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Saturday, May 12, 2012

ॐ साईं राम


१९ फरवरी, सोमवार, १९१२-


श्रीमान दीक्षित, माधवराव देशपाँडे, हीरालाल और अन्य लोग आज प्रातः चले गए। दीक्षित अपने पुत्र बाबू के मूँज सँस्कार के लिए नागपुर गए। माधवराव देशपाँडे ऐसे ही एक उत्सव के लिए हरदा में अपने एक मित्र के घर गए। प्रार्थना के बाद हमने पँचदशी के पाठ की सँगत की। मोरगाँवकर ने कहा कि उनकी घडी और चेन गुम हो गए। वह सोने की होने के कारण कीमती थे। उन्होंने खोजने की कोशिश की पर वह बेकार रही।


हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और वापिस लौटने पर दर्शन किए। दोपहर की आरती हमेशा की तरह सँपन्न हुई, सिवाय इसके कि आज एक की जगह दो चँवर थे। बाला साहेब भाटे पूजा के लिए और आरती के लिए आज रूकना चाहते थे लेकिन साईं बाबा ने उन्हें घर जाने को कहा।


भोजन के बाद मैं थोडी देर लेटा और फिर हमने रोज़ के सदस्यों के साथ पँचदशी की सँगत को आगे बढाया। बाद में दादा केलकर, बाला शिम्पी और अन्य लोग आए। हमने साईं महाराज के उनकी शाम की सैर के समय दर्शन किए, और उसके बाद वाड़ा आरती तथा शेज आरती में सम्मिलित हुए जिसमें बनावटी उपवन और चाँद का पहली बार प्रयोग किया गया था। वह बहुत लुभावने लग रहे थे और उनके कारण अच्छी भीड जमा हुई। ऐसा नहीं लगा कि साईं साहेब ने उन्हें नापसँद किया हो। मुझे लगता है कि चाँद काफी उपयोगी है।


भीष्म ने आज रात भागवत और दासबोध के दस समास पढे। श्रीमान नाटेकर उर्फ हमसा ने आज मुझे लिखा है कि मुझे इस मास के अँत तक अमरावती लौट जाना चाहिए।


जय साईं राम