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Saturday, May 12, 2012

ॐ साईं राम

२३ फरवरी, शुक्रवार, १९१२-

मैं रोज़ाना की तरह उठा, प्रार्थना की और प्रातः पँचदशी की सँगत की। हमारे रोज़ के सदस्यों के अतिरिक्त नासिक की एक सुँदराबाई नाम की महिला भी वहाँ मौजूद थीं। हमने साईं बाबा के मस्जिद से बाहर जाते हुए और फिर वापिस आते हुए दर्शन किए। उन्होंने मुझे एक कहानी सुनाई, कि किस प्रकार वे एक युवक थे, किस प्रकार वे एक सुबह बाहर गए, और अचानक एक युवती बन गए और कुछ समय के लिए वैसे ही बने रहे। उन्होंने बहुत विस्तार नहीं बताया।

दोपहर की आरती रोज़ की तरह सम्पन्न हुई। आज बहुत से लोग अर्चना के लिए आए। भोजन के बाद मैं कुछ देर लेटा और फिर अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत की। माधवराव देशपाँडे ने साईं बाबा से आज मेरी वापसी के बारे में पूछा और उत्तर पाया कि समय मेरे लिए बहुत प्रतिकूल चल रहा है, अतः मुझे कुछ माह यहाँ रहना पडेगा।

शाम को हम साईं बाबा की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गए। वाड़ा आरती के बाद शेज आरती हुई और बाद में भीष्म ने भागवत और दासबोध दोनों का पठन किया।

जय साईं राम