ॐ साईं राम
९-१२-१९११ की शिरडी डायरी से ऐसा प्रतीत होता है कि साईं बाबा श्रीमति खापर्डे को "आजीबाई" के नाम से पुकारते थे। १-२-१९१२ की एक अद्भुत प्रविष्टि प्राप्त होती है जिसकी व्याख्या जी॰एस॰खापर्डे ने १९२४ में या उसके लगभग श्री साईं लीला में शिरडी डायरी के प्रकाशन के समय एक पाद टिप्पणी में की है। यह प्रविष्टि और उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-
१-२-१९१२-
" मैंने १ फरवरी १९१२ को डायरी में लिखे पृष्ठ को पढा। मैंने अपनी भावनाओं को सही प्रकार से व्यक्त किया है। हमारे सदगुरू साईं महाराज ने निर्देश दिया। वे अँतरयामी थे और वे सब कुछ, यहां तक कि मेरे अँतःकरण में दबे हुए विचारों को भी भली भाँति जानते थे। उन्होंने उस निर्देश को कार्यान्वित करने को नहीं कहा। अब मेरा ध्यान इस विषय की ओर खींचा गया, मुझे ऐसा लगता है, कि उस समय मेरी पत्नि को दीनता ओर परिश्रम का जीवन पसँद नहीं था। काका साहेब दीक्षित उस जीवन को अपना चुके थे और प्रसन्न थे। इसीलिए साईं महाराज ने उन्हें मेरी पत्नि को दो सौ रुपये-'दीनता' और 'सब्र' देने को कहा।"
जय साईं राम
९-१२-१९११ की शिरडी डायरी से ऐसा प्रतीत होता है कि साईं बाबा श्रीमति खापर्डे को "आजीबाई" के नाम से पुकारते थे। १-२-१९१२ की एक अद्भुत प्रविष्टि प्राप्त होती है जिसकी व्याख्या जी॰एस॰खापर्डे ने १९२४ में या उसके लगभग श्री साईं लीला में शिरडी डायरी के प्रकाशन के समय एक पाद टिप्पणी में की है। यह प्रविष्टि और उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-
१-२-१९१२-
" मैंने १ फरवरी १९१२ को डायरी में लिखे पृष्ठ को पढा। मैंने अपनी भावनाओं को सही प्रकार से व्यक्त किया है। हमारे सदगुरू साईं महाराज ने निर्देश दिया। वे अँतरयामी थे और वे सब कुछ, यहां तक कि मेरे अँतःकरण में दबे हुए विचारों को भी भली भाँति जानते थे। उन्होंने उस निर्देश को कार्यान्वित करने को नहीं कहा। अब मेरा ध्यान इस विषय की ओर खींचा गया, मुझे ऐसा लगता है, कि उस समय मेरी पत्नि को दीनता ओर परिश्रम का जीवन पसँद नहीं था। काका साहेब दीक्षित उस जीवन को अपना चुके थे और प्रसन्न थे। इसीलिए साईं महाराज ने उन्हें मेरी पत्नि को दो सौ रुपये-'दीनता' और 'सब्र' देने को कहा।"
जय साईं राम