ खाऐं। यह एक महा प्रसाद ऐश्वर्य पाने के समान था। वह अब से हमेशा सुखी रहेंगी।


मैंने शिवानन्द शास्त्री, ब्रह्मानन्द बाई और उनके साथ के सभी लोगों को हमारे साथ भोजन करने के लिए आमन्त्रित किया। उसके पश्चात मैं कुछ क्षणों के लिए लेटा। दीक्षित ने रामायण पढी और उसके बाद हम साईं महाराज की शाम की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गए। वाडे की आरती के पश्चात रात को शेज आरती हुई। ब्रह्मानन्द बाई ने अति सुन्दर तरीके से भजन गाए। यह कार्यक्रम आधी रात तक चला। मेरे जाने का विषय आज फिर खुला। उसके बारे में निर्णय कल होगा।


जय साईं राम
ॐ साईं राम


४ फरवरी १९१२-


प्रातः मैं जल्दी उठा, काँकड आरती में सम्मिलित हुआ और अपनी प्रार्थना पूर्ण की। जब मैं नहा रहा था तब दो लोग नारायण राव बामनगाँवकर को पूछते हुए आए। वे लिंगायत शास्त्री थे। ज्येष्ठ व्यक्ति शिवानन्द शास्त्री के नाम से जाना जाता है। उनके साथ दो स्त्रियाँ भी थीं। ये स्त्रियाँ ब्राह्मण थीं। उनमें से बडी स्त्री का नाम ब्रह्मानन्द बाई था। लगभग तीन वर्ष पूर्व वह नासिक में एक लिंगायत स्त्री से मिली जिसका नाम निजानन्द बाई था। वह एक उच्च श्रेणी की योगिनी थी। उसने ब्रह्मानन्द बाई को उपदेश दिया था।

हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और फिर उस समय दर्शन किए जब वे मस्जिद लौटे। ब्रह्मानन्द बाई ने उनकी पूजा की और बडी नज़ाकत से दो आरतियाँ गाईं। दोपहर की आरती के बाद मैंने भोजन किया और कुछ देर लेटा। उसके बाद दीक्षित ने पारायण किया, फिर हम शाम की सैर के समय साईं महाराज के दर्शन के लिए गए। रात को वाडे की आरती के बाद दीक्षित का पुराण और भीष्म के भजन हुए। दोनों स्त्रियों- ब्रह्मानन्द बाई और उनकी साथी ने
अति सुन्दर भजन गाए और हमने भजनों का बहुत आनन्द लिया। शिवानन्द शास्त्री ने भी गाया। शास्त्री और स्त्रियाँ नासिक से आए हैं। वे वहीं के स्थायी निवासी हैं।


जय साईं राम
ॐ साईं राम


३ फरवरी १९१२-


मुझे सुबह उठने में थोडी देर हुई, ऐसा लगता है कि वह आलस्य की लहर सी थी। बापू साहेब जोग कुछ देर से आए, श्रीमान दीक्षित भी देर से आए, और लगभग सभी अन्य लोग भी। अपनी प्रार्थना पूर्ण करने के बाद मैं मस्जिद में गया, किन्तु साईं महाराज ने मुझे कहा कि अँदर आए बिना ऊदी ले लो। मैंने वैसा ही किया, और बापू साहेब जोग के निवास स्थान की ओर बढ गया। वहाँ उनके, उपासनी और श्रीमति काजल्गी के साथ बैठ कर पँचदशी का पठन किया। हमने दोपहर तक पाठ किया और फिर साईं बाबा की आरती के लिए चले गए। इसके बाद हमने दोपहर का भोजन किया। मैंने थोडा आराम किया और बैठ कर 'दास-बोध' का पठन किया। दोपहर को दीक्षित ने रामायण का पारायण किया। साईं महाराज के एक स्थानीय भक्त गनोबा अबा उसे सुनने के लिए आए। उन्हें अने छँदो के बारे में पता है और कई तो उन्हें कण्ठस्थ हैं।


हमने साईं महाराज के सैर पर जाते हुए दर्शन किए। माधवराव देशपाँडे ने मुझे बताया कि उन्होंने साईं बाबा से मेरे अमरावती लौटने के बारे में बात की, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए आज्ञा देने से मना कर दिया कि " वह एक वृद्ध व्यक्ति है और अपनी 'आबरू' गवाँना पसँद नहीं करेगा।" उन्होंने कहा कि लगभग दो सौ लोग पडोसी जिले में गए और उन्हें दंगाई कह कर गिरफ्तार कर लिया गया, और माधव राव का नाम भी बेकार में ही दँगाईयों की सूची में डाल दिया गया और उसे लेकर कुछ गडबडी थी।

रात को वाडा आरती और शेज आरती हुई और मैं दोनो में सम्मिलित हुआ। भीष्म के भजन नहीं हुए अपितु उन्होंने भागवत पढी और दीक्षित की रामायण हुई।


जय साईं राम
ॐ साईं राम


२ फरवरी १९१२-


मैं काँकड आरती के लिए उठा और उसके बाद हमने अपनी पँचदशी की जमात शुरू की। किन्तु पता नहीं क्यों, मैं पहले पँचदशी के विषय में थोडा बोला और फिर उसका पठन शुरू किया। यह अपने विषय की लगभग सर्वश्रेष्ठ कृति है, उससे बेहतर और कोई नहीं है। साईं महाराज के बाहर जाने से पूर्व मैं उनका दर्शन करने के लिए मस्जिद में गया और साठे वाडा तक उनके साथ चला। इसके पश्चात दोपहर ही आरती में सम्मिलित हुआ।


आज मुझे अमरावती से एक पत्र प्राप्त हुआ जिसमें मुझे अपनी वकालत पर लौट आने के लिए कहा गया था। मैंने माधवराव देशपाँडे से साईं महाराज से आज्ञा लेने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि वह ऐसा करेंगे।


जय साईं राम
ॐ साईं राम


१ फरवरी १९१२-


मुझे उठने में कुछ देर तो हुई, किन्तु मैं प्रार्थना करने में और समय पर 'परमामृत' के पठन में सम्मिलित होने में सफल रहा। आज कार्य पूरा हो गया और कल हम उसमें सँशोधन करना शुरू करेंगे। फिर मैं मस्जिद गया, साईं महाराज के पास बैठा और साठे वाडा तक जाने में उनका साथ दिया। वहाँ लोग साईं महाराज को प्रणाम करने के लिए पहले से ही एकत्रित थे। मैं भी उनके समूह में सम्मिलित हो गया और साईं महाराज को नमस्कार किया, फिर बापू साहेब जोग के निवास स्थान पर जा कर पँचदशी का पाठ करते हुए पहले दस छँदो की व्याख्या की, जिनमें कि सम्पूर्ण पुस्तक का निचोड है। इसके पश्चात मैं अपने आवास पर लौटा, कुछ पत्र लिखे, उन्हें भेजा और दोपहर की आरती में सम्मिलित होने के लिए मस्जिद में गया। आरती भली भाँति सँम्पन्न हुई। अहमदनगर के श्री मानेकचँद जिन्होंने इस वर्ष वकालत की पढाई पूरी की है, यहाँ आए और पूरा दिन रूके। आरती से लौटने के बाद हमने भोजन किया। मैंने बैठ कर सखरेबा की सँपादित ज्ञानेश्वरी का पाठ किया। दुर्भाग्यवश, अन्य सँस्करणों के समान उसने मेरी मुश्किलों का समाधान नहीं किया। बाद में दीक्षित ने रामायण पढी।


शिरडी के मामलेदार श्री साने, उप जिलाधीश श्री साठे और उप प्रभागीय अधिकारी आए और कुछ देर बैठ कर बातें की। उनके जाने के बाद हमने रामायण का पाठ पुनः प्रारँभ किया, शाम को हम साईं बाबा के शाम की सैर के समय उनसे मिलने मस्जिद गए। वाडे की आरती के बाद हम शेज आरती में सम्मिलित हुए। भीष्म ने भजन नहीं गाए अपितु उन्होंने सखाराव की प्राकृत भागवत पढी। रात को दीक्षित ने रामायण पढी।

आज शाम को जब हम मस्जिद में साईं बाबा के शाम की सैर से पूर्व मस्जिद में इकट्ठा हुए थे, उस समय साईॅ साहेब ने श्रीमान दीक्षित को कहा कि वह मेरी पत्नि को दो सौ रुपये दे देवें, जो उस समय साईं साहेब के पैर धो रहीं थीं। यह निर्देश समझाया नहीं जा सकता। क्या इसका अर्थ यह है कि मुझे अपना जीवन दान के सहारे काटना पडेगा? मैं मृत्यु को इससे बेहतर समझूँगा। मुझे लगता है कि साईं साहेब मेरे अहम को नियँत्रित करके अँततः उसे नष्ट कर देना चाहते हैं। इसीलिए वे मुझे गरीबी और दूसरों के दान का अभ्यस्त बनाना चाहते हैं।

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मैंने १ फरवरी १९१२ को डायरी में लिखे पृष्ठ को पढा। मैंने अपनी भावनाओं को सही प्रकार से व्यक्त किया है। हमारे सदगुरू साईं महाराज ने निर्देश दिया। वे अँतरयामी थे और वे सब कुछ, यहां तक कि मेरे अँतःकरण में दबे हुए विचारों को भी भली भाँति जानते थे। उन्होंने उस निर्देश को कार्यान्वित करने को नहीं कहा। अब मेरा ध्यान इस विषय की ओर खींचा गया, मुझे ऐसा लगता है, कि उस समय मेरी पत्नि को दीनता ओर परिश्रम का जीवन पसँद नहीं था। काका साहेब दीक्षित उस जीवन को अपना चुके थे और प्रसन्न थे। इसीलिए साईं महाराज ने उन्हें मेरी पत्नि को दो सौ रुपये- 'दीनता' और 'सब्र' देने को कहा।


जय साईं राम

Friday, April 20, 2012

ॐ साईं राम


३० जनवरी १९१२-


मैं प्रातः जल्दी जागा किन्तु उठ कर दैनिक कार्य करना मुझे रूचिकर नहीं लगा, क्योंकि मुझे डर था कि कहीं मैं कल की तरह दिन भर सोता ना रहूँ। फिर भी दिन चढने से पूर्व उठा और अपनी प्रार्थना की और फिर बापू साहेब जोग के पास 'परमामृत' पढने चला गया। उपासनी शास्त्री, श्रीमति कौजल्गी, और बापू साहेब वहाँ थे। हमने पढने में अच्छी प्रगति की। हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और फिर मस्जिद में लौटते हुए दर्शन किए। उन्होंने मुझसे पूछा कि हमने अपनी सुबह कैसे व्यतीत की? मैंने उन्हें सब बताया जो जो भी हमने किया था। दोपहर की आरती के बाद मैं लौटा और भोजन किया। उसके पश्चात मैंने बैठकर दैनिक समाचार पत्र पढा और कुछ पत्र लिखे। बाद में दीक्षित ने रामायण पढी, माधव राव देशपाँडे और बापू साहेब जोग भी पारायण में सम्मिलित हुए।


इस गाँव के कोई दो लोग और सीताराम डेंगले के छोटे भाई आए और पारायण के बाद हमने कुछ देर बातें की। उनमें से एक ने रामायण का छँद पढा। फिर हम साईं महाराज के दर्शन के लिए गए। उन्होंने पुनः मुझसे पूछा कि दोपहर में मैंने क्या किया? मैंने उन्हें बताया कि मैंने बैठ कर कुछ पत्र लिखे। वे मुस्कुराए और बोले- "बेकार बैठने से हाथ चलाना अच्छा है"।


हमने शाम की सैर के समय साईं महाराज के दर्शन किए और शेज आरती में सम्मिलित हुए। आज रात को भजन नहीं हुए, भागवत के पठन में सारा समय बीता, और दीक्षित की रामायण भी हुई।



जय साईं राम
ॐ साईं राम!!!

२९ जनवरी , १९१२~~~


मैं सुबह सुबह जल्दी उठ गया , प्रार्थना की आयर ये पाया कि मैं ज्यादा ही जांदी उठ गया था , लेकिन फिर जगा ही रहा और काकड़ आरती मैं उपस्थित हुआ | लौटने के बाद मैंने अपनी दिनचर्या आरम्भ की | करीब नौ बजे मैं बापू साहेब पास गया और फिर उनके साथ उपासनी के पास , परमामृत आरम्भ की , लेकिन बिना किसी वजह के मुझे इतनी ज्यादा नींद आती रही कि मैं आगे नहीं बढ सका | आखिरकार मैं अपने ठिकाने पर लौट आया और लेट गया , और इतने देर तक सोता रहा कि दोपहर साड़े बारह या एक बजे तक भी उठ नहीं पाया | माधवराव देशपांडे और दूसरों ने मुझे जगाने की कोशिश की , और जोर से आवाज़े भी दी लेकिन मैंने कोइ जवाब नहीं दिया | आखिर वे लोग आरती के लीर चले गए और किसी तरह ये बात साईं महाराज के कानों तक पहुँच गयी और उन्होंने कहा नि वे मुझे जगाएं गे | किसी तरह जब आरती पूरी की जा रही थी तब मैं उठा और उसके अंतिम चरण में सम्मलित हुआ | मैं इतनी देर तक सोने के लिए बहुत शर्मिन्दा हुआ |


बाकी दिन भर भी मैं सुस्त ही रहा | नारायण राव बामनगाँवकर आज सोलापुर से आए | वे एक भले नवयुवक है और उनसे बातचीत करने बैठा | फिर दोपहर में मैं दीक्षित के पुराण में सम्मलित हुआ और साईं साहेब के शाम की सैर पर दर्शन किए | मैंने उनके दर्शन सुबह नौ और दस बजे के बीच में भी किए थे , जब वे बाहर गए थे | शाम को भीष्म के भजन हुए और बाद में दीक्षित की रामायण | उन्होंने और दिनों की तरह रामायण का पाठ किया |


जय साईं राम!
ॐ साईं राम


२८ जनवरी १९१२-


मैं रात बहुत अच्छी नींद सोया और दिन चढने से पूर्व प्रार्थना के लिए समय पर उठ गया। अपने दिनचर्या के कार्य पूरे किए तथा लगभग ८ बजे खँडोबा के मँदिर पहुँच गया जहाँ उपासनी रहते हैं। कुछ देर उनके साथ बैठकर बात की। यह एक छोटा सा सुँदर स्थान है। हमने 'परमामृत' का पठन बापू साहेब जोग के घर पर किया क्योंकि मेरे निवास स्थान पर वेदान्त विषय पर बातचीत और चर्चा मेरे पुत्र बलवन्त को परेशान करती है।


हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और फिर मस्जिद में लौटते हुए दर्शन किए। उन्होंने मुझसे पूछा कि हमने अपनी सुबह कैसे बिताई? मैंने उन्हें वह सब बताया जो हमने किया था। वे प्रसन्न चित्त थे। दोपहर की आरती निर्विघ्न समाप्त हुई, सिवाय इस बात के कि राधाकृष्णा माई आहत और दुखी थीं। उन्होंने दरवाज़ा बन्द कर लिया था, अतः आरती का सामान मिलने में देरी हुई।


दोपहर के भोजन के बाद मैंने कुछ देर आराम किया, फिर एक पत्र लिखा और कुछ देर दीक्षित की रामायण सुनी। फिर हम साईं महाराज की शाम की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गए। इसके पश्चात वाडे में आरती हुई परन्तु भीष्म के भजन नहीं हुए क्योंकि वह अस्वस्थ थे। रात में शेज आरती के बाद जब हम लौटे तब दीक्षित की रामायण हुई।


जय साईं राम
ॐ साईं राम!!!

२७ जनवरी , १९१२~~~


मैं सुबह जल्दी उठा , प्रार्थना की और काकड़ आरती में सम्मलित हुआ | साईं बाबा बिना बोले मस्जिद नहीं गए , फिर भी उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं कहा | मैं , उपासनी , बापू साहेब जोग और भीष्म ने पमामृत पड़ी , साईं बाबा के बाहर जाते हुए और फिर वापस लौटते के बाद दर्शन किए | दोपहर की आरती आराम से हो गयी और उसके बाद हमने सामान्य दिनों की तरह ही भोजन किया | मैं थोड़ी देर लेता और फिर मैंने पत्र लिखा , और दोपहर में दीक्षित द्वारा रामायण के पाठ में सम्मलित हुआ | हमने साईं बाबा के सैर के समय दर्शन किए | उन्होंने आनन्द भाव में लेकिन गंम्भीरता से बाते की | बातों के आखिर में वि आवाज़ ऊँची कर वे क्रुद्ध भाव में वे बोले | मुझे बताया गया कि अन्धेरा होने के बाद वे और ऊँचा बोले और इस बात के लिए अपना क्रोध दिखाया कि इब्राहिम जिसने अपना धर्म बदल लिया था वह खींड के पास टूटी हुई दीवार पर अपना हाथ रख कर खड़ा हुआ था | साईं साहेब के कपड़े भी राधा कृष्णाबाई के द्वारा धोए गए थे और वे ऐसा करने पर उनसे नाराज़ थे |



जय साईं राम!!!
ॐ साईं राम


२६ जनवरी १९१२-


आज मैं प्रातः बहुत जल्दी उठा और समय का गलत अनुमान लगा कर सूरज उगने की प्रतीक्षा करता रहा। मैंने प्रार्थना की और बरामदे में एक कोने से दूसरे कोने तक घूमता रहा। मुझे लगता है कि मैं लगभग एक या डेढ घँटा जल्दी उठ गया। सर्योदय के बाद मैंने अपने दिनचर्या के कार्य सम्पन्न किए और फिर हम बाहर गए। मुझे पता चला कि पूना से ढाँडे बाबा आए हैं। मैं स्वाभाविक रूप से उनसे बात करने लगा। उन्होंने मुझे तिलक का नवीनतम पत्र दिखाया। राज्याभिषेक आया और गया लेकिन तिलक जेल से बाहर नहीं आ पाए। हम उनके और डा॰ गरडे के बारे में बात करते रहे, जिन्होंने बेकार में ही अब मुसीबत खडी कर दी है और वह विशेषतः मुझे नुकसान पहुँचाना चाहते हैं।


हमने कुछ देर 'परमामृत' पढी और फिर साईं महाराज के दो बार, बाहर जाते हुए और वापिस मस्जिद में आते हुए दर्शन किए। मुझे कुछ अस्वस्थता महसूस हुई, अतः मैं कुछ देर लेटा। ढाँडे बाबा लगभग ४ बजे चले गए। फिर दोपहर को दीक्षित ने रामायण पढी। हम साईॅ महाराज के दर्शन के लिए गए और चावडी के सामने टहले। रात को वाडे की आरती, शेज आरती, भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई।

आज मुझे अँग्रेज़ी के कुछ पत्र मिले।


जय साईं राम
ॐ साईं राम


२५ जनवरी १९१२-


प्रातः माधवराव देशपाँडे ने मुझे उठाया और कहा कि उन्हें मुझे एक बार से ज़्यादा बार आवाज़ देनी पडी तभी मैं जागा। मैने प्रार्थना की और काँकड आरती में सम्मिलित हुआ। साईं बाबा चुपचाप मस्जिद की ओर गए। वापिस आकर मैंने उपासनी, बापू साहेब जोग, भीष्म और श्रीमति कौजल्गी के साथ परमामृत का पठन किया। हमने 'महावाक्य विवेक' के विषय में अध्याय पूरा किया। फिर हमने दो बार साईं महाराज के दर्शन किए, एक बार जब वे बाहर जा रहे थे, और दूसरी बार जब वे मस्जिद लौटे।


दोपहर की आरती रोज़ की तरह सम्पन्न हुई और साईं साहेब ने मुझे कई बार चिलम का धुआँ दिया। भोजन के बाद मैंने कुछ देर आराम किया और फिर हमने रामायण पढी। दीक्षित ने यह पठन किया। इसके बाद हम साईं बाबा के दर्शन के लिए गए। वे प्रसन्न भाव में थे। रात को वाडे में आरती, भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई। मैं यह बताना चाहता हूँ कि शाम की सैर के समय साईं बाबा ने मुझे श्रीमति लक्ष्मीबाई कौजल्गी की सम्पूर्ण जीवन गाथा सुनाई। मुझे पता है कि वह सब सही था क्योंकि मुझे उसके बारे में पहले से ज्ञात था।


जय साईं राम
ॐ साईं राम!!!

२४ जनवरी , १९१२~~~

आज सुबह मैं ज्यादा सो गया | इससे मुझे हर चीज़ में देर हुई |मुझे अपनी दिनचर्या में सब कुछ जल्दी जल्दी करना पड़ा | श्री दीक्षित को भी देर हुई ,और हर कोई इसी परेशानी में घिरा हुआ लगा | हमने साईं बाबा के दर्शन उनके बाहर जाते हुए किए , और फिर उपासनी , भीष्म और बापू साहेब जोग के साथ परमामृत का पाठ किया | उसके बाद मैं साईं बाबा के दर्शन के लिए मस्जिद गया | लक्ष्मी बाई कौजलगी हमारी परमामृत की कक्षा में उपस्थित हुई और मेरे पहुचंने के बाद मस्जिद गयी | साईं बाबा ने उन्हें अपनी सास कहा और उनके द्वारा प्रणाम करने पर हास परिहास किया | इससे मुझे ऐसा विचार आया कि बाबा ने उन्हें शिष्य रूप में स्वीकार कर लिया है | मध्यान्ह आरती सामान्य रूप से बल्कि बहुत शांती से संपन्न हो गयी | मेरे वहां से लौटने के बाद मैंने कोपरगाव के मामले दार श्री साने को बरामदे में बैठा हुआ पाया वे गावोत्थान के विस्तार कार्य और कब्रिस्तान और मरघट को हटाने के सम्बन्ध में लगान का कार्य कर रहे थे | भोजन के बाद मैंने कुछ पत्र लिखने चाहे लेकिन फिर श्री साने के साथ बातचीत करने बैठ गया | फिर श्री दीक्षित ने रामायण पडी | और बाद में साईं साहेब के दर्शन के लिए मस्जिद गया , लेकिन क्यूँ कि सभी को जल्दी ही भेज दिया गया इसी लिए उदी ली और चावड़ी के पास खड़ा हो गया | वहां में एक मुस्लिम कबीर पंथी सज्जन से मिला जो कुछ समय पहले साठे और असणाडे के साथ अमरावती आए थे | शाम को वाडे में आरती हुई और फिर चावडी में शेज आरती हुई और मैंने हमेशा की तरह चवर पकड़ा ।


जय साईं राम!!!
ॐ साईं राम


२३ जनवरी १९१२-


मैं काँकड आरती के लिए समय पर उठ गया और दिन उगने के कुछ देर बाद ही प्रार्थना समाप्त कर ली। अपने बिस्तर से उठने के बाद साईं साहेब ने आज एक शब्द भी नहीं कहा। परन्तु जब हमने उन्हें रोज़ की तरह बाहर जाते हुए देखा तब वे अत्यँत मजाकिया मूड में थे। काका दीक्षित को हमारे साथ ना देख कर उन्होंने कहा कि वे जरूर पेट साफ कर रहे होंगे। जब वे दिखे तब बाबा ने कहा- "तुमने स्वयँ को तो स्वच्छ नहीं किया और सोचा कि पहले मुझे नमस्कार कर लो।" मैंने बापू साहेब जोग, उपासनी और काका दीक्षित के साथ परमामृत पढी, फिर हम साईं महाराज के दर्शन के लिए मस्जिद गए। वे चुप रहने के भाव में थे। उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा और दोपहर की आरती शाँतिपूर्वक सम्पन्न हो गई। इसके बाद हम वापिस आए और भोजन किया।


माधवराव देशपाँडे ने माननीय श्रीमति रसेल को साईं महाराज का चित्र और ऊदी भेजने की अनुमति ले ली है। मैं भी उन्हें कुछ लिखना चाहता था लेकिन मेरा मन नहीं किया और मैं एक स्कूल अध्यापक से बात करने लगा जो कि अपने परिवार के साथ अभी साईं महाराज के दर्शन के लिए आए थे। दीक्षित ने रामायण पढी, फिर हम साईं महाराज के दर्शन के लिए उस समय गए जब वे शाम की सैर के लिए निकले। उस समय भी उन्होंने कुछ विशेष नहीं कहा।


रात को भीष्म ने इस सप्ताह में पहली बार भजन गाए और दीक्षित ने रामायण पढी। श्रीमति लक्ष्मीबाई कौजल्गी यहाँ रहने के बारे में हमेशा सोचती हैं और साईॅ महाराज ने कहा कि शायद अपने भले के लिए वह ऐसा ही करेंगी। मेरे पुत्र बलवन्त को आज सुबह थोडा पसीना आया।


जय साईं राम

Sunday, April 15, 2012

ॐ साईं राम!!!

२२ जनवरी , १९१२~~~

मैं सुबह जल्दी उठ गया और प्रार्थना की | हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और फिर से उनके लौटने के बाद दर्शन किए| पूजा के समय उन्होंने दो फूल अपने नासिकाओं के अन्दर डाल लिए , और दो अपने कानों और सिर के बीच डालें | माधवराव देशपांडे के द्वारा मेरा ध्यान इस और खीचा गया | मैंने इसे एक प्रकार का निर्देश समझा | साईं बाबा ने वही चीज़ फिर दोहराई और दूसरी बार मैंने औने दिमाग में इसके अर्थ का अनुमान लगाया तो उन्होंने अपनी चिलम मेरी और बड़ा दी और इससे मुझे यकीन हो गया | उन्होंने कुछ कहा जो मैंने तुरंत सूना और विशेषकर याद रखने का प्रयास किया , लेकिन वह मेरे दिमाग से बिल्कुल निकल गया और दिन भर मैंने भरसक प्रयास किया लेकिन याद नहीं कर सका | मैं बहुत ही हैरान हूँ क्यूकि ये इस तरह का पहला अनुभव है | साईं बाबा ने यह भी कहा की उनकी आज्ञा सर्वोपरी है , जिसका मैंने ये अर्थ लिया क़ि मुझे अपने बेटे के स्वास्थ्य के बारे में परेशान होने की कोई आवश्यकता नहीं है | जब तक दोपहर की आरती समाप्त हुई और हम लौटे , मैंने श्रीमति लक्ष्मीबाई कौजलगी { स्थानीय रूप से जो मौसी बाई के नाम से जानी जाती है} को अपने डेरे के सामने खड़े हुए पाया | मेरे जाते ही वे मंस्जिद पहुँची और साईं महाराज को प्रणाम किया | बाबा ने उन्हें तब पूजा करने देकर उन पर विशेष अनुग्रह किया | खाने के बाद मैं कुछ देर लेटा और दीक्षित ने रामायण का पाठ किया और नाथ महाराज की कोई गाथा पडी | उपासनी भी उपस्थित थे और श्रीमति लक्ष्मीबाई कौजलगी भी कक्षा में सम्मलित हुई | उन्होंने चर्चा में भाग लिया और ऐसा लगता है क़ि उन्हें वेदान्त की अच्छी जानकारी है | हमने साईं बाबा के शाम की सेर के समय दर्शन किए और बाद में शेज आरती पर | श्रीमति लक्ष्मीबाई कौजलगी ने कुछ गीत गाए | वे राधाकृष्णबाई की मौसी है | रात को मेरे अनुरोध पर उन्होंने कुछ भजन किए और दीक्षित ने रामायण पडी |


जय साईं राम!!!
ॐ साईं राम


२१ जनवरी १९१२-


मैं उठा और काँकड आरती में साम्मिलित हुआ। वहाँ वे सभी लोग उपस्थित थे जो प्रतिदिन होते हैं, सिवाय बाला शिम्पी के। आरती के बाद रोज़ की तरह साईं बाबा ने आँतरिक शत्रुओं के प्रति कडे शब्दों का प्रयोग कई नाम जैसे अप्पा कोते, तेली, वामन तात्या आदि लेकर किया। मैंने बापू साहेब जोग, उपासनी और राम मारूति के साथ बैठ कर 'परमामृत' का पठन किया। बापू साहेब जोग के जो अतिथि साँगली से आए हैं, वे भी हमारे समूह में बैठे। उनका नाम लिमये है।


हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और फिर वापिस आते हुए दर्शन किए। जब हम मस्जिद में थे तब माधव राव देशपाँडे नगर से लौट आए। उनके साथ बडौदा के एक सज्जन श्री दादा साहेब करँदिकर भी थे। करँदिकर को देख कर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। ऐसा लगता है कि वे किसी मुकदमे के सिलसिले में नगर आए थे और माधव राव से मिलने पर उन्होंने साई महाराज के दर्शन का निश्चय किया। हमने बैठ कर बातचीत की। वे लगभग ४॰३० बजे शाम को नगर लौट गए। लिमये भी चले गए। पहले उन्हें जाने की अनुमति नहीं मिली, किन्तु अन्ततः साईं बाबा ने उन्हें जाने को कहा। सदाशिवराव दीक्षित भी जाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें कल सुबह अपने परिवार, बच्चों और राम मारूति के साथ जाने की आज्ञा हुई। हमने शाम की सैर के समय साईं बाबा के दर्शन किए। वाडे की आरती के बाद दीक्षित की रामायण हुई।


जय साईं राम
ॐ साईं राम


२० जनवरी १९१२-


प्रातः प्रार्थना के लिए मैं दिन चढने के पूर्व समय पर उठ गया और अपनी दिनचर्या के सभी कार्य उसी प्रकार किए जिससे यहाँ पर सभी लोगों को सुविधा हो। दिन सुहाना प्रतीत हुआ, और वह अच्छे से बीता। मैने बापसाहेब जोग, उपासनी और राम मारूति के साथ 'परमामृत' पढी। भीष्म और मेरे पुत्र बलवन्त की तबियत ठीक नहीं है। हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और फिर लौटने पर दर्शन किए। उन्होंने बैठकर सुखद रूप से बातचीत की।


अभी एक गाँव के जागीरदार आए लेकिन साईं महाराज ने उन्हें पूजा करना तो दूर, पास तक नहीं आने दिया। कई लोगों ने उसके लिए अनुनय की किन्तु सब बेकार सिद्ध हुआ। अप्पा कोते आए और उन्होंने बहुत कोशिश के बाद साईं महाराज से इतनी अनुमति ली कि वह जागीरदार मस्जिद मे आ कर धूनि के पास के स्तम्भ की पूजा कर ले पर वे उसे 'ऊदी' नहीं देंगे। मुझे लगा कि साईं महाराज क्रोधित होंगे परन्तु ऐसा नहीं हुआ और दोपहर की आरती भली प्रकार से सम्पन्न हुई। साईं महाराज ने बापू साहेब जोग को निर्देश दिया कि अब वे ही सभी समय सब आरतियाँ करेंगे। मेघा की मृत्यु से दो दिन पूर्व मैनें ऐसे ही घटनाक्रम की अपेक्षा की थी।


मध्याह्न आरती के बाद मैनें बैठ कर समाचार पत्र पढा। दीक्षित के छोटे भाई (जो अब भुज के कार्यकारी दीवान हैं), खाँडवा में वकालत करते हैं , आज सुबह आए और दोपहर को उनके बम्बई के कर्मक भी आए। दीक्षित के भाई ने उन्हें काम पर लौटने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया जो कि बेकार सिद्ध हुआ। उन्होंने साईं महाराज से भी प्रार्थना की परन्तु साईं महाराज ने निर्णय स्वयँ दीक्षित पर ही छोड दिया।


बापू साहेब जोग के भी चार अतिथि आए हैं। उनकी पत्नि की बहन के पति जो कि साँगली के मुख्य खजान्ची हैं, दिल्ली दरबार से लौटते हुए अपने पूरे परिवार के साथ यहाँ आए हैं। उनकी पत्नि बापू साहेब जोग की पत्नि को अपने साथ ले जाना चाहती हैं ,परन्तु साईं महाराज ने इसकी अनुमति नहीं दी।


हमने साईं महाराज के उस समय दर्शन किए जब वे शाम की सैर के लिए बाहर आए। बाद में वाडे में और फिर शेज आरती हुई। दीक्षित ने हमेशा की तरह रामायण पढी। आज भजन नहीं हुए क्योंकि भीष्म अस्वस्थ हैं और बलवन्त की तबियत पहले से ज़्यादा खराब है। यहाँ मोरेश्वर जनार्दन पथारे भी अपनी पत्नि के साथ आए हुए हैं। वे लकवे कि शिकार हैं और उन्होंने बहुत दुख भोगा है। वसई के जोशी आए हैं और वे यहाँ गाई जाने वाली प्रार्थनाओं की कुछ छपी हुई प्रतिलिपियाँ भी लाए हैं।


जय साईं राम!!!
ॐ साईं राम!!!


१९ जनवरी १९१२-


आज का दिन अत्यँत दुखद था। मैं बहुत जल्दी उठ गया और प्रार्थना करने के बाद देखा तो भी दिन नहीं चढा था। सूरज चढने में एक घँटा बाकी था। मैं पुनः लेट गया और मुझे बापू साहेब जोग ने काँकड आरती के लिए उठाया। दीक्षित काका ने मुझे बताया कि प्रातः ४ बजे मेघा चल बसा। काँकड आरती हुई किन्तु साईं महाराज ने स्पष्ट रूप से अपना श्री मुख नहीं दिखाया। ऐसा प्रतीत हुआ कि वे आँखें नहीं खोलेंगे । ना ही उन्होंने अपनी कृपा से भरी दृष्टि भक्त जनों पर डाली।


हम लौटे और मेघा के अँतिम सँस्कार की तैयारियां की। जब मेघा के शरीर को बाहर लाया गया तभी साईं महाराज बाहर आए और उन्होंने उच्च स्वर में उसकी मृत्यु के लिए आर्तनाद किया। उनके स्वर में इतना दर्द था कि वहाँ उपस्थित सभी लोगों की आँखे भीग गई। साईं महाराज गाँव के मोड तक मेघा के शव के साथ चले, और फिर दूसरी ओर मुड गए।


मेघा के शरीर को गाँव के बडे पेड के नीचे अग्नि के हवाले किया गया। इतनी दूर से भी मेघा की मृत्यु पर रोते हुए साईं महाराज की शोकाकुल आवाज़ सुनाई दे रही थी। वे अपना हाथ इस प्रकार हिला रहे थे मानों आरती में मेघा को अँतिम बिदाई दे रहे हों। सूखी लकडियाँ बहुतायत में थीं अतः शीघ्र ही ऊँची लपटें उठने लगी। दीक्षित काका, मैं, बापू साहेब जोग, उपासनी, दादा केलकर और अन्य सभी लोग वहीं थे और मेघा की प्रशँसा कर रहे थे कि साईं महाराज ने उसके शरीर को सिर, हृदय, कँधे और पैर पर छुआ।


अँतिम सँस्कार के बाद हमें बैठ कर प्रार्थना करनी चाहिए थी, परन्तु बापू साहेब जोग आ गए और मैं उनके साथ बैठ कर बातें करने लगा। बाद में जब मैं साईं महाराज के दर्शन के लिए मस्जिद गया तब उन्होंने मुझसे पूछा कि मैंने दोपहर कैसे बिताई? मुझे यह बताते हुए बडी शर्म महसूस हुई कि मैंने बाते करने में समय गँवाया। यह मेरे लिए एक सबक था।


मुझे याद आया कि किस प्रकार साईं महाराज ने मेघा की मृत्यु की तीन दिन पूर्व भविष्यवाणी की थी-" यह मेघा की अँतिम आरती है"। मेघा मरने के समय कैसा महसूस कर रहा होगा कि उसका सेवा का समय पूर्ण हो गया। वह यह सोच कर भी आँसू बहा रहा था कि वह साठे साहेब से नहीं मिल पाया जिन्हें वह अपना गुरू समझता था, और किस प्रकार उसने निर्देश दिया साईं महाराज की गायों को कैसे चरने के लिए छोडना है। उसने अन्य कोई इच्छा नहीं प्रदर्शित की। हम सबने उसके अतिशय भक्ति से पूर्ण जीवन की प्रशँसा की। मुझे बहुत दुख हुआ कि मैं उसके लिए प्रार्थना ना कर, बेकार की बातों में उलझा रहा।


भीष्म और मेरा पुत्र बलवन्त स्वस्थ नहीं हैं, अतः भजन नहीं हुए। रात को दीक्षित काका ने रामायण पढी। गुप्ते, अपने भाई और परिवार सहित आज सुबह बम्बई रवाना हो गए।


जय साईं राम!!!

Tuesday, April 10, 2012

ॐ साईं राम


१८ जनवरी १९१२-


आज बहुत कुछ लिखने को है। आज सुबह बहुत जल्दी उठा, प्रार्थना की, तब भी दिन चढने में लगभग एक घँटा बाकी था। मैं कुछ देर लेट गया और सूर्योदय देखने कि लिए समय पर उठ गया। मैं, उपासनी, बापू साहेब जोग तथा भीष्म 'परमामृत' पढने बैठे। तहसीलदार साहेब प्रह्लाद अम्बादास, श्री पाटे और उनके सहयोगी लिंगायत अपने निवास स्थान पर लौट चुके हैं। श्री पाटे और लिंगायत को जाने की अनुमति चलने के एक दम पूर्व मिली। हमने साईं महाराज के मस्जिद से बाहर जाते हुए और फिर वापिस आते हुए दर्शन किए। उन्होंने मेरे साथ बहुत अच्छा बर्ताव किया और जब मैं वहाँ सेवा कर रहा था तब उन्होंने मुझे दो या तीन कहानियाँ सुनाईं।


उन्होंने कहा कि बहुत से लोग उनका धन लेने आए थे। उन्होंने कभी उन लोगों का विरोध नहीं किया और उन्हें धन ले जाने दिया। उन्होंने बस उन लोगों के नाम लिख लिए और उनका पीछा किया। फिर जब वे लोग भोजन करने बैठे तब मैंने ( साईं महाराज ने ) उन्हें मार डाला।


दूसरी कहानी इस प्रकार थी कि एक नेत्र विहीन व्यक्ति था। वह तकिया के पास रहता था। एक व्यक्ति ने उसकी पत्नि को फुसला लिया और नेत्र विहीन व्यक्ति को मार डाला। चावडी में चार सौ लोग इकट्ठा हुए और उसे दोषी करार दिया। उसका सिर काटने का फरमान जारी किया गया। यह कार्य गाँव के जल्लाद ने करना था। उसने इसे अपना कर्तव्य समझ कर नहीं अपितु किसी अन्य इरादे से पूरा किया। अगले जन्म में वह हत्यारा जल्लाद के घर बेटा बन कर पैदा हुआ।


इसके बाद साईं महाराज एक अन्य कहानी सुनाने लगे। तभी वहाँ एक फकीर आया और उसने साईं महाराज के चरण स्पर्श किए। साईं महाराज ने अत्यँत क्रोध प्रकट किया और उसे परे धकेल दिया किन्तु वह जिद पूर्वक बिना धीरज खोये वहीं खडा रहा। अन्त में साईं महाराज के क्रोध के कारण वह मस्जिद के आँगन की बाहर की दीवार के साथ जा कर खडा हो गया। बाबा ने गुस्से से आरती का थाल और भक्तो के द्वारा लाया गया भोग उठा कर फेंक दिया। उन्होंने राम मारूति को उठा लिया, बाद में उसने बताया कि उसे साईं महाराज के ऐसा करने से इतनी प्रसन्नता हुई मानो उसे उच्च अवस्था प्राप्त हुई हो। एक अन्य गाँव वासी और भाग्या के साथ भी साईं महाराज ने ऐसा ही व्यवहार किया।


सीताराम पुनः आरती का थाल लाये और हमने रोज़ की तरह लेकिन जल्दी में आरती की। म्हालसापति के पुत्र मार्तण्ड ने समय की सूझ दिखाते हुए समझाया कि आरती को सही तरीके से ही पूरा किया जाना चाहिए। उन्होंने ऐसा तब कहा जब साईं महाराज अपना स्थान छोड कर परे हट गए। परन्तु आरती पूर्ण होने से पूर्व वे वापिस अपने स्थान पर आ गए। सब कुछ भली प्रकार से सँपन्न हुआ सिवा इसके कि ऊदि का वितरण व्यक्तिगत रूप से नहीं अपितु सामूहिक रूप से हुआ। निश्चित रूप से साईं महाराज क्रोधित नहीं थे अपितु उन्होंने भक्तों को दिखाने के लिए ही सम्पूर्ण 'लीला' रची थी।


इन सब घटना क्रम के कारण सब कुछ देर से हुआ। तात्या पाटिल ने अपने पिता के अँतिम सँस्कार के मृत्युभोज का आयोजन किया था, अतः भोजन करते हुए हमें ४॰३० हो गए। क्योंकि बहुत देर हो चुकी थी अतः और कुछ करने का समय नहीं था इसलिए हम साईं महाराज के दर्शन करने चले गए जब वे घूमने जा रहे थे। उसी समय हमने उन्हें प्रणाम किया।


रोज़ की तरह वाडे में आरती हुई। मेघा इतना बीमार है कि वह खडा भी नहीं हो सकता। साईं महाराज ने रात में ही उसके अँत की भविष्यवाणी की। इसके पश्चात हम चावडी समारोह में सम्मिलित हुए । मैंने हमेशा की तरह छत्र उठाया। सब कुछ आराम से सँपन्न हुआ। सीताराम ने आरती की। रात को भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई।

P.S.
उप लेख- मैं यह बताना भूल गया कि जब साईं महाराज क्रोध में कुछ कह रहे थे तब उन्होंने यह भी कहा था कि उन्होंने मेरे पुत्र की रक्षा की थी और कई बार यह वाक्य भी दोहराया कि "फकीर दादासाहेब (अर्थात मुझे) को मारना चाहता है पर मैं ऐसा करने की आज्ञा नहीं दूँगा। उन्होंने एक और नाम का उल्लेख भी किया परन्तु वह मुझे अब याद नहीं है।


जय साईं राम
ॐ साईं राम


१७ जनवरी १९१२-


मैं प्रातः बहुत जल्दी उठा और बापू साहेब जोग को स्नान के लिए बाहर जाते हुए देखा। तब तक मैंने प्रार्थना पूर्ण की। काँकड आरती के लिए हम चावडी गए। मेघा अत्यँत रूग्ण होने के कारण आरती करने के लिए नहीं आ पाया अतः बापू साहेब जोग ने आरती की। साईं महाराज ने श्री मुख ऊपर उठाया और अत्यँत दयापूर्वक मुस्कुराए। उस मुस्कुराहट की एक झलक पाने के लिए यदि यहाँ वर्षों तक भी रुकना पडे तो भी वह कम है। मैं अत्याधिक हर्षित हो दीवानों की तरह उन्हें निहारता रहा।

जब हम वापिस लौटे तो नारायणराव के पुत्र गोविन्द और भ्राता भाऊ बैलगाडी पर सवार हो कर कोपरगाँव होते हुए होशँगाबाद गए। तब मैंने अपनी दिनचर्या के कार्य पूर्ण किए। मैंने कुछ पँक्तियां लिखी और बापू साहेब जोग तथा उपासनी के साथ 'परमामृत' का पठन किया। हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और फिर मस्जिद में लौटते हुए दर्शन किए। साईं महाराज ने मेरी ओर देख कर कुछ मूक निर्देश दिए किन्तु मैं एक मूर्ख की भाँति कुछ समझ नहीं सका।


वाडे में लौटने पर मैंने स्वँय को बिना किसी कारण से निराशाजनक रूप से उदास महसूस किया। बलवन्त भी उदास लग रहा था , उसने कहा कि वह शिरडी से जाना चाहता है। मैंने उसे साईं महाराज की अनुमति लेने के बाद ही कोई निर्णय लेने को कहा। भोजन करने के बाद मैं कुछ देर लेटा। मेरी इच्छा हुई कि मैं दीक्षित से रामायण सुनूं, किन्तु साईं महाराज ने उन्हें बुला भेजा और उन्हें जाना पडा।


खाँडवा के तहसीलदार साहेब श्री प्रह्लाद अम्बादास ने आज जाने की अनुमति माँगी जो उन्हें मिली। वहाँ जलगाँव के श्री पाटे और उनके साथ लिंगायत भी हैं। वे दोनो शायद कल जायेंगे। हमने साईं महाराज के शाम की सैर के समय दर्शन किए। वे बहुत प्रसन्न दिख रहे थे। रात को रोज़ की भाँति भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई। रात को वाडे की आरती के समय मुझे सुबह साईं महाराज द्वारा दिए गए मूक निर्देशों का अर्थ समझ में आया अतः मुझे बहुत प्रसन्नता हुई।


जय साईं राम
ॐ साईं राम


१६ जनवरी १९१२-


प्रातः मैं रोज़ की भाँति उठा, प्रार्थना की और 'परमामृत' के पठन के बाद अपने दैनिक कार्य सम्पन्न किए। यह वेदान्त पर मराठी भाषा में रचित एक अत्यँत चर्चित पुस्तक है। उपासनी ने इसका पाठ किया और मैंने, बापू साहेब जोग और भीष्म ने सुना। पाठ बहुत रोचक था और जहाँ आवश्यकता थी वहाँ मैंने उसकी व्याख्या की। मैंने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए किन्तु जब वे मस्जिद में वापिस लौटे तब मैं वहाँ देर से पहुँचा। मेरे देर से पहुँचने पर बाबा ने क्रोध नहीं दर्शाया अपितु मेरे साथ अत्यँत सकारात्मक दयालु व्यवहार किया। मेधा अभी भी अस्वस्थ है, अतः उसे जल्दी मस्जिद आने की आज्ञा नहीं मिली। परिणामतः दोपहर की आरती जब मेधा आया तब देर से शुरू हुई।


वापिस आकर भोजन करते हुए ४ बज गए। दीक्षित ने कुछ देर रामायण पढी। फिर हम साईं महाराज के दर्शन के लिए मस्जिद गए। बाबा ने हमें ज़्यादा देर बैठने की अनुमति नहीं दी और स्वँय भी शीघ्रता से सैर के लिए निकल गए। उन्होंने हमें वाडे में लौट जाने को कहा। हमें समझ में नहीं आया कि साईं महाराज ने ऐसा व्यवहार क्यों किया।


परन्तु जब हम वाडे में लौटे तब पता चला दीक्षित का नौकर हरी जो कुछ दिन पूर्व अस्वस्थ महसूस कर रहा था, चल बसा। उस रोज़ हमने किसी को उपासनी से दवा लाने भेजा भी था किंतु वे नहीं मिले थे। अन्ततः हरी की मृत्यु हो गई। हमने वाडे में रोज़ की आरती की और फिर रोज़ की तरह शेज आरती में सम्मिलित हुए। साईं महाराज ने हरी के प्रति विशेष कृपा दिखाई और उसके प्रति भाव पूर्ण शब्द कहे । राम मारूति भी साईं महाराज के विशेष कृपा पात्र हैं।


मस्जिद से हम सँतुष्ट हो कर लौटे । आधी रात से कुछ देर पूर्व ही हम हरी का अँतिम सँस्कार कर पाए। उसके लिए लकडी इकट्ठा करने में मुश्किल हुई। बापाजी ने किसी प्रकार लकडी की व्यवस्था की और अँतिम सँस्कार हो पाया। यदि माधवराव देशपाँडे यहाँ होते तो इतनी मुश्किल ना होती, लेकिन वे अपनी पत्नि और बच्चों को लेने नगर गए हैं। सँस्कार में बहुत देर लगी। रात को ना तो भीष्म के भजन हुए और ना दीक्षित का पुराण ही हुआ।


जय साईं राम
ॐ साईं राम


१५ जनवरी १९१२-


मैं आज प्रातः जल्दी उठा, प्रार्थना की और काँकड आरती में सम्मिलित हुआ। आरती देर से शुरू हुई, क्योंकि मेधा अस्वस्थ है अतः उसे उठ कर शँख बजाने में देर हुई। साईं महाराज ने एक शब्द भी नहीं कहा और वे उठ कर चावडी से चले गए। उपासनी शास्त्री और बापू साहेब जोग देर से आए अतः मै पत्र लिखने बैठ गया। जब साईं महाराज बाहर जा रहे थे तब उन्होंने मुझसे पूछा कि मैंने सुबह कैसे बिताई। असल में यह एक हल्की फटकार थी कि उन्हें पता है कि मैंने प्रातः रामायण नहीं पढी।


साईं महाराज जब वापिस आए तब मैं पुनः उनके दर्शन के लिए गया। वे अत्यंत विनम्र थे। उन्होंने एक कहानी सुनाना शुरू किया। वे मेरी ओर देख कर ही कहानी सुना रहे थे, किन्तु मुझे नींद आ रही थी अतः मैं कहानी को बिल्कुल भी नहीं समझ सका। बाद में मुझे पता चला कि वह कहानी असल मे गुप्ते के जीवन में घटने वाली घटनाओं का ब्यौरा थी। दोपहर की आरती देर से हुई, और वापिस आ कर भोजन करते हुऐ ३ बज गए। मैंने कुछ देर आराम किया और फिर दीक्षित की पुराण में सम्मिलित हुआ। बाद में हम पुनः मस्जिद गए परन्तु हमें दूर से ही प्रणाम करने की आज्ञा हुई। हमने वैसा ही किया। जब साईं महाराज घूमने के लिए गए तब हमने उन्हें हमेशा की तरह प्रणाम किया।


कल दीक्षित ने मस्जिद में रोशनी की थी और आज भी उन्होंने वैसा ही किया। रात को रोज़ की तरह भीष्म के भजन और दीक्षित का पारायण हुआ।


जय साईं राम
ॐ साईं राम


१४ जनवरी १९१२-


प्रातः जल्दी उठा, प्रार्थना की और बापू साहेब जोग तथा राम मारूति के साथ बैठ कर रँगनाथी योग वशिष्ठ का पठन किया। साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन करते हुए भी पठन जारी रखा। जब बाबा वापस आए तब उनके दर्शन के लिए मस्जिद गया, परन्तु वे स्नान की तैयारी कर रहे थे, अतः मैं लौट आया और दो पत्र लिख कर पुनः मस्जिद गया।
साईं महाराज मेरे प्रति अत्यंत कृपालु थे, उन्होंने मुझे और बलवन्त को बापू साहेब जोग द्वारा लाया हुआ तिल गुड दिया।

दोपहर की आरती थोडी देर से हुई क्योंकि मेधा की तबियत अभी भी ठीक नहीं है और आज तिल सक्रान्ति होने के कारण 'परोस' (भक्तों के द्वारा लाया गया भोग का थाल) में भी कुछ देर हुई। जब तक हमने वापिस आ कर भोजन किया तब तक ४ बज गए थे। दीक्षित ने कुछ देर रामायण पढी किन्तु हम पाठ में आगे नहीं बढ पाए। पुनः मस्जिद गया परन्तु साईं महाराज किसी को प्रवेश की अनुमति नहीं दे रहे थे, अतः मैं बापू साहेब के घर की तरफ चल पडा । सन्ध्या के नमस्कार के लिए समय पर पहुँच गया। खाँडवा के तहसीलदार अभी यहीं हैं, और इस स्थान की दिनचर्या के अनुरूप धीरे धीरे ढल रहे हैं।


एक सज्जन श्री गुप्ते अपने भाई और परिवार के साथ आए हैं। उन्होंने कहा कि वे थाने में रहने वाले मेरे एक मित्र श्री बाबा गुप्ते के दूर के रिश्तेदार हैं। मैंने उनके साथ बैठकर कुछ देर बातचीत की। रात को शेज आरती , भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई। हम सभी ने सक्रान्ति भी मनाई।


जय साईं राम
ॐ साईं राम


१३ जनवरी १९१२-


मैं सुबह जल्दी उठा और काँकड आरती में सम्मिलित हुआ। आज साईं महाराज ने एक शब्द भी नहीं कहा और ना ही उस दृष्टि से सब को निहारा जैसे प्रतिदिन वे हमें देखते हैं। आज खाँडवा के तहसीलदार यहाँ आए हैँ। हमने उन्हें तब देखा जब वे रँगनाथ की योगवशिष्ठ पढ रहे थे। हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और जब वे वापिस लौटे तब दर्शन किए। कल जिन बालिकाओं ने भजन गाए थे वे आज भी आईं थीं। उन्होंने कुछ देर गाया, प्रसाद लिया और चली गईं।


दोपहर की आरती सुखद रूप से सम्पन्न हुई। मेघा की तबियत अभी भी ठीक नहीं है। माधवराव देशपाँडे के भाई बापाजी को सपत्नीक नाशते के लिए बुलाया था। खाँडवा के तहसीलदार अत्यंत सज्जन हैं, उन्होंने योगवशिष्ठ पढी। उन्होंने कहा कि उनकी धार्मिक प्रवृतियों के कारण अनेक लोगों ने उन्हें अनेक दुख दिए थे। दोपहर को कुछ देर आराम करने के बाद दीक्षित ने भावार्थ रामायण का ११वाँ अध्याय (बालकाण्ड) पढा जो योग वशिष्ठ का ही साराँश है तथा अति रोचक है। हमने साईं महाराज के उस समय फिर से दर्शन किए जब वे घूमने जा रहे थे। उनका स्वभाव बदला हुआ लगा, ऐसा प्रतीत हुआ कि वे नाराज़ हैं पर असल में वे रूष्ट नहीं थे। रात को रोज़ की भाँति भजन और रामायण का पाठ हुआ।


जय साईं राम
ॐ साईं राम

१२ जनवरी १९१२-


प्रातः जल्दी उठ कर प्रार्थना करने के बाद दिनचर्या प्रारंभ की ही थी कि नारायण राव के पुत्र गोविंद और भाई भाऊ साहेब आ गए। वे कुछ समय पूर्व हौशँगाबाद से अमरावती आए थे, किन्तु मुझे और मेरी पत्नि को वहाँ ना पा कर हम से मिलने यहाँ आ गए। स्वभाविक रूप से परस्पर मिल कर हम बहुत प्रसन्न हुए और बैठ कर बातें की। योगवशिष्ठ का पठन कुछ देर से शुरू हुआ, क्योंकि बापू साहेब जोग व्यस्त थे।


हमने साईं महाराज के मस्जिद से बाहर जाते हुए और फिर वापिस आते हुए दर्शन किए। उनके मुख पर अद्भुत तेज था और उन्होंने कई बार मुझ पर चिलम का धुआँ फेंका। आश्चर्यजनक रूप से मेरे मन की कई शँकाए दूर हो गईं और मेरा मन आनन्द से भर गया। दोपहर की आरती के बाद हमने खाना खाया और मैंने कुछ देर आराम किया। दीक्षित मस्जिद में ज्यादा देर तक रुके अतः उन्होंने रामायण पढना देर से शुरू किया। हम एक अध्याय भी पूरा नहीं पढ पाए क्योंकि वह बहुत लम्बा और कठिन भी था। इसके पश्चात हम मस्जिद में साईं महाराज के दर्शन के लिए गए। वहाँ दो लडकियाँ सँगीत के साथ गाना गा रही थीं और नाच रही थीं। रात को शेज आरती में सम्मिलित हुए। साईं महाराज (मेरे पुत्र) बलवन्त के प्रति अत्यँत दयालु हैं। उन्होंने उसे बुलवाया था और पूरी दोपहर उसके साथ बिताई।


जय साईं राम
ॐ साईं राम

१० जनवरी १९१२-

आज सुबह बहुत जल्दी उठ गया। दिन चढने के पूर्व ही मैंने प्रार्थना और सभी कार्य पूर्ण कर लिए। बाद में मस्जिद गया और साईं महाराज के बाहर जाते हुए और वापिस आते हुए दोनो बार दर्शन किए। आज एक मारवाडी वहाँ आया और उसने अपना एक स्वप्न सुनाया। उसने कहा कि स्वप्न में उसने देखा कि उसे बहुत सी चाँदी और सोने की छडे मिली । जब वह उन्हें गिन रहा था तब उसकी नींद खुल गई। साईं महाराज ने कहा कि स्वप्न दर्शाता है कि किसी बडे व्यक्ति की मृत्यु होने वाली है।


जय साईं राम

Monday, April 2, 2012

ॐ साईं राम

८ जनवरी १९१२-


आज सुबह उठा तो लगा कि अभी तो बहुत जल्दी है इसलिए फिर से सो गया और कुछ ज़्यादा ही सोया रहा। फलतः पूरी दिनचर्या प्रभावित हुई। प्रार्थना के बाद मैंने बापू साहेब जोग, उपासनी, राम मारूति और माधवराव देशपाँडे के साथ रँगनाथ की योग वशिष्ट पढी। हमने साईं महाराज को बाहर जाते हुए और फिर वापिस आते हुए देखा।


दोपहर की आरती के बाद साईं महाराज अचानक अत्याधिक क्रोधित लगे। वे उग्र भाषा का प्रयोग भी कर रहे थे। ऐसा लगता है कि यहाँ प्लेग के फिर से फैलने की सँभावना है और साईं महाराज उसे ही रोकने का प्रयास कर रहे हैं। भोजन के बाद हम कुछ देर वार्तालाप करते रहे। मैंने थोडी देर रामायण पढी। फिर कोपरगाँव के मामलेदार श्री सेन धूलिया के उप जिलाधीश श्री धूलिया के साथ आए। रामायण का एक अध्याय पढने के बाद हम साईं महाराज के दर्शन के लिए गए। साईं महाराज रोज़ की भाँति सैर के लिए गए थे, अतः हमने काफी देर उनका इंतज़ार किया। हम शेज आरती में सम्मिलित हुए। रात को रोज़ की भाँति भजन और रामायण हुई।

जय साईं राम
ॐ साईं राम


७ जनवरी १९१२-


प्रातः मैं जल्दी उठा और काँकड आरती में सम्मिलित हुआ। साईं महाराज अत्याधिक प्रसन्न थे और यौगिक दृष्टि से निहार रहे थे। मेरा लगभग पूरा दिन एक प्रकार के परमानन्द में बीता। उसके बाद मैने, बापू साहेब जोग और उपासनी ने रँगनाथ की योगवशिष्ट पढी। हमने साईं महाराज को बाहर जाते हुए देखा और फिर कुछ युवा यवनों के साथ बैठकर बातचीत की जो मस्जिद में आए थे। उनमें से एक ने कुरान की कुछ आयतें भी सुनाई। दोपहर की आरती कुछ देर से हुई।

साईं महाराज ने एक बहुत अच्छी कहानी सुनाई उन्होंने कहा उनका एक बहुत अच्छा कुआँ था। उसका पानी हल्के नीले रँग का था और अथाह था। चार "मोथ" भी उसे खाली नहीं कर सकते थे और उसके पानी से सिंचित फल असाधारण रूप से ताजे और स्वादिष्ट थे। इसके बाद की कहानी उन्होंने नहीं सुनाई।

दोपहर को दीक्षित ने रामायण के दो अध्याय पडे। उपासनी, मैं और राम मारूति वहीं थे। फिर हम साईं महाराज के पास गए और घूमने के लिए भी उनके साथ गए। अँधरा हो चला थे। वह शायद क्रोधित थ या उन्होंने दिखाया कि वह लकडी काटने वाली स्त्री से नाराज़ हैं। रात को भीष्म के भजन और दीक्षित के भजन सुने।


जय साईं राम
ॐ साईं राम

६ जनवरी १९१२-

मैं प्रातः दिन चडने के पूर्व ही उठ गया। रोज़ की भाँति प्रार्थना की और साईं महाराज को बाहर जाते हुए देखा। जब वे चले गए तो मैं बाला साहेब भाटे के पास गया और उनसे रँगनाथ स्वामी की मराठी में रचित योग वशिष्ठ की प्रति माँगी। परन्तु वापिस आ कर मैंने रामायण ही पढी। हम सभी ने दोपहर की आरती की और हमेशा की तरह भोजन किया। मैं दोपहर को लेटना नहीं चाहता था, किंतु शीघ्र ही नींद ने मुझे घेर लिया और मैं लगभग दो घँटे सोया।

दीक्षित ने रामायण पढी। बाद में मैं मस्जिद गया और साईं महाराज के दर्शन किए। वे प्रसन्न चित थे और किसी विषय पर चर्चा हो रही थी।

शाम को रोज़ की भाँति वाडे में आरती और रात को चावडी में शेज आरती में सम्मिलित हुआ। आझ साईं महाराज अत्याधिक प्रसन्न थे। उन्होंने मेधा की ओर देख कर कुछ गुप्त आध्यात्मिक ( mystic ) सँकेत किए, जिसे यौगिक भाषा में "दृष्टिपात" कहा जाता है। धूलिया से एक ज्योतिषी आए हैं और उपासनी के साथ वाडे में अतिथि बन कर ठहरे हैं। रात को भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण सुनी।

जय साईं राम
ॐ साईं राम

५ जनवरी १९१२-

यद्यपि मैं रात को ठीक से नहीं सो पाया परन्तु सुबह जल्दी उठ गया। मैं काँकड आरती में सम्मिलित हुआ। साईं महाराज प्रसन्न चित्त थे। मेरा पुत्र बाबा और गोपालराव दोरले उनके पास गए। उन दोनो को देखते ही साईं महाराज ने कहा " जाओ "। इसे शिरडी छोडने की अनुमति समझ कर दोनो ने बाला भाऊ का ताँगा किया और चले गए। मैंने प्रार्थना की , साईं महाराज को बाहर जाते हुए और जब वे लौटे तब आते हुए देखा। वे अत्यँत प्रसन्नचित्त थे। बहुत से लोग आए। दोपहर की आरती और भोजन के बाद मैं कुछ देर लेटा और दीक्षित की रामायण सुनी। वहाँ उपासनी, भीष्म और माधवराव भी उपस्थित थे।

लगभग शाम पाँच बजे मैं भीष्म और अपने पुत्र बलवँत के साथ साईं महाराज के दर्शन के लिए गया। उन्होने बताया कि किस प्रकार उनकी तबीयत ठीक नहीं थी और मजाक में ही अपनी बीमारी के बारे में बताया। बाला भाऊ जोशी भुना चना लाए थे। साईं महाराज ने थोडा खाया और बाकी बाँट दिया। फिर जब साईं महाराज घूमने निकले तब हम चावडी के पास खडे हुए। तदन्तर हमने वाडे में ही आरती, भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण सुनी। उन्होंने दो अध्याय पढे। आज धूलिया से कुछ लोग आए और लौट गए।

जय साईं राम!!!
ॐ साईं राम!!!


४ जनवरी १९१२-


आज सुबह जल्दी उठा, प्रार्थना की और अपने पुत्र बाबा और गोपालराव दोरले को साईं महाराज के पास जा कर अमरावती लौटने की अनुमति लेने को कहा, परन्तु मेरी पत्नी ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि आज पौष पू्र्णिमा है और कुल देवता की स्तुति का दिन है, अतः प्रस्थान के लिए अनुमति नहीं लेनी चाहिए। मैने हमेशा की तरह साईं महाराज को मस्जिद से बाहर जाते और वापिस आते हुए देखा। मध्य का समय मैंने रामायण पढते हुए बिताया। मध्यान आरती के बाद हम मस्जिद से वापिस लौटे और खाना खाने के बाद बापू साहेब जोग के साथ बैठ कर फिर से रामायण पढी। ५ बजे के बाद मैं फिर से मस्जिद गया और साईं महाराज को आँगन में घूमते हुए पाया। मेरी पत्नि भी वहाँ आई। कुछ समय के बाद बाबा अपने आसन पर विराजे, हम भी उनके पास आ बैठे। दीक्षित साहेब और उनकी पत्नि भी आए।


तब साईं महाराज ने एक कहानी सुनाई। उन्होंने कहा कि एक महल में एक राजकुमारी रहती थी। एक "मँग" ने उससे शरण माँगी । उसकी भाभी जो उस समय वहीं थी, उसने "मँग" को मना किया। वह मायूस हो कर अपनी पत्नि के साथ अपने गाँव लौट रहा था तब उसे अल्लाह मियाँ मिले। उसने उन्हें अपनी कहानी सुनाई कि किस प्रकार गरीबी से तँग आकर उसने राजकुमारी से शरण माँगी पर ठुकरा दिया गया। अल्लाह मियाँ ने उसे फिर से उसी राजकुमारी के पास जा कर पुनः शरण माँगने को कहा। उसने ऐसा ही किया और इस बार उसे महल में एक परिवार के सदस्य की तरह रहने की अनुमति मिली। ६ मास तक महल में ही रह कर उसने सब सुविधाऐं भोगी, किन्तु फिर सोने के लालच में उसने एक कुल्हाडी से राजकुमारी की हत्या कर दी। बहुत बडी सँख्या में लोग एक स्थान पर एकत्रित हुए और पँचायत की। "मँग" ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया। जब मुकदमा राजा के पास लाया गया तब अल्लाह मियाँ ने राजा को "मँग" को छोड देने को कहा। राजा ने अल्लाह मियाँ की बात मान कर उसे जाने दिया। जिस राजकुमारी की हत्या हुई थी वह "मँग" के घर पुत्री बन कर पैदा हुई। एक बार फिर "मँग" को राज महल में रहने की अनुमति मिली और वह १२ साल तक महल में सभी सुविधाऐं भोगता हुआ रहा।


तब अल्लाह मियाँ ने राजा को "मँग" से राजकुमारी की हत्या का बदला लेने के लिए प्रेरित किया। "मँग" उसी प्रकार मारा गया जिस प्रकार उसने राजकुमारी की हत्या की थी। "मँग" की विधवा पत्नि इसे विधाता का न्याय समझ कर गाँव लौट गई। राजकुमारी जो "मँग" की पुत्री बन कर पैदा हुई थी, उसने वह सब प्राप्त किया जो पिछले जन्म में उसका ही था और प्रसन्नता पूर्वक रहने लगी। इस प्रकार ईश्वर के कार्य और न्याय की स्थाप्ना हुई।


रात्रि में शेज आरती, भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई। जब साईं महाराज शेज आरती के लिए चावडी के जुलूस के साथ जा रहे थे तब राम मारूति ने उन्हें प्रणाम किया।


जय साईं राम!!!