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Saturday, May 12, 2012

ॐ साईं राम


१८ फरवरी, रविवार, १९१२-


माधवराव देशपाँडे ने प्रातः मुझे उठाया, और प्रार्थना के बाद मैं काँकड़ आरती में सम्मिलित हुआ। साईं साहेब शाँत थे और हमेशा की तरह उन्होंने जिन कटु शब्दों का प्रयोग किया, वह भी कोमल थे। श्रीमान दीक्षित अपने पुत्र के जनेऊ सँस्कार के लिए नागपुर जाना चाहते हैं। उन्होंने साईं महाराज से मुझे साथ ले जाने के लिए पूछा और उन्हें अस्पष्ट जवाब मिला। मुझे लगभग पक्का लगा कि मुझे जाने की अनुमति नहीं मिलेगी। मेरी पत्नि जाने के लिए अत्याधिक उत्सुक है।


जब मैं उपासनी शास्त्री, बापू साहेब जोग और अन्य लोगों के साथ पँचदशी के पाठ की सँगत में बैठा था तब नाना साहेब चाँदोरकर आए और श्रीमान दीक्षित के साथ बैठे। मैं उनसे तब मिला जब मैं सँगत के बाद साईं साहेब के दर्शन के लिए गया। साईं साहेब उनसे सामान्य तरीके से तेली, वामन तात्या और अप्पा कोते के बारे में बातें कर रहे थे।


दोपहर की आरती हमेशा की तरह सँपन्न हुई, सिवाय इसके कि उसके समाप्त होते होते साईं बाबा थोडे अधीर दिखाई दिए और उन्होंने लोगों को जल्दी से चले जाने को कहा।


मैंने श्रीमान दीक्षित और नाना साहेब चाँदोरकर के साथ भोजन किया और नाना साहेब को कहा कि वह उस वार्तालाप को पुनः आगे बढाएँ जो तब छूट गया था जब वे थोडी अवधि के लिए यहाँ आए थे। उन्होंने कहा कि विषयवस्तु साईं बाबा के हाथ में थी। वह अपने साथ बनावटी उपवन एक बडे चाँद के साथ लाए हैं, वैसा ही जैसा चिवाह के अवसर पर हमारे यहाँ होता है। उसका आदेश राधाकृष्णा बाई ने दिया था।


मैं कुछ देर के लिए लेटा। फिर लगभग ४ बजे नाना साहेब चले गए और श्रीमान दीक्षित ने रामायण पढी। बाद में हमने अपनी परमामृत के पाठ की सँगत की और उसके बाद हम साईं साहेब की शाम की सैर के समय उनके दर्शन के लिए गए। "चाँद" को रोशन कर दिया गया था और वह शानदार रोशनी फेंक रहा था।


मेरी पत्नि ने अमरावती लौट जाने की प्रार्थना को पुनः दोहराया और हमेशा की तरह उन्हें साईं साहेब से अस्पष्ट जवाब मिला। वाड़ा आरती के बाद श्रीमान दीक्षित ने रामायण पढी और भीष्म के भजन हुए। श्रीमान दीक्षित और माधवराव देशपाँडे ने कल प्रातः जल्दी जाने की तैयारियाँ करनी हैं अतः हमने आज सब जल्दी समाप्त किया।


जय साईं राम