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Saturday, May 12, 2012

ॐ साईं राम


२१ फरवरी, बुधवार, १९१२-


मैं रोज़ाना की तरह उठा पर देवाजी, जिन्हें हम साक्षातकारी बुवा कहते हैं, के द्वारा किए गए शोर के कारण मेरी प्रार्थना में विघ्न पडा। मैं अपने मस्तिष्क को नियँत्रित करने में सफल रहा और अपनी प्रार्थना समाप्त की। बाद में हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए और पँचदशी के पाठ की सँगत की। इसके बाद हम मस्जिद में गए और वहाँ हमने बड़ोदा के शिरके परिवार की महिलाओं को साईं बाबा की सेवा करते हुए देखा। आज बम्बई से एक नर्तकी आई और उसने मस्जिद में कुछ गीत गाए। उसने कहा कि वह बाल कृष्ण बुवा की शिष्या है। साईं महाराज ने उसके गीत सुने। उसके बाद दोपहर की आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई। साईं बाबा अत्यँत प्रसन्नचित्त थे।


दोपहर के भोजन के बाद मैं कुछ देर के लिए लेटा और फिर हमने रोज़ के सदस्यों के साथ अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत की। सूर्यास्त के लगभग हम साईं महाराज की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गए, दोबारा वाड़ा आरती के समय और शेज आरती के समय भी। शोभायात्रा और उसके सभी प्रबँध आज बहुत भव्य थे। भजन भी मँजीरे आदि के साथ हुए। शेज आरती के बाद बम्बई की नर्तकी ने मस्जिद में भी कुछ गीत गाए। रात्रि में भीष्म ने भागवत और दासबोध का पठन किया।


जय साईं राम