|| ॐ साईं राम ||
ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं
भगवान विट्ठल दर्शन~~~
साईं बाबा पण्ढरपुर के विट्ठल या भगवान विठोवा को बहुत चाहते थे। वे अपने निवास स्थान में नाम सप्ताह का आयोजन कराते थे। नाम सप्ताह में भगवान का सात दिनों तक अखण्ड रूप से नाम लिया जाता है। लोग अलग अलग टोलियों में वाद्य यंत्र के साथ राम अर्थात् भगवान का भजन गाते हुये पूरे सात दिनों तक नाम स्मरण करते हैं। एक बार साईं बाबा ने दास गणू को नाम सप्ताह का उनके निवास स्थान द्वारका माई मस्जिद में आयोजन करने के लिये कहा। उनकी आज्ञा कौन टाल सकता था किन्तु दास गणू ने उनसे आग्रह किया कि नाम सप्ताह के अन्त में विट्ठल भगवान का दर्शन होना चाहिये। बाबा ने 'तथास्तु' कह दिया।
शिरडी में सब ओर बात फैल गई कि नाम सप्ताह के अन्त में विट्ठल भगवान प्रकट हो कर दर्शन देंगे। लोगों के हृदय में उत्साह, प्रेम और भक्ति उमड़ आई। नाम सप्ताह प्रारम्भ हुआ। भगवान के नाम का अखण्ड रूप से स्मरण और गायन होने लगा। सैकड़ों भक्त दिन-रात "विट्ठल विट्ठल" कहने लगे। साईं बाबा अपने पत्थरनुमा चौकी पर आसन लगाये शान्त बैठे रहते थे। उन्हें तो भगवान का नाम बहुत ही प्रिय था।
गुरुवार का दिन आया। यही नाम सप्ताह का अन्तिम दिन था। चारों तरफ धूप और अगरबत्ती की सुगन्ध फैल रही थी। विट्ठल भगवान का दर्शन करने के लिये भीड़ उमड़ पड़ी थी। अचानक लोगों ने देखा कि साईं बाबा अपने आसन पर नहीं हैं। उन्हें उठ कर जाते किसी ने नहीं देखा था। वे अपने आसन पर बैठे ही बैठे अदृश्य हो गये थे। दूसरे ही क्षण ही लोगों ने देखा कि चौकी पर भगवान विट्ठल बैठे हुये हैं। लोग हर्षविभोर हो गये और विट्ठल भगवान की जयजयकार करने लगे। कुछ ही देर में विट्ठल भगवान के स्थान पर स्वयं साईं बाबा ही बैठे मन्द मन्द मुस्कुरा रहे थे। लोगों के कण्ठ से समवेत स्वर निकला -"साईं बाबा की जय!"
~जी.के. अवधिया
शिरडी में सब ओर बात फैल गई कि नाम सप्ताह के अन्त में विट्ठल भगवान प्रकट हो कर दर्शन देंगे। लोगों के हृदय में उत्साह, प्रेम और भक्ति उमड़ आई। नाम सप्ताह प्रारम्भ हुआ। भगवान के नाम का अखण्ड रूप से स्मरण और गायन होने लगा। सैकड़ों भक्त दिन-रात "विट्ठल विट्ठल" कहने लगे। साईं बाबा अपने पत्थरनुमा चौकी पर आसन लगाये शान्त बैठे रहते थे। उन्हें तो भगवान का नाम बहुत ही प्रिय था।
गुरुवार का दिन आया। यही नाम सप्ताह का अन्तिम दिन था। चारों तरफ धूप और अगरबत्ती की सुगन्ध फैल रही थी। विट्ठल भगवान का दर्शन करने के लिये भीड़ उमड़ पड़ी थी। अचानक लोगों ने देखा कि साईं बाबा अपने आसन पर नहीं हैं। उन्हें उठ कर जाते किसी ने नहीं देखा था। वे अपने आसन पर बैठे ही बैठे अदृश्य हो गये थे। दूसरे ही क्षण ही लोगों ने देखा कि चौकी पर भगवान विट्ठल बैठे हुये हैं। लोग हर्षविभोर हो गये और विट्ठल भगवान की जयजयकार करने लगे। कुछ ही देर में विट्ठल भगवान के स्थान पर स्वयं साईं बाबा ही बैठे मन्द मन्द मुस्कुरा रहे थे। लोगों के कण्ठ से समवेत स्वर निकला -"साईं बाबा की जय!"
~जी.के. अवधिया
जय साईं राम!!!