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Friday, March 12, 2010

Shirdi Diary (Khaparde's Daily Diary) in Hindi

ॐ साईं राम!!!

Khaparde's Shirdi Diary~~~खापर्डे शिरडी डायरी~~~
१२ दिसम्बर , १९१०~~~

सुबह की प्रार्थना के बाद हमने साईं महाराज को हमने रोज़ाना की तरह निकलते हुए देखा और हर रोज़ की तरह आपस में बात करने बैठे | श्री दीक्षित ऐसा मालूम पड़ता है कि पुरी तरह से बदल गए हैं | और बहुत सारा समय उपासना में लगाते हैं और उनका स्वभाव हमेशा से ही नरम था , उसमें भी एक विचित्र मिठास आ गयी है जो पुरी तरह से उनके अंतर्मन की शान्ति के कारण है |इसके तुरंत बाद रावबहादुर राजाराम पन्त दीक्षित पुलगाँव से आए | उन्होंने बताया कि जब वे नागपुर से चले उनका शिरडी आने का कोइ विचार नहीं था , लेकिन पुलगाँव में अचानक ही उनका आने का इरादा बन गया ,और दरअसल उनकी यात्रा का निश्चय उन्होंने क्षण भर में ही कर लिया | मुझे उनको देखकर बहुत खुशी हुई | बाद में हम सब साईं साहेब के दर्शन को गए | मुझे थोड़ी देर हो गई और में उन्हें द्वारा बताई गई एक बहुत रोचक कहानी नहीं सुन पाया | वे किस्से -कहानियों से सीख देते है | यह एक ऐसे आदमी के बारे में थी जिसके पास एक सुन्दर घोड़ा था , वह कुछ भी करे लेकिन घोड़ा उसकी एक भी नहीं सुनता था | उसे सभी जगह ले गए और सब सामान्य प्रशिक्षण दिया गया लेकिन कोइ लाभ नहीं हुआ | आखिरकार , एक विद्वान ने सुझाव दिया कि उसे उसी जगह ले जाया जाए जहां से वह मूलरूप से लाया गया था | ऐसा की किया गया और उसके बाद से वह ठीक हो गया और बहुत उपयोगी हुआ | मैंने इस किस्से का केवल एक अंश ही सूना | फिर उन्होंने पुचा कि में कब जा रहा हूँ | मैंने कहा कि में तब जाऊँगा जब वे अपने आप मुझे जाने की आज्ञा दें | उन्होंने कहा , 'तुम आज भोजन करने के बाद जाओ ' और बाद में माधव राव देशपांडे के हाथों मेरे लिए प्रसाद के रूप में दही भेजा | मैंने उसे भोजन में लिया और उसके बाद तुरंत साईं साहेब के दर्शन पाने गया | जैसे ही में वहां पहुचाँ उन्होंने जाने के लिए अपनी आज्ञा को फिर से पक्का किया | मेरा पुत्र इस आज्ञा के आरे में निश्चित नहीं था इसलिए उसने फिर से खुल कर पुचा , और आज्ञा स्पष्ट शब्दों में दे दी गई | आज साईं महाराज ने दूसरों से दक्षिणा माँगी लेकिन मुझसे और मेरे पुत्र से कुछ नहीं लिया | मेरे पास पैसा बहुत कम था और ऐसा लगा कि उनको ये मालूम था | श्री नूलकर , श्री दीक्षित , श्री बापूसाहेब जोग , बाबासाहेब सहस्त्रबुद्धे , माधव राव देशपांडे , बालासाहेब भाटे , वासुदेव राव और अन्य को विदा करने के बाद हम पटवर्धन , प्रधान , काका महाजनी , श्री तर्खड और श्री भिंडे , जो आज ही आए थे , के साथ रवाना हुए | हमने लगभग ६.३० बजे कोपरगाँव में ट्रेन पकड़ी और मनमाड तक का सफर किया , श्री भिंडे येवला में उतर गए | में और मेरा पुत्र जल्दी ही मनमाड से पंजाब मेल से निकलेगे|


जय साईं राम!!!