ॐ साईं राम
२७ फरवरी, मँगलवार, १९१२-
मैं रोज़ की तरह उठा, प्रार्थना की और पँचदशी की सँगत की। एक बार हम साईं बाबा के बाहर जाते हुए दर्शन नहीं कर पाए, और तब तक उन्हें नहीं देखा जब तक कि वे वापिस नहीं आए। मैं लगभग ११॰१५ बजे मस्जिद गया। साईं बाबा ने कहा कि वे एक खेत के पास से गुज़रे जिसमे कि बहुत बड़े तोते थे। वह तोते बाबा की मौजूदगी से नहीं घबराए और वे उनके आकार और रँगों को प्रशँसनीय दृष्टि से देखते हुए देर तक वहाँ खड़े रहे।
दोपहर की आरती रोज़ की तरह सम्पूर्ण हुई और दोपहर के भोजन के बाद मैं थोडी देर लेटा और फिर हमने पँचदशी की सँगत को, लगभग रात होने तक आगे बढाया, जब तक कि हम साईं महाराज के उनकी शाम की सैर के समय दर्शन करने नहीं गए। रात को वाड़ा आरती और फिर शेज आरती हुई। भीष्म ने भागवत और दासबोध का पाठ किया।
जय साईं राम
२७ फरवरी, मँगलवार, १९१२-
मैं रोज़ की तरह उठा, प्रार्थना की और पँचदशी की सँगत की। एक बार हम साईं बाबा के बाहर जाते हुए दर्शन नहीं कर पाए, और तब तक उन्हें नहीं देखा जब तक कि वे वापिस नहीं आए। मैं लगभग ११॰१५ बजे मस्जिद गया। साईं बाबा ने कहा कि वे एक खेत के पास से गुज़रे जिसमे कि बहुत बड़े तोते थे। वह तोते बाबा की मौजूदगी से नहीं घबराए और वे उनके आकार और रँगों को प्रशँसनीय दृष्टि से देखते हुए देर तक वहाँ खड़े रहे।
दोपहर की आरती रोज़ की तरह सम्पूर्ण हुई और दोपहर के भोजन के बाद मैं थोडी देर लेटा और फिर हमने पँचदशी की सँगत को, लगभग रात होने तक आगे बढाया, जब तक कि हम साईं महाराज के उनकी शाम की सैर के समय दर्शन करने नहीं गए। रात को वाड़ा आरती और फिर शेज आरती हुई। भीष्म ने भागवत और दासबोध का पाठ किया।
जय साईं राम