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Saturday, May 12, 2012

ॐ साईं राम

२२ फरवरी, बृहस्पतिवार, १९१२
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प्रातः काँकड़ आरती हुई और हम सबने उसमें हिस्सा लिया। शिरके परिवार की महिलाऐं आरती समाप्त होते ही अपने सेवकों के साथ वापिस चली गईं। बम्बई की नर्तकी भी अपने लोगों के साथ वापिस गई। उसने कहा कि वह अमरावती जाना चाहती थी।

हमने अपनी पँचदशी की पाठ की सँगत की। मुझे पता चला कि आज प्रातः मेरी पत्नि ने एक स्वप्न देखा कि साईं बाबा ने बँदू के हाथ सँदेशा भेजा है कि सुबह ९ बजे से पूर्व चले जाओ। साईं बाबा ने भी दादा केलकर और बाला शिम्पी से पूछा कि क्या मैं जाने की बात कर रहा था। नाटेकर (हमसा) की ओर से भी एक नोट मिला है कि इस माह के अँत तक मुझे जाने की अनुमति मिल जाएगी। इन सब बातों ने मेरी पत्नि के जाने की आशाओं को बढा दिया, परन्तु दोपहर की आरती के समय साईं बाबा की ओर से इस बात का कोई जिक्र ही नहीं हुआ। माधवराव देशपाँडे हरदा से दोपहर की आरती के समय तक लौट आए। उनकी पत्नि और बच्चे भी अहमदनगर से आ गए।

दोपहर के भोजन के बाद मैं कुछ देर लेटा और उसके बाद अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत को आगे बढाया जो कि लगभग अँधेरा होने तक चली और मैं शीघ्रता से साईं साहेब के दर्शन करने के लिए गया और ऊदी ली।

रात को भीष्म ने दासबोध और भागवत का पाठ किया और भजन हुए। श्रीमान बाला साहेब भाटे और बापूसाहेब जो आबकारी निरीक्षक हैं, अपने कुछ बच्चों के साथ रात को मुझसे मिलने आए और हमने बैठ कर साईं बाबा की आश्चर्यजनक लीलाओं के विषय में कुछ देर बातचीत की। माधवराव देशपाँडे भी वहाँ उपस्थित थे।

जय साईं राम