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Sunday, April 15, 2012

ॐ साईं राम!!!

२२ जनवरी , १९१२~~~

मैं सुबह जल्दी उठ गया और प्रार्थना की | हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और फिर से उनके लौटने के बाद दर्शन किए| पूजा के समय उन्होंने दो फूल अपने नासिकाओं के अन्दर डाल लिए , और दो अपने कानों और सिर के बीच डालें | माधवराव देशपांडे के द्वारा मेरा ध्यान इस और खीचा गया | मैंने इसे एक प्रकार का निर्देश समझा | साईं बाबा ने वही चीज़ फिर दोहराई और दूसरी बार मैंने औने दिमाग में इसके अर्थ का अनुमान लगाया तो उन्होंने अपनी चिलम मेरी और बड़ा दी और इससे मुझे यकीन हो गया | उन्होंने कुछ कहा जो मैंने तुरंत सूना और विशेषकर याद रखने का प्रयास किया , लेकिन वह मेरे दिमाग से बिल्कुल निकल गया और दिन भर मैंने भरसक प्रयास किया लेकिन याद नहीं कर सका | मैं बहुत ही हैरान हूँ क्यूकि ये इस तरह का पहला अनुभव है | साईं बाबा ने यह भी कहा की उनकी आज्ञा सर्वोपरी है , जिसका मैंने ये अर्थ लिया क़ि मुझे अपने बेटे के स्वास्थ्य के बारे में परेशान होने की कोई आवश्यकता नहीं है | जब तक दोपहर की आरती समाप्त हुई और हम लौटे , मैंने श्रीमति लक्ष्मीबाई कौजलगी { स्थानीय रूप से जो मौसी बाई के नाम से जानी जाती है} को अपने डेरे के सामने खड़े हुए पाया | मेरे जाते ही वे मंस्जिद पहुँची और साईं महाराज को प्रणाम किया | बाबा ने उन्हें तब पूजा करने देकर उन पर विशेष अनुग्रह किया | खाने के बाद मैं कुछ देर लेटा और दीक्षित ने रामायण का पाठ किया और नाथ महाराज की कोई गाथा पडी | उपासनी भी उपस्थित थे और श्रीमति लक्ष्मीबाई कौजलगी भी कक्षा में सम्मलित हुई | उन्होंने चर्चा में भाग लिया और ऐसा लगता है क़ि उन्हें वेदान्त की अच्छी जानकारी है | हमने साईं बाबा के शाम की सेर के समय दर्शन किए और बाद में शेज आरती पर | श्रीमति लक्ष्मीबाई कौजलगी ने कुछ गीत गाए | वे राधाकृष्णबाई की मौसी है | रात को मेरे अनुरोध पर उन्होंने कुछ भजन किए और दीक्षित ने रामायण पडी |


जय साईं राम!!!