ॐ साईं राम
२९ फरवरी, बृहस्पतिवार, १९१२-
मैंने प्रातः प्रार्थना की और रोज़ाना की तरह पँचदशी के पाठ की सँगत की। जब हम सँगत कर ही रहे थे, तब साईं बाबा वहाँ से गुज़रे और हमने उन्हें साठे वाड़ा के समीप देखा। वे बहुत थके हुए लग रहे थे। मैंने उन्हें तब भी देखा जब वे लौटे, और वे बहुत शाँत चित्तवृत्ति में थे। उन्होंने कहा कि बाला साहेब भाटे एक "खत्री" थे, उनकी पत्नि एक "सालिन", अर्थात एक बुनकर थी और उनका पुत्र बाबू भी एक सालिन था। साईं साहेब ने आगे कहा कि वासुदेव काका अपने पिछले जन्म में एक राजपूत था और उसका नाम जयसिंह था, कि वह मॅास खाने का बहुत शौकीन था, और साईं साहेब और अन्य उसे यह कह कर बहुत नाराज़ कर देते थे कि क्या उसे बकरे का सिर चाहिए, कि इस जयसिंह के तीन पुत्र थे जो कि सेना में काम करते थे एक बेटी थी, जिसका चरित्र ठीक नहीं था। वह एक नाई की रखैल बनी, उसके बच्चे हुए और फिर वह मर गई।
दोपहर की आरती रोज़ की तरह सम्पन्न हुई, सिवाय इसके कि वामन तात्या आरती के बाद आए, वे पूजा करना चाहते थे पर उन्हें कटु शब्दों की अच्छी खुराक मिली। दोपहर के भोजन के बाद मैं कुछ देर के लिए लेटा और फिर हमने अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत तब तक की, जब तक हम साईं महाराज की शाम की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गए।
वाड़ा आरती के बाद मैं चावड़ी के जुलूस में और शेज आरती में सम्मिलित होने के लिए मस्जिद में गया। साईं साहेब क्रोधित भाव में थे, उन लोगों को भला बुरा कह रहे थे जो मस्जिद की छत पर दिए जलाने के लिए चढे थे, और जब जुलूस शुरू हुआ, तब उन्होंने बापू साहेब जोग की पत्नि श्रीमति ताई जोग पर अपना सटका भी फेंका। चावड़ी में मुझे लगा कि वे बापू साहेब जोग पर हाथ उठाऐंगे, पर कुछ समय बाद उन्होंने अपने सटके से बाला शिम्पी की पिटाई की और बाद में त्रियम्बक राव जिन्हें वे मारूति कहते हैं, की भी। बाला शिम्पी भाग गए परन्तु त्रियम्बक राव ने खडे रह कर वार को झेला और साईं साहेब के सामने दँडवत किया। मुझे लगता है कि उसे अपार कृपा प्राप्त हुई और वह कम से कम एक स्तर तो आगे बढा ही। जब हम लौटे तब साईं साहेब ज़ोर से बोल रहे थे। मैंने बैठ कर बाला साहेब भाटे के साथ बात की। भीष्म ने भागवत और दासबोध का पठन किया।
जय साईं राम
२९ फरवरी, बृहस्पतिवार, १९१२-
मैंने प्रातः प्रार्थना की और रोज़ाना की तरह पँचदशी के पाठ की सँगत की। जब हम सँगत कर ही रहे थे, तब साईं बाबा वहाँ से गुज़रे और हमने उन्हें साठे वाड़ा के समीप देखा। वे बहुत थके हुए लग रहे थे। मैंने उन्हें तब भी देखा जब वे लौटे, और वे बहुत शाँत चित्तवृत्ति में थे। उन्होंने कहा कि बाला साहेब भाटे एक "खत्री" थे, उनकी पत्नि एक "सालिन", अर्थात एक बुनकर थी और उनका पुत्र बाबू भी एक सालिन था। साईं साहेब ने आगे कहा कि वासुदेव काका अपने पिछले जन्म में एक राजपूत था और उसका नाम जयसिंह था, कि वह मॅास खाने का बहुत शौकीन था, और साईं साहेब और अन्य उसे यह कह कर बहुत नाराज़ कर देते थे कि क्या उसे बकरे का सिर चाहिए, कि इस जयसिंह के तीन पुत्र थे जो कि सेना में काम करते थे एक बेटी थी, जिसका चरित्र ठीक नहीं था। वह एक नाई की रखैल बनी, उसके बच्चे हुए और फिर वह मर गई।
दोपहर की आरती रोज़ की तरह सम्पन्न हुई, सिवाय इसके कि वामन तात्या आरती के बाद आए, वे पूजा करना चाहते थे पर उन्हें कटु शब्दों की अच्छी खुराक मिली। दोपहर के भोजन के बाद मैं कुछ देर के लिए लेटा और फिर हमने अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत तब तक की, जब तक हम साईं महाराज की शाम की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गए।
वाड़ा आरती के बाद मैं चावड़ी के जुलूस में और शेज आरती में सम्मिलित होने के लिए मस्जिद में गया। साईं साहेब क्रोधित भाव में थे, उन लोगों को भला बुरा कह रहे थे जो मस्जिद की छत पर दिए जलाने के लिए चढे थे, और जब जुलूस शुरू हुआ, तब उन्होंने बापू साहेब जोग की पत्नि श्रीमति ताई जोग पर अपना सटका भी फेंका। चावड़ी में मुझे लगा कि वे बापू साहेब जोग पर हाथ उठाऐंगे, पर कुछ समय बाद उन्होंने अपने सटके से बाला शिम्पी की पिटाई की और बाद में त्रियम्बक राव जिन्हें वे मारूति कहते हैं, की भी। बाला शिम्पी भाग गए परन्तु त्रियम्बक राव ने खडे रह कर वार को झेला और साईं साहेब के सामने दँडवत किया। मुझे लगता है कि उसे अपार कृपा प्राप्त हुई और वह कम से कम एक स्तर तो आगे बढा ही। जब हम लौटे तब साईं साहेब ज़ोर से बोल रहे थे। मैंने बैठ कर बाला साहेब भाटे के साथ बात की। भीष्म ने भागवत और दासबोध का पठन किया।
जय साईं राम