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Tuesday, April 10, 2012

ॐ साईं राम


१५ जनवरी १९१२-


मैं आज प्रातः जल्दी उठा, प्रार्थना की और काँकड आरती में सम्मिलित हुआ। आरती देर से शुरू हुई, क्योंकि मेधा अस्वस्थ है अतः उसे उठ कर शँख बजाने में देर हुई। साईं महाराज ने एक शब्द भी नहीं कहा और वे उठ कर चावडी से चले गए। उपासनी शास्त्री और बापू साहेब जोग देर से आए अतः मै पत्र लिखने बैठ गया। जब साईं महाराज बाहर जा रहे थे तब उन्होंने मुझसे पूछा कि मैंने सुबह कैसे बिताई। असल में यह एक हल्की फटकार थी कि उन्हें पता है कि मैंने प्रातः रामायण नहीं पढी।


साईं महाराज जब वापिस आए तब मैं पुनः उनके दर्शन के लिए गया। वे अत्यंत विनम्र थे। उन्होंने एक कहानी सुनाना शुरू किया। वे मेरी ओर देख कर ही कहानी सुना रहे थे, किन्तु मुझे नींद आ रही थी अतः मैं कहानी को बिल्कुल भी नहीं समझ सका। बाद में मुझे पता चला कि वह कहानी असल मे गुप्ते के जीवन में घटने वाली घटनाओं का ब्यौरा थी। दोपहर की आरती देर से हुई, और वापिस आ कर भोजन करते हुऐ ३ बज गए। मैंने कुछ देर आराम किया और फिर दीक्षित की पुराण में सम्मिलित हुआ। बाद में हम पुनः मस्जिद गए परन्तु हमें दूर से ही प्रणाम करने की आज्ञा हुई। हमने वैसा ही किया। जब साईं महाराज घूमने के लिए गए तब हमने उन्हें हमेशा की तरह प्रणाम किया।


कल दीक्षित ने मस्जिद में रोशनी की थी और आज भी उन्होंने वैसा ही किया। रात को रोज़ की तरह भीष्म के भजन और दीक्षित का पारायण हुआ।


जय साईं राम