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Thursday, June 28, 2012

ॐ साईं राम


९ मार्च, शनिवार, १९१२-


प्रातः मैं काँकड़ आरती में सम्मिलित हुआ। साईं महाराज बहुत आनन्दित भाव में प्रतीत हो रहे थे। उन्होंने हम सब को हमेशा कि तरह यह कहते हुए आशीर्वाद दिया कि ईश्वर ही सर्वोपरि है। उसके बाद वे मस्जिद में चले गए। मैं वापिस आया, प्रार्थना की और पँचदशी की सँगत के लिए तैयारी कर ही रहा था कि बम्बई से धानजीशा आ गए। वह साईं साहेब के लिए बहुत बढ़िया फल लाए थे। हमने बैठ कर बात की और साईं साहेब के बाहर जाते हुए दर्शन किए। हमने अपनी सँगत की परन्तु ज़्यादा प्रगति नहीं कर पाए। 


मैं रोज़ाना की तरह मस्जिद गया। साईं साहेब ने दो चिड़ियों की कहानी सुनाई जो "निम्बर" की दक्षिण दिशा की ओर ऊँचे स्थान पर बैठी थीं। उन्होंने कहा कि चिडियों ने वहाँ घोंसला बनाया और वहीं बैठा करती थीं जहाँ वे अभी बैठी थीं। मृत्यु ने उनको घेर लिया। वह एक सर्प के रूप में आई जो कि "निम्बर" पर रेंग कर चढ़ गया और उन दोनों को निगल गया। चिड़ियों ने पुनः जन्म लिया और अपना घोंसला बिल्कुल उसी स्थान पर बनाया जहाँ वह पहले था, और वे वहीं बैठती हैं जहाँ पहले बैठती थी। साईं बाबा ने कहा कि उन्होंने कभी भी उन्हें हाथ नहीं लगाया और ना ही कभी उनसे बात की।


उन्होंने धानजीशा की पूजा को स्वीकार कर लिया और फूल मालाओं को उससे कहीं ज़्यादा देर धारण किए रहे जितना कि वह वैसे करते थे। उन्हें फूल पसँद आए, और उन्होंने कुछ अँगूर खाए। धानजीशा स्वाभाविक रूप से मेरे साथ ही ठहरे हैं। भोजन के बाद मैं कुछ देर लेट गया और फिर हमने अपनी पँचदशी की सँगत की या कहें तो उसे आगे बढ़ाया। हमें वह हिस्सा बहुत पसँद आया। 


सूर्यास्त के समय हमने साईं महाराज के उनकी सैर के समय दर्शन किए। वे प्रसन्नचित्त थे किन्तु उन्होंने कहा कि उन्हें ध्वजपट की जरूरत नहीं है, उन्हें तो लोग चाहिए। रात्रि में भीष्म ने "स्वामीभाव दिनकर" और दासबोध का पठन किया। बाला साहेब भाटे भी आए। वहाँ भजन भी हुए।


जय साईं राम