ॐ साईं राम
आइए अब हम श्री साईं सत्चरित्र के सातवें सर्ग में दिए उद्धरण की चर्चा करते हैं कि किस प्रकार साईं बाबा ने लक्ष्मी बाई खापर्डे को उनके पुत्र की बीमारी की चिन्ता से मुक्त किया था।
बालक खापर्डे को प्लेग
" अब मैं बाबा की एक दुसरी अद्भभुत लीला का वर्णन करुँगा । श्रीमती खापर्डे (अमरावती के श्री दादासाहेब खापर्डे की धर्मपत्नी) अपने छोटे पुत्र के साथ कई दिनों से शिरडी में थी । पुत्र तीव्र ज्वर से पीड़ित था, पश्चात उसे प्लेग की गिल्टी (गाँठ) भी निकल आई । श्रीमती खापर्डे भयभीत हो बहुत घबराने लगी और अमरावती लौट जाने का विचार करने लगी । संध्या-समय जब बाबा वायुसेवन के लिए वाड़े (अब जो समाधि मंदिर कहा जाता है) के पास से जा रहे थे, तब उन्होंने उनसे लौटने की अनुमति माँगी तथा कम्पित स्वर में कहने लगी कि मेरा प्रिय पुत्र प्लेग से ग्रस्त हो गया है, अतः अब मैं घर लौटना चाहती हूँ । प्रेमपूर्वक उनका समाधान करते हुए बाबा ने कहा, आकाश में बहुत बादल छाये हुए हैं । उनके हटते ही आकाश पूर्ववत् स्वच्छ हो जायगा । ऐसा कहते हुए उन्होंने कमर तक अपनी कफनी ऊपर उठाई और वहाँ उपस्थित सभी लोगों को चार अंडों के बराबर गिल्टियाँ दिखा कर कहा, देखो, मुझे अपने भक्तों के लिये कितना कष्ट उठाना पड़ता हैं । उनके कष्ट मेरे हैं । यह विचित्र और असाधारण लीला दिखकर लोगों को विश्वास हो गया कि सन्तों को अपने भक्तों के लिये किस प्रकार कष्ट सहन करने पड़ते हैं । संतों का हृदय मोम से भी नरम तथा अन्तर्बाहृ मक्खन जैसा कोमन होता है । वे अकारण ही भक्तों से प्रेम करते और उन्हे अपना निजी सम्बंधी समझते हैं ।"- अध्याय ७, श्री साईं सत्चरित्र।
इस घटना का उल्लेख शिरडी डायरी में दिनॉक ८-१-१९१२, १७-१-१९१२, २०-१-१९१२, ६-२-१९१२ और ८-२-१९१२ को मिलता है जिन्हें इस प्रकार सँकलित किया गया है-
८ जनवरी १९१२-
" दोपहर की आरती के बाद साईं महाराज अचानक अत्याधिक क्रोधित लगे। वे उग्र भाषा का प्रयोग भी कर रहे थे। ऐसा लगता है कि यहाँ प्लेग के फिर से फैलने की सँभावना है और साईं महाराज उसे ही रोकने का प्रयास कर रहे हैं।"
१७ जनवरी १९१२-
" बलवन्त भी उदास लग रहा था , उसने कहा कि वह शिरडी से जाना चाहता है।"
१८ जनवरी १९१२-
" मैं यह बताना भूल गया कि जब साईं महाराज क्रोध में कुछ कह रहे थे तब उन्होंने यह भी कहा था कि उन्होंने मेरे पुत्र की रक्षा की थी और कई बार यह वाक्य भी दोहराया कि "फकीर दादासाहेब (अर्थात मुझे) को मारना चाहता है पर मैं ऐसा करने की आज्ञा नहीं दूँगा। उन्होंने एक और नाम का उल्लेख भी किया परन्तु वह मुझे अब याद नहीं है।"
२० जनवरी १९१२-
" भीष्म और मेरे पुत्र बलवन्त की तबियत ठीक नहीं है।॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰आज भजन नहीं हुए क्योंकि भीष्म अस्वस्थ हैं और बलवन्त की तबियत पहले से ज़्यादा खराब है।"
६ फरवरी १९१२-
" जब मेरी पत्नि ने मेरे जाने के बारे में पूछा तो साईं बाबा ने कहा कि मैंने उनसे व्यक्तिगत रूप से जाने की आज्ञा नहीं माँगी, अतः वे कुछ नहीं कह सकते।"
८ फरवरी १९१२-
" आज तीन सप्ताह में पहली बार बलवन्त ने बाहर मस्जिद तक जाने का साहस किया, और अपना सिर साईं महाराज के चरणों में रखा। उसमें काफी सुधार हुआ है।"
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम
आइए अब हम श्री साईं सत्चरित्र के सातवें सर्ग में दिए उद्धरण की चर्चा करते हैं कि किस प्रकार साईं बाबा ने लक्ष्मी बाई खापर्डे को उनके पुत्र की बीमारी की चिन्ता से मुक्त किया था।
बालक खापर्डे को प्लेग
" अब मैं बाबा की एक दुसरी अद्भभुत लीला का वर्णन करुँगा । श्रीमती खापर्डे (अमरावती के श्री दादासाहेब खापर्डे की धर्मपत्नी) अपने छोटे पुत्र के साथ कई दिनों से शिरडी में थी । पुत्र तीव्र ज्वर से पीड़ित था, पश्चात उसे प्लेग की गिल्टी (गाँठ) भी निकल आई । श्रीमती खापर्डे भयभीत हो बहुत घबराने लगी और अमरावती लौट जाने का विचार करने लगी । संध्या-समय जब बाबा वायुसेवन के लिए वाड़े (अब जो समाधि मंदिर कहा जाता है) के पास से जा रहे थे, तब उन्होंने उनसे लौटने की अनुमति माँगी तथा कम्पित स्वर में कहने लगी कि मेरा प्रिय पुत्र प्लेग से ग्रस्त हो गया है, अतः अब मैं घर लौटना चाहती हूँ । प्रेमपूर्वक उनका समाधान करते हुए बाबा ने कहा, आकाश में बहुत बादल छाये हुए हैं । उनके हटते ही आकाश पूर्ववत् स्वच्छ हो जायगा । ऐसा कहते हुए उन्होंने कमर तक अपनी कफनी ऊपर उठाई और वहाँ उपस्थित सभी लोगों को चार अंडों के बराबर गिल्टियाँ दिखा कर कहा, देखो, मुझे अपने भक्तों के लिये कितना कष्ट उठाना पड़ता हैं । उनके कष्ट मेरे हैं । यह विचित्र और असाधारण लीला दिखकर लोगों को विश्वास हो गया कि सन्तों को अपने भक्तों के लिये किस प्रकार कष्ट सहन करने पड़ते हैं । संतों का हृदय मोम से भी नरम तथा अन्तर्बाहृ मक्खन जैसा कोमन होता है । वे अकारण ही भक्तों से प्रेम करते और उन्हे अपना निजी सम्बंधी समझते हैं ।"- अध्याय ७, श्री साईं सत्चरित्र।
इस घटना का उल्लेख शिरडी डायरी में दिनॉक ८-१-१९१२, १७-१-१९१२, २०-१-१९१२, ६-२-१९१२ और ८-२-१९१२ को मिलता है जिन्हें इस प्रकार सँकलित किया गया है-
८ जनवरी १९१२-
" दोपहर की आरती के बाद साईं महाराज अचानक अत्याधिक क्रोधित लगे। वे उग्र भाषा का प्रयोग भी कर रहे थे। ऐसा लगता है कि यहाँ प्लेग के फिर से फैलने की सँभावना है और साईं महाराज उसे ही रोकने का प्रयास कर रहे हैं।"
१७ जनवरी १९१२-
" बलवन्त भी उदास लग रहा था , उसने कहा कि वह शिरडी से जाना चाहता है।"
१८ जनवरी १९१२-
" मैं यह बताना भूल गया कि जब साईं महाराज क्रोध में कुछ कह रहे थे तब उन्होंने यह भी कहा था कि उन्होंने मेरे पुत्र की रक्षा की थी और कई बार यह वाक्य भी दोहराया कि "फकीर दादासाहेब (अर्थात मुझे) को मारना चाहता है पर मैं ऐसा करने की आज्ञा नहीं दूँगा। उन्होंने एक और नाम का उल्लेख भी किया परन्तु वह मुझे अब याद नहीं है।"
२० जनवरी १९१२-
" भीष्म और मेरे पुत्र बलवन्त की तबियत ठीक नहीं है।॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰आज भजन नहीं हुए क्योंकि भीष्म अस्वस्थ हैं और बलवन्त की तबियत पहले से ज़्यादा खराब है।"
६ फरवरी १९१२-
" जब मेरी पत्नि ने मेरे जाने के बारे में पूछा तो साईं बाबा ने कहा कि मैंने उनसे व्यक्तिगत रूप से जाने की आज्ञा नहीं माँगी, अतः वे कुछ नहीं कह सकते।"
८ फरवरी १९१२-
" आज तीन सप्ताह में पहली बार बलवन्त ने बाहर मस्जिद तक जाने का साहस किया, और अपना सिर साईं महाराज के चरणों में रखा। उसमें काफी सुधार हुआ है।"
आगे जारी रहेगा॰॰॰॰॰॰॰॰॰
जय साईं राम