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Saturday, May 12, 2012

ॐ साईं राम


७ मार्च, बृहस्पतिवार, १९१२-

मैं काँकड़ आरती मे सम्मिलित हुआ। साईं महाराज बहुत ही आन्नदित भाव में थे, और चावड़ी से निकल कर जब वे मस्जिद की ओर गए तब उन्होंने नृत्य किया। हमने अपनी पँचदशी की सँगत की और उसी बीच साईं बाबा के बाहर जाते हुए दर्शन किए। मैं सँगत के बाद मस्जिद में गया। वहाँ बहुत भीड़ थी। धीरे धीरे वह कम हुई।


दोपहर की आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई और भोजन के बाद मैं थोडी देर लेट गया। बन्दु साप्ताहिक बाज़ार के लिए रहाता गया। दोपहर में हमने पँचदशी की सँगत को आगे बढ़ाया। मैंने पठन किया और ध्यानदीप का समापन किया। उसके बाद मैं साईं साहेब की शाम की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गया। वे प्रसन्नचित्त थे। मैं सूर्यास्त के समय लौटा।


रात्रि में वाड़ा आरती हई, भीष्म ने भागवत और दासबोध का पाठ किया और फिर भजन गाए जिसमें गीता और बाबा गरदे की पँचदशी में से छँद भी थे। बाला साहेब भाटे भी आखरी पाठ के समय मौजूद थे।


जय साईं राम