ॐ साईं राम!!!
२८ दिसम्बर , १९११ ~~~
सुबह मेरे प्रार्थना करने के बाद , डाक्टर हाटे और श्री आर.डी.मोरेगावँकर को वापस जाने की अनुमति मिल गयी | इसी लिए वे लोग रवाना हो गए और उसके तुरंत बाद नानासाहेब चांदोरकर सी. वी. वैद्य और श्री नाटेकर 'हंस' आए | मैं श्री नाटेकर के साथ बहुत देर तक बातचीत करने बैठा , और फिर नानासाहेब और वैद्य से मिलने गया जो नजदीक ही एक तम्बू में ठहरे है | हंस ने हिमालय में बहुत समय तक यात्रा की हैं वे एक दीक्षित और स्वीकृत शिष्य है | इसीलिए उनका संभाषण बहुत ही स्फूर्ति दायक हैं | सी. वी. वैद्य को एक आँख में कुछ परेशानी है | वह सुर्ख लाल हो गयी है | श्री चांदोरकर हमेशा की तरह प्रसन्न चित्त हैं | हम दोपहर की आरती में उपस्थित हुए | त्रियम्बक राव , जिन्हें मारुती कहा जाता है बहुत नाराज़ है | आज वह पूजा में उपस्थित नहीं हुए और काफी रूठे हुए थे | माधव राव देशपांडे आज बेहतर हैं | वे लगभग पूरा दिन खड़े ही रहे | दीक्षित भी अतिथियों को बहुत लगन से निभा रहे हैं , जो बहुत भारी संख्या में हैं | श्री चांदोरकर आज कल्याण गए और बोले कि वे अगले रविवार को लौटेगे | मैं दोपहर में हंस से बाते करने बैठा और लगभग साईं महाराज के सैर पर निकलने के समय दर्शन करने तक बैठा रहा | आज उन्होंने किसी को भी वहां बैठने की अनुमति नहीं दी और हर किसी को ' उदी ' देकर भेज दिया | हंस राधाकृष्णआई के पास गए और शाम वही बिताई | वे बहुत अच्छा गाती हैं | और बहुत उत्तम भजन करती है | हमने भीष्म के भजन सुने जिसमें कई लोगों ने भाग लिया और फिर दीक्षित की रामायण हुई | मौरसी से दादा गोले यहाँ आए हैं | मेरे एक मुवक्किल रामाराव भी यहाँ हैं | वे मुझसे एक अपील लिखवाना चाहते हैं , उसके लिए बिलकुल समय नहीं हैं |
जय साईं राम!!!