ॐ साईं राम
हमें दादा साहेब खापर्डे की इस पश्च दृष्टि ( hindsight )को उद्धृत करने का मौका मिलेगा जब हम श्रीमति लक्ष्मीबाई खापर्डे की कथा को रेखाँकित करेंगे। इस रूपरेखा का स्त्रोत श्री जी॰एस॰खापर्डे के पुत्र श्री बी॰जी॰ खापर्डे द्वारा मराठी में लिखित उनके पिता की जीवनी है जो कि १९६२ में प्रकाशित की गई थी।
दादा साहेब की जीवनी में लक्ष्मीबाई खापर्डे के प्रारम्भिक जीवन के विषय में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती। हमें केवल उनके एक पत्नि, माँ और खापर्डे परिवार की गृहस्वामिनी के रूप में कुछ जानकारी मिलती है। इस विषय में कोई सँदेह नहीं है कि लक्ष्मीबाई इस तरह अर्ध शिक्षित कही जा सकती हैं कि वह पढ़ना तो जानती थीं पर लिखना नहीं। किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वह अशिक्षित थीं। असल में तो वह उच्च रूप से सुसँस्कृत थी। उन्होंने पढ़ा था और कीरताँकरों से रामायण, महाभारत, पाँडव-प्रताप, शिव लिंगायत आदि की कथाऐं भी सुनी थीं।
जय साईं राम
हमें दादा साहेब खापर्डे की इस पश्च दृष्टि ( hindsight )को उद्धृत करने का मौका मिलेगा जब हम श्रीमति लक्ष्मीबाई खापर्डे की कथा को रेखाँकित करेंगे। इस रूपरेखा का स्त्रोत श्री जी॰एस॰खापर्डे के पुत्र श्री बी॰जी॰ खापर्डे द्वारा मराठी में लिखित उनके पिता की जीवनी है जो कि १९६२ में प्रकाशित की गई थी।
दादा साहेब की जीवनी में लक्ष्मीबाई खापर्डे के प्रारम्भिक जीवन के विषय में कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती। हमें केवल उनके एक पत्नि, माँ और खापर्डे परिवार की गृहस्वामिनी के रूप में कुछ जानकारी मिलती है। इस विषय में कोई सँदेह नहीं है कि लक्ष्मीबाई इस तरह अर्ध शिक्षित कही जा सकती हैं कि वह पढ़ना तो जानती थीं पर लिखना नहीं। किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वह अशिक्षित थीं। असल में तो वह उच्च रूप से सुसँस्कृत थी। उन्होंने पढ़ा था और कीरताँकरों से रामायण, महाभारत, पाँडव-प्रताप, शिव लिंगायत आदि की कथाऐं भी सुनी थीं।
जय साईं राम