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Sunday, April 15, 2012

ॐ साईं राम


२१ जनवरी १९१२-


मैं उठा और काँकड आरती में साम्मिलित हुआ। वहाँ वे सभी लोग उपस्थित थे जो प्रतिदिन होते हैं, सिवाय बाला शिम्पी के। आरती के बाद रोज़ की तरह साईं बाबा ने आँतरिक शत्रुओं के प्रति कडे शब्दों का प्रयोग कई नाम जैसे अप्पा कोते, तेली, वामन तात्या आदि लेकर किया। मैंने बापू साहेब जोग, उपासनी और राम मारूति के साथ बैठ कर 'परमामृत' का पठन किया। बापू साहेब जोग के जो अतिथि साँगली से आए हैं, वे भी हमारे समूह में बैठे। उनका नाम लिमये है।


हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और फिर वापिस आते हुए दर्शन किए। जब हम मस्जिद में थे तब माधव राव देशपाँडे नगर से लौट आए। उनके साथ बडौदा के एक सज्जन श्री दादा साहेब करँदिकर भी थे। करँदिकर को देख कर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। ऐसा लगता है कि वे किसी मुकदमे के सिलसिले में नगर आए थे और माधव राव से मिलने पर उन्होंने साई महाराज के दर्शन का निश्चय किया। हमने बैठ कर बातचीत की। वे लगभग ४॰३० बजे शाम को नगर लौट गए। लिमये भी चले गए। पहले उन्हें जाने की अनुमति नहीं मिली, किन्तु अन्ततः साईं बाबा ने उन्हें जाने को कहा। सदाशिवराव दीक्षित भी जाना चाहते हैं, लेकिन उन्हें कल सुबह अपने परिवार, बच्चों और राम मारूति के साथ जाने की आज्ञा हुई। हमने शाम की सैर के समय साईं बाबा के दर्शन किए। वाडे की आरती के बाद दीक्षित की रामायण हुई।


जय साईं राम