ॐ साईं राम
४ मार्च, सोमवार, १९१२-
मैं प्रातः जल्दी उठा, प्रार्थना की और पँचदशी की सँगत की। हमने साईं बाबा कै बाहर जाते हुए दरशन किए और मैं रोज़ाना की तरह लगभग ११ बजे मस्जिद गया। साईं बाबा बहुत आनन्दित भाव में थे, बैठ कर बातें करते रहे, किन्तु उन्होंने बताने लायक कोई कहानी नहीं सुनाई।
दोपहर की आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई। मेरी पत्नि को साईं साहेब की पूजा करने के लिए जाने में देर हुई, लेकिन साईं साहेब ने अत्यँत कृपा पूर्वक अपना भोजन बीच में ही रोक कर उसे पूजा करने दी। दोपहर को हमने अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत को आगे बढाया जो कि लगभग अँधेरा होने तक चली जब कि हम साईं बाबा की सैर कि समय उनके दर्शन कि लिए गए। वाड़ा आरती के बाद शेज आरती हुई। वहाँ रोज़ की अपेक्षा ज़्यादा सँगीत था और साईं बाबा पूरे समय बहुत चुपचाप थे। रात को भीष्म ने भागवत और दासबोध का पाठ किया। दासबोध के अध्ययन के समय श्रीमान बाला साहेब भाटे भी मौजूद थे।
जय साईं राम
४ मार्च, सोमवार, १९१२-
मैं प्रातः जल्दी उठा, प्रार्थना की और पँचदशी की सँगत की। हमने साईं बाबा कै बाहर जाते हुए दरशन किए और मैं रोज़ाना की तरह लगभग ११ बजे मस्जिद गया। साईं बाबा बहुत आनन्दित भाव में थे, बैठ कर बातें करते रहे, किन्तु उन्होंने बताने लायक कोई कहानी नहीं सुनाई।
दोपहर की आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई। मेरी पत्नि को साईं साहेब की पूजा करने के लिए जाने में देर हुई, लेकिन साईं साहेब ने अत्यँत कृपा पूर्वक अपना भोजन बीच में ही रोक कर उसे पूजा करने दी। दोपहर को हमने अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत को आगे बढाया जो कि लगभग अँधेरा होने तक चली जब कि हम साईं बाबा की सैर कि समय उनके दर्शन कि लिए गए। वाड़ा आरती के बाद शेज आरती हुई। वहाँ रोज़ की अपेक्षा ज़्यादा सँगीत था और साईं बाबा पूरे समय बहुत चुपचाप थे। रात को भीष्म ने भागवत और दासबोध का पाठ किया। दासबोध के अध्ययन के समय श्रीमान बाला साहेब भाटे भी मौजूद थे।
जय साईं राम