ॐ साईं राम
६ मार्च, बुधवार, १९१२-
मैं रात को गहरी नींद सोया और परिणामस्वरूप प्रातः मैंने बहुत अच्छा महसूस किया। मेरे प्रार्थना समाप्त करने के बाद, हमने अपनी पँचदशी की सँगत की और उसी दौरान हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए। हमने कूटास्था दीप को समाप्त किया और ध्यानस्दीप की शुरूआत की। सँगत के बाद मैं रोज़ाना की तरह मस्जिद में गया, साईं बाबा बहुत आन्न्दित थे अतः मैं बैठ कर उनकी सेवा करने लगा। उन्होंने कहा कि उन्हें लगा कि वे कमर, छाती, और गर्दन से जकड़े गए हैं, कि उन्होंने सोचा कि उनकी आँखों में नागावेली के पत्ते डाल दिए गए हैं, आँखे खोलने पर उन्हें पता चला कि माजरा क्या था, उन्होंने देखा कि कुछ ऐसा था जिसे वे समझ नहीं पाए। उन्होंने उसकी एक लात पकड़ी तो वह नीचे लेट गया। उन्होंने आग जलाने की कोशिश की, पर लकड़ी पूरी सूखी नहीं थी अतः नहीं जली। उन्हें लगा कि उन्होंने चार मृत शरीर निकलते हुए देखे पर वे समझ नहीं पाए कि वह किसके थे। साईं साहेब उसी लय में बोलते रहे कि उनके ऊपर के बाएँ और नीचे के जबड़े में इतना दर्द था कि वे पानी भी नहीं पी सकते थे।
दोपहर की आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई और भोजन के बाद मैं कुछ देर लेटा और फिर वाक्यामृत का पठन करने बैठा। बाद में हमने पँचदशी की सँगत अँधेरा होने तक की और फिर साईं साहेब की सैर के समय उनका दर्शन किया। वाड़ा आरती के बाद शेज आरती हुई। कँदीलों के चक्र को हमेशा की तरह जुलूस में नहीं ले जाया जा सका, अतः उन्हें उस छोटे से कमरे में रख दिया गया जहाँ साईं साहेब सोते हैं। इससे काफी असुविधा हुई और मुझे नहीं लगता कि साईं साहेब ने यह पसँद किया।
रात्रि में भीष्म ने भागवत और दासबोध का पाठ किया। बाला साहेब भाटे दासबोध के पाठ में सम्मिलित हुए।
जय साईं राम
६ मार्च, बुधवार, १९१२-
मैं रात को गहरी नींद सोया और परिणामस्वरूप प्रातः मैंने बहुत अच्छा महसूस किया। मेरे प्रार्थना समाप्त करने के बाद, हमने अपनी पँचदशी की सँगत की और उसी दौरान हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए। हमने कूटास्था दीप को समाप्त किया और ध्यानस्दीप की शुरूआत की। सँगत के बाद मैं रोज़ाना की तरह मस्जिद में गया, साईं बाबा बहुत आन्न्दित थे अतः मैं बैठ कर उनकी सेवा करने लगा। उन्होंने कहा कि उन्हें लगा कि वे कमर, छाती, और गर्दन से जकड़े गए हैं, कि उन्होंने सोचा कि उनकी आँखों में नागावेली के पत्ते डाल दिए गए हैं, आँखे खोलने पर उन्हें पता चला कि माजरा क्या था, उन्होंने देखा कि कुछ ऐसा था जिसे वे समझ नहीं पाए। उन्होंने उसकी एक लात पकड़ी तो वह नीचे लेट गया। उन्होंने आग जलाने की कोशिश की, पर लकड़ी पूरी सूखी नहीं थी अतः नहीं जली। उन्हें लगा कि उन्होंने चार मृत शरीर निकलते हुए देखे पर वे समझ नहीं पाए कि वह किसके थे। साईं साहेब उसी लय में बोलते रहे कि उनके ऊपर के बाएँ और नीचे के जबड़े में इतना दर्द था कि वे पानी भी नहीं पी सकते थे।
दोपहर की आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई और भोजन के बाद मैं कुछ देर लेटा और फिर वाक्यामृत का पठन करने बैठा। बाद में हमने पँचदशी की सँगत अँधेरा होने तक की और फिर साईं साहेब की सैर के समय उनका दर्शन किया। वाड़ा आरती के बाद शेज आरती हुई। कँदीलों के चक्र को हमेशा की तरह जुलूस में नहीं ले जाया जा सका, अतः उन्हें उस छोटे से कमरे में रख दिया गया जहाँ साईं साहेब सोते हैं। इससे काफी असुविधा हुई और मुझे नहीं लगता कि साईं साहेब ने यह पसँद किया।
रात्रि में भीष्म ने भागवत और दासबोध का पाठ किया। बाला साहेब भाटे दासबोध के पाठ में सम्मिलित हुए।
जय साईं राम