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Saturday, May 12, 2012

ॐ साईं राम

२० फरवरी, मँगलवार, १९१२-

हम काँकड आरती में सम्मिलित हुए और उसकी विलक्षण बात यह थी कि साईं साहेब ने चावड़ी छोड़ कर मस्जिद में प्रवेश करते समय एक शब्द भी नहीं कहा, सिवाय इसके- "ईश्वर ही महानतम है"। प्रार्थना के बाद मैंने, उपासनी, बापू साहेब जोग और श्रीमति लक्ष्मीबाई कौजल्गी ने पँचदशी के पाठ की सँगत की। जब मैं मस्जिद गया तब साईं साहेब सुबह की सैर के बाद वापिस आ गए थे। उन्होंने कहा कि वे मस्जिद को दोबारा बनवाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि उसके लिए काफी धन भी है, और फिर वे उसके बारे में ही बात करते रहे। बड़ोदा के शिरके परिवार की महिलाऐं यहाँ आई हैं। उन्होंने दोपहर की आरती में भाग लिया। आरती हमेशा की तरह सम्पन्न हुई।

राधाकृष्णा बाई के पास सारस के अँडे हैं, उसने उन्हें वहाँ लटकाया जहाँ साईं साहेब बैठते हैं, उन्होंने उन्हें खींचा और बाहर फैंक दिया। हमने दोपहर को अपनी पँचदशी के पाठ की सँगत को आगे बढाया और शाम को लगभग ६ बजे मैं मस्जिद में गया। साईं साहेब ने दो कहानियाँ सुनाईं , उनमें से पता नहीं मुझे कौन सी पसँद आई, पर पहली मुझे याद नहीं रही। मैंने अपनी पत्नि से और अन्य लोगों से जो वहाँ उपस्थित थे, उस कहानी के बारे में पूछा, पर वह किसी को भी याद नहीं थी, यह बहुत आश्चर्यजनक था।

दूसरी कहानी इस प्रकार थी कि एक स्थान पर एक बूढी औरत अपने पुत्र के साथ रहती थी। वह गाँव में मृतक शरीरों के अँतिम सँस्कार में सहायता करता था, और उसके बदले में उसे पारिश्रमिक मिलता था। एक बार वहाँ पर एक प्रकार का हैजा फैला और बहुत से लोग मर गए। इसलिए उसे बहुत सा मेहनताना मिला। उस बूढ़ी औरत को एक दिन अल्लाह मिले और उन्होंने उसे कहा कि उन्हें उसके बेटे के व्यापार से लाभ नहीं कमाना चाहिए। किन्तु उसके बेटे ने उस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और अँततः वह मर गया। वह बूढी औरत सूत कात कर अपना निर्वाह करने लगी। अल्लाह मियाँ ने उसे कहा कि वह अपने पति के रिश्तेदारों के घर चली जाए, पर उसने ऐसा करने से मना कर दिया। एक दिन कुछ ब्राहम्ण उससे कुछ सूत खरीदने के लिए आए, उसके घर की सम्पूर्ण जानकारी का भेद लिया और रात को उसके घर में सेंध लगाई। उनमें से एक चोर उसके सामने निर्वस्त्र खड़ा हुआ। उस बूढी ने उसे भाग जाने के लिए कहा अन्यथा जिले के लोग उसे उसके अपराध के लिए मार डालेंगे। अतः वह चोर वहाँ से भाग गया। अँततः वह बूढी औरत मर गई और चोर के घर पुत्री बन कर पैदा हुई।

मुझे नहीं लगता कि मैं कहानी को पूरी तरह से समझ पाया। हमने साईं साहेब के उनकी शाम की सैर के समय दर्शन किए, और रात को भी। वाड़ा आरती के बाद भीष्म ने भागवत और दासबोध का पठन किया।

जय साईं राम