ॐ साईं राम
उपरोक्त घटना की जानकारी उनके पुत्रों एवँ उनकी पत्नियों को तब तक नहीं हुई जब तक कि उन्होंने डायरी में किए गए उल्लेख को नहीं पढ़ा। उपरोक्त घटना के बाद लक्ष्मीबाई बिस्तर से नहीं उठीं , और आठ दिन के अँदर ही अर्थात २० जुलाई १९२८ को अपने सदगुरू साईं बाबा का दर्शन पा कर शाँति और सुखपूर्वक उनकी मृत्यु हो गई। उनके अँतिम समय की जानकारी सटीक तरीके से दादा साहेब के शब्दों में उनकी डायरी में उस दिन की प्रविष्टि में प्राप्त होती है-
" मैं अपनी पत्नि को देखने नीचे गया। स्पष्ट रूप से उनकी रात अच्छी नहीं बीती थी पर वह शाँत और सँयमित लग रही थीं। मेरे बड़े पुत्र के सुझाव पर परिवार के सभी सदस्यों ने जल्दी स्नान किया और मेरी पत्नि की शैय्या के पास एकत्रित हो गए। विशेष रूप से मैं पूरे समय उनके पास ही रहा। वह जिस कमरे में थीं, वहाँ से उन्हें निकाल कर उस कमरे के सामने लेटा दिया गया जिसमें हमने अपने देवी देवता को प्रतिष्ठित किया था। धीरे धीरे उनका श्वास गहरा और गहरा होता चला गया। पर वह शाँत और स्थिर थीं और लगभग शाम ३-१५ को उन्होने अँतिम श्वास लिया। मैं कुछ समय के लिए अभीभूत हो गया और अपने पर नियँत्रण नहीं रख सका। अँततः मैंने अपने ऊपर काबू पाया॰॰॰॰॰॰ सबने कहा कि वह बहुत सौभाग्यशाली थीं कि मेरे जीवन काल में ही उनकी मृत्यु हुई।
जब हम अँतिम सँस्कार से लौटे तब मैंने अपने पुत्र के मुख से सुना कि मेरी पत्नि ने कुछ सप्ताह पहले ही अपने सब गहने और कपड़े अपनी बहुओं और उनके बच्चों में बाँट दिए थे और कहा था कि वह अपनी सारी परिसँपत्ति से मुक्त हो गई हैं और उन्होंने सभी को खुश रहने का आशीर्वाद दिया ॰॰॰॰॰कि उन्हें उनके गुरू के दर्शन हुए॰॰॰॰॰अतः मुझे लगता है कि उन्हे इस बात का पूरा आभास था कि वह जाने वाली हैं। उन्होंने कभी दवाई नहीं माँगी और ना ही ठीक होने की इच्छा ही ज़ाहिर की। उन्होंने सुखपूर्वक अँतिम श्वास ली और मुझे इस बारे में कोई सँदेह नहीं है कि वह अब बहुत बहुत खुश है। "
जय साईं राम
उपरोक्त घटना की जानकारी उनके पुत्रों एवँ उनकी पत्नियों को तब तक नहीं हुई जब तक कि उन्होंने डायरी में किए गए उल्लेख को नहीं पढ़ा। उपरोक्त घटना के बाद लक्ष्मीबाई बिस्तर से नहीं उठीं , और आठ दिन के अँदर ही अर्थात २० जुलाई १९२८ को अपने सदगुरू साईं बाबा का दर्शन पा कर शाँति और सुखपूर्वक उनकी मृत्यु हो गई। उनके अँतिम समय की जानकारी सटीक तरीके से दादा साहेब के शब्दों में उनकी डायरी में उस दिन की प्रविष्टि में प्राप्त होती है-
" मैं अपनी पत्नि को देखने नीचे गया। स्पष्ट रूप से उनकी रात अच्छी नहीं बीती थी पर वह शाँत और सँयमित लग रही थीं। मेरे बड़े पुत्र के सुझाव पर परिवार के सभी सदस्यों ने जल्दी स्नान किया और मेरी पत्नि की शैय्या के पास एकत्रित हो गए। विशेष रूप से मैं पूरे समय उनके पास ही रहा। वह जिस कमरे में थीं, वहाँ से उन्हें निकाल कर उस कमरे के सामने लेटा दिया गया जिसमें हमने अपने देवी देवता को प्रतिष्ठित किया था। धीरे धीरे उनका श्वास गहरा और गहरा होता चला गया। पर वह शाँत और स्थिर थीं और लगभग शाम ३-१५ को उन्होने अँतिम श्वास लिया। मैं कुछ समय के लिए अभीभूत हो गया और अपने पर नियँत्रण नहीं रख सका। अँततः मैंने अपने ऊपर काबू पाया॰॰॰॰॰॰ सबने कहा कि वह बहुत सौभाग्यशाली थीं कि मेरे जीवन काल में ही उनकी मृत्यु हुई।
जब हम अँतिम सँस्कार से लौटे तब मैंने अपने पुत्र के मुख से सुना कि मेरी पत्नि ने कुछ सप्ताह पहले ही अपने सब गहने और कपड़े अपनी बहुओं और उनके बच्चों में बाँट दिए थे और कहा था कि वह अपनी सारी परिसँपत्ति से मुक्त हो गई हैं और उन्होंने सभी को खुश रहने का आशीर्वाद दिया ॰॰॰॰॰कि उन्हें उनके गुरू के दर्शन हुए॰॰॰॰॰अतः मुझे लगता है कि उन्हे इस बात का पूरा आभास था कि वह जाने वाली हैं। उन्होंने कभी दवाई नहीं माँगी और ना ही ठीक होने की इच्छा ही ज़ाहिर की। उन्होंने सुखपूर्वक अँतिम श्वास ली और मुझे इस बारे में कोई सँदेह नहीं है कि वह अब बहुत बहुत खुश है। "
जय साईं राम