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Thursday, June 28, 2012

ॐ साईं राम

५ जून, बुधवार, १९१२-
अमरावती-


मैं रोज़ के मुकाबले ज़रा जल्दी ही उठ गया, प्रार्थना की और फिर कुछ देर बरामदे में घूमने के बाद हॅाल में बैठा। मुझे साईं बाबा के श्रीमति करखानिस के विषय में दिए गए आदेशों को ले कर कई पत्र लिखने हें। मैंने माधवराव देशपाँडे, शिरडी के गोपाल राव जोशी और स्वयँ साईं बाबा को भी पत्र लिखा। फिर मैंने एक पत्र श्रीमति करखानिस के पिता को भी लिखा। दोपहर के खाने के बाद मैं कुछ देर लेट गया और फिर बैठ कर पढ़ने लगा। मैंने दोपहर को भी कुछ पत्र लिखे। 


वी॰ के॰ काले उपनिषद के पठन के लिए कुछ जल्दी आए पर यिओतवाल के श्रीमान भाऊजी पेशवे आ गए और हम बैठ कर बात करने लगे। बेचारे पेशवे दिमाग से कुछ प्रभावित हैं। वह कोई काम नहीं करते और सबसे बुरी बात यह है कि वह अपने ही लोगों और सँबँधियों से नफरत करते हैं। उनके वृद्ध पिता स्वाभाविक रूप से बहुत चिन्तित रहते हैं। 


मैंने शाम की सैर पेशवे और वी॰ के॰ काले के साथ की। बमनगाँवकर भी आए। हमने बैठ कर वी॰क॰काले का लिखा हुआ एक निबँध और माँडुक्य के एक भाग का पठन भी किया। वहाँ कई मुवक्किल भी थे। मैंने उन्हें कल सुबह आने को कहा। रात को ब्वाजी और जयँतराव आए और हमने बैठ कर बात की।


जय साईं राम