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Thursday, June 28, 2012

ॐ साईं राम

१८ जून, मँगलवार, १९१२-
अमरावती-

प्रातः मैं जल्दी उठा, प्रार्थना की और मुतसुई भूषण कुइशा के मुकद्दमें के प्राधिकारियों को नोट किया। मैंने श्रीमान पराँजपे के मुकद्दमें की गवाही के कागज़ात भी देखे। सुबह का नाशता जल्दी कर के मैं अपने पुत्र बाबा और भाऊ दुर्रानी के साथ न्यायलय गया। श्रीमान प्राइस के सम्मुख वाला मुकद्दमा स्थगित कर दिया गया। मैं श्रीमान पराँजपे के सम्मुख प्रस्तुत हुआ। दूसरे पक्ष के पास सिर्फ दो गवाह थे और उसमें से एक की ही गवाही हुई और मुकद्दमा स्थगित हो गया। 


उसके बाद मैं बार रूम में गया , काँगा को खोजा किन्तु वह नहीं मिला और छोटे न्यायलय में चला गया। वहाँ मुझे लगभग दो घँटे से ज़्यादा प्रतीक्षा करनी पड़ी। श्रीमान काँगा शाम ३ बजे के बाद आए। फिर मुकद्दमें पर बहस हुई और उन्हें हमारा एक मुद्दा मानना पड़ा। मुकद्दमा स्थगित हो गया और मैं घर लौटा। असनारे वहाँ थे पर वह दूसरी तरफ से हाजिर हुए थे। 

शाम को वी॰क॰काले, असनारे, शामराव देशपाँडे, करँदिकर और अन्य लोग आए और हम बैठ कर बातें करने लगे। मैं यह बताना भूल गया कि मेरा तीसरा पुत्र बलवन्त आज सुबह सतारा से वापिस आ गया। वह कुछ दिन पूना में रुका और रास्ते में तिलक परिवार से मिला। वह पूना में श्रीमान भुसारी के साथ रुका था। 

मैंने शिरडी के माधवराव देशपाँडे को करखानिस के साथ हुई बातचीत का पूरा ब्यौरा पत्र मे लिखा।

जय साईं राम