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Thursday, June 28, 2012


ॐ साईं राम


सँगमनेर से लोकमान्य तिलक की शिरडी यात्रा-
१९ मई, १९१७-


मैं प्रातः जल्दी उठा पर इतने लोग एकत्रित थे कि मैं प्रार्थना नहीं कर सका। वहाँ हम लोगों को रोके रखने के लिए और दोपहर तक हमें ना जाने देने के लिए एक लहर सी चल रही थी और केलकर ऊपना पूरा ज़ोर लहर के पक्ष में लगा रहे थे परन्तु अत्यँत अप्रत्याशित रूप से मुझे क्रोध आ गया और मैंने चल पड़ने के लिए ज़ोर दिया। अतः सँगमनेर के एक प्रमुख प्रवक्ता श्रीमान सँत के घर पान सुपारी के बाद हम सुबह लगभग ८॰३० बजे चल पड़े। रास्ते में एक पँचर के बाद हम लगभग १० बजे शिरडी पहुँचे।


हम दीक्षित के वाड़े में रुके। बापू साहेब बूटी , नारायण राव पँडित और बूटी के नौकर चाकर यहाँ हैं। मेरे पुराने मित्र माधवराव देशपाँडे , बाला साहेब भाटे, बापू साहेब जोग और अन्य सभी एकत्रित हुए। हम मस्जिद में गए और साईं महाराज को सम्मान पूर्वक प्रणाम किया। मैंने उन्हें इतना खुश पहले कभी नहीं देखा। उन्होंने हमेशा की तरह दक्षिणा माँगी और हम सबने दी। लोकमान्य की ओर देखते हुए उन्होंने कहा- "लोग बुरे हैं, स्वयँ को अपने तक ही सीमित रखो।" मैंने उन्हें प्रणाम किया और उन्होंने मुझसे कुछ रुपये लिए। केलकर और पारेगाँवकर ने भी दिए। 


माधवराव देशपाँडे ने हमारे यिओला जाने के लिए आज्ञा माँगी। साईं साहेब ने कहा-" तुम इतनी धूप में रास्ते में मरने के लिए क्यों जाना चाहते हो? अपना भोजन यहीं करो और शाम की ठँडक में चले जाना। शामा इन लोगों को भोजन कराओ।" अतः हम रूक गए, हमारा भोजन माधवराव देशपाँडे के साथ किया, कुछ देर लेट गए और पुनः मस्जिद में गए और देखा कि साई महाराज लेटे हुए थे, मानों सो रहे हों। 


लोगों ने लोकमान्य को चावड़ी में पान सुपारी दी और हम मस्जिद में वापिस लौटे। साईं महाराज बैठे हुए थे, उन्होंने हमें ऊदी और जाने की अनुमति दी अतः हम मोटर से चले।


जय साईं राम