ॐ साईं राम!!!
४ जनवरी १९१२-
आज सुबह जल्दी उठा, प्रार्थना की और अपने पुत्र बाबा और गोपालराव दोरले को साईं महाराज के पास जा कर अमरावती लौटने की अनुमति लेने को कहा, परन्तु मेरी पत्नी ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि आज पौष पू्र्णिमा है और कुल देवता की स्तुति का दिन है, अतः प्रस्थान के लिए अनुमति नहीं लेनी चाहिए। मैने हमेशा की तरह साईं महाराज को मस्जिद से बाहर जाते और वापिस आते हुए देखा। मध्य का समय मैंने रामायण पढते हुए बिताया। मध्यान आरती के बाद हम मस्जिद से वापिस लौटे और खाना खाने के बाद बापू साहेब जोग के साथ बैठ कर फिर से रामायण पढी। ५ बजे के बाद मैं फिर से मस्जिद गया और साईं महाराज को आँगन में घूमते हुए पाया। मेरी पत्नि भी वहाँ आई। कुछ समय के बाद बाबा अपने आसन पर विराजे, हम भी उनके पास आ बैठे। दीक्षित साहेब और उनकी पत्नि भी आए।
तब साईं महाराज ने एक कहानी सुनाई। उन्होंने कहा कि एक महल में एक राजकुमारी रहती थी। एक "मँग" ने उससे शरण माँगी । उसकी भाभी जो उस समय वहीं थी, उसने "मँग" को मना किया। वह मायूस हो कर अपनी पत्नि के साथ अपने गाँव लौट रहा था तब उसे अल्लाह मियाँ मिले। उसने उन्हें अपनी कहानी सुनाई कि किस प्रकार गरीबी से तँग आकर उसने राजकुमारी से शरण माँगी पर ठुकरा दिया गया। अल्लाह मियाँ ने उसे फिर से उसी राजकुमारी के पास जा कर पुनः शरण माँगने को कहा। उसने ऐसा ही किया और इस बार उसे महल में एक परिवार के सदस्य की तरह रहने की अनुमति मिली। ६ मास तक महल में ही रह कर उसने सब सुविधाऐं भोगी, किन्तु फिर सोने के लालच में उसने एक कुल्हाडी से राजकुमारी की हत्या कर दी। बहुत बडी सँख्या में लोग एक स्थान पर एकत्रित हुए और पँचायत की। "मँग" ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया। जब मुकदमा राजा के पास लाया गया तब अल्लाह मियाँ ने राजा को "मँग" को छोड देने को कहा। राजा ने अल्लाह मियाँ की बात मान कर उसे जाने दिया। जिस राजकुमारी की हत्या हुई थी वह "मँग" के घर पुत्री बन कर पैदा हुई। एक बार फिर "मँग" को राज महल में रहने की अनुमति मिली और वह १२ साल तक महल में सभी सुविधाऐं भोगता हुआ रहा।
तब अल्लाह मियाँ ने राजा को "मँग" से राजकुमारी की हत्या का बदला लेने के लिए प्रेरित किया। "मँग" उसी प्रकार मारा गया जिस प्रकार उसने राजकुमारी की हत्या की थी। "मँग" की विधवा पत्नि इसे विधाता का न्याय समझ कर गाँव लौट गई। राजकुमारी जो "मँग" की पुत्री बन कर पैदा हुई थी, उसने वह सब प्राप्त किया जो पिछले जन्म में उसका ही था और प्रसन्नता पूर्वक रहने लगी। इस प्रकार ईश्वर के कार्य और न्याय की स्थाप्ना हुई।
रात्रि में शेज आरती, भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई। जब साईं महाराज शेज आरती के लिए चावडी के जुलूस के साथ जा रहे थे तब राम मारूति ने उन्हें प्रणाम किया।
जय साईं राम!!!
४ जनवरी १९१२-
आज सुबह जल्दी उठा, प्रार्थना की और अपने पुत्र बाबा और गोपालराव दोरले को साईं महाराज के पास जा कर अमरावती लौटने की अनुमति लेने को कहा, परन्तु मेरी पत्नी ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि आज पौष पू्र्णिमा है और कुल देवता की स्तुति का दिन है, अतः प्रस्थान के लिए अनुमति नहीं लेनी चाहिए। मैने हमेशा की तरह साईं महाराज को मस्जिद से बाहर जाते और वापिस आते हुए देखा। मध्य का समय मैंने रामायण पढते हुए बिताया। मध्यान आरती के बाद हम मस्जिद से वापिस लौटे और खाना खाने के बाद बापू साहेब जोग के साथ बैठ कर फिर से रामायण पढी। ५ बजे के बाद मैं फिर से मस्जिद गया और साईं महाराज को आँगन में घूमते हुए पाया। मेरी पत्नि भी वहाँ आई। कुछ समय के बाद बाबा अपने आसन पर विराजे, हम भी उनके पास आ बैठे। दीक्षित साहेब और उनकी पत्नि भी आए।
तब साईं महाराज ने एक कहानी सुनाई। उन्होंने कहा कि एक महल में एक राजकुमारी रहती थी। एक "मँग" ने उससे शरण माँगी । उसकी भाभी जो उस समय वहीं थी, उसने "मँग" को मना किया। वह मायूस हो कर अपनी पत्नि के साथ अपने गाँव लौट रहा था तब उसे अल्लाह मियाँ मिले। उसने उन्हें अपनी कहानी सुनाई कि किस प्रकार गरीबी से तँग आकर उसने राजकुमारी से शरण माँगी पर ठुकरा दिया गया। अल्लाह मियाँ ने उसे फिर से उसी राजकुमारी के पास जा कर पुनः शरण माँगने को कहा। उसने ऐसा ही किया और इस बार उसे महल में एक परिवार के सदस्य की तरह रहने की अनुमति मिली। ६ मास तक महल में ही रह कर उसने सब सुविधाऐं भोगी, किन्तु फिर सोने के लालच में उसने एक कुल्हाडी से राजकुमारी की हत्या कर दी। बहुत बडी सँख्या में लोग एक स्थान पर एकत्रित हुए और पँचायत की। "मँग" ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया। जब मुकदमा राजा के पास लाया गया तब अल्लाह मियाँ ने राजा को "मँग" को छोड देने को कहा। राजा ने अल्लाह मियाँ की बात मान कर उसे जाने दिया। जिस राजकुमारी की हत्या हुई थी वह "मँग" के घर पुत्री बन कर पैदा हुई। एक बार फिर "मँग" को राज महल में रहने की अनुमति मिली और वह १२ साल तक महल में सभी सुविधाऐं भोगता हुआ रहा।
तब अल्लाह मियाँ ने राजा को "मँग" से राजकुमारी की हत्या का बदला लेने के लिए प्रेरित किया। "मँग" उसी प्रकार मारा गया जिस प्रकार उसने राजकुमारी की हत्या की थी। "मँग" की विधवा पत्नि इसे विधाता का न्याय समझ कर गाँव लौट गई। राजकुमारी जो "मँग" की पुत्री बन कर पैदा हुई थी, उसने वह सब प्राप्त किया जो पिछले जन्म में उसका ही था और प्रसन्नता पूर्वक रहने लगी। इस प्रकार ईश्वर के कार्य और न्याय की स्थाप्ना हुई।
रात्रि में शेज आरती, भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई। जब साईं महाराज शेज आरती के लिए चावडी के जुलूस के साथ जा रहे थे तब राम मारूति ने उन्हें प्रणाम किया।
जय साईं राम!!!