ॐ साईं राम
१८ जनवरी १९१२-
आज बहुत कुछ लिखने को है। आज सुबह बहुत जल्दी उठा, प्रार्थना की, तब भी दिन चढने में लगभग एक घँटा बाकी था। मैं कुछ देर लेट गया और सूर्योदय देखने कि लिए समय पर उठ गया। मैं, उपासनी, बापू साहेब जोग तथा भीष्म 'परमामृत' पढने बैठे। तहसीलदार साहेब प्रह्लाद अम्बादास, श्री पाटे और उनके सहयोगी लिंगायत अपने निवास स्थान पर लौट चुके हैं। श्री पाटे और लिंगायत को जाने की अनुमति चलने के एक दम पूर्व मिली। हमने साईं महाराज के मस्जिद से बाहर जाते हुए और फिर वापिस आते हुए दर्शन किए। उन्होंने मेरे साथ बहुत अच्छा बर्ताव किया और जब मैं वहाँ सेवा कर रहा था तब उन्होंने मुझे दो या तीन कहानियाँ सुनाईं।
उन्होंने कहा कि बहुत से लोग उनका धन लेने आए थे। उन्होंने कभी उन लोगों का विरोध नहीं किया और उन्हें धन ले जाने दिया। उन्होंने बस उन लोगों के नाम लिख लिए और उनका पीछा किया। फिर जब वे लोग भोजन करने बैठे तब मैंने ( साईं महाराज ने ) उन्हें मार डाला।
दूसरी कहानी इस प्रकार थी कि एक नेत्र विहीन व्यक्ति था। वह तकिया के पास रहता था। एक व्यक्ति ने उसकी पत्नि को फुसला लिया और नेत्र विहीन व्यक्ति को मार डाला। चावडी में चार सौ लोग इकट्ठा हुए और उसे दोषी करार दिया। उसका सिर काटने का फरमान जारी किया गया। यह कार्य गाँव के जल्लाद ने करना था। उसने इसे अपना कर्तव्य समझ कर नहीं अपितु किसी अन्य इरादे से पूरा किया। अगले जन्म में वह हत्यारा जल्लाद के घर बेटा बन कर पैदा हुआ।
इसके बाद साईं महाराज एक अन्य कहानी सुनाने लगे। तभी वहाँ एक फकीर आया और उसने साईं महाराज के चरण स्पर्श किए। साईं महाराज ने अत्यँत क्रोध प्रकट किया और उसे परे धकेल दिया किन्तु वह जिद पूर्वक बिना धीरज खोये वहीं खडा रहा। अन्त में साईं महाराज के क्रोध के कारण वह मस्जिद के आँगन की बाहर की दीवार के साथ जा कर खडा हो गया। बाबा ने गुस्से से आरती का थाल और भक्तो के द्वारा लाया गया भोग उठा कर फेंक दिया। उन्होंने राम मारूति को उठा लिया, बाद में उसने बताया कि उसे साईं महाराज के ऐसा करने से इतनी प्रसन्नता हुई मानो उसे उच्च अवस्था प्राप्त हुई हो। एक अन्य गाँव वासी और भाग्या के साथ भी साईं महाराज ने ऐसा ही व्यवहार किया।
सीताराम पुनः आरती का थाल लाये और हमने रोज़ की तरह लेकिन जल्दी में आरती की। म्हालसापति के पुत्र मार्तण्ड ने समय की सूझ दिखाते हुए समझाया कि आरती को सही तरीके से ही पूरा किया जाना चाहिए। उन्होंने ऐसा तब कहा जब साईं महाराज अपना स्थान छोड कर परे हट गए। परन्तु आरती पूर्ण होने से पूर्व वे वापिस अपने स्थान पर आ गए। सब कुछ भली प्रकार से सँपन्न हुआ सिवा इसके कि ऊदि का वितरण व्यक्तिगत रूप से नहीं अपितु सामूहिक रूप से हुआ। निश्चित रूप से साईं महाराज क्रोधित नहीं थे अपितु उन्होंने भक्तों को दिखाने के लिए ही सम्पूर्ण 'लीला' रची थी।
इन सब घटना क्रम के कारण सब कुछ देर से हुआ। तात्या पाटिल ने अपने पिता के अँतिम सँस्कार के मृत्युभोज का आयोजन किया था, अतः भोजन करते हुए हमें ४॰३० हो गए। क्योंकि बहुत देर हो चुकी थी अतः और कुछ करने का समय नहीं था इसलिए हम साईं महाराज के दर्शन करने चले गए जब वे घूमने जा रहे थे। उसी समय हमने उन्हें प्रणाम किया।
रोज़ की तरह वाडे में आरती हुई। मेघा इतना बीमार है कि वह खडा भी नहीं हो सकता। साईं महाराज ने रात में ही उसके अँत की भविष्यवाणी की। इसके पश्चात हम चावडी समारोह में सम्मिलित हुए । मैंने हमेशा की तरह छत्र उठाया। सब कुछ आराम से सँपन्न हुआ। सीताराम ने आरती की। रात को भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई।
P.S.
उप लेख- मैं यह बताना भूल गया कि जब साईं महाराज क्रोध में कुछ कह रहे थे तब उन्होंने यह भी कहा था कि उन्होंने मेरे पुत्र की रक्षा की थी और कई बार यह वाक्य भी दोहराया कि "फकीर दादासाहेब (अर्थात मुझे) को मारना चाहता है पर मैं ऐसा करने की आज्ञा नहीं दूँगा। उन्होंने एक और नाम का उल्लेख भी किया परन्तु वह मुझे अब याद नहीं है।
जय साईं राम
१८ जनवरी १९१२-
आज बहुत कुछ लिखने को है। आज सुबह बहुत जल्दी उठा, प्रार्थना की, तब भी दिन चढने में लगभग एक घँटा बाकी था। मैं कुछ देर लेट गया और सूर्योदय देखने कि लिए समय पर उठ गया। मैं, उपासनी, बापू साहेब जोग तथा भीष्म 'परमामृत' पढने बैठे। तहसीलदार साहेब प्रह्लाद अम्बादास, श्री पाटे और उनके सहयोगी लिंगायत अपने निवास स्थान पर लौट चुके हैं। श्री पाटे और लिंगायत को जाने की अनुमति चलने के एक दम पूर्व मिली। हमने साईं महाराज के मस्जिद से बाहर जाते हुए और फिर वापिस आते हुए दर्शन किए। उन्होंने मेरे साथ बहुत अच्छा बर्ताव किया और जब मैं वहाँ सेवा कर रहा था तब उन्होंने मुझे दो या तीन कहानियाँ सुनाईं।
उन्होंने कहा कि बहुत से लोग उनका धन लेने आए थे। उन्होंने कभी उन लोगों का विरोध नहीं किया और उन्हें धन ले जाने दिया। उन्होंने बस उन लोगों के नाम लिख लिए और उनका पीछा किया। फिर जब वे लोग भोजन करने बैठे तब मैंने ( साईं महाराज ने ) उन्हें मार डाला।
दूसरी कहानी इस प्रकार थी कि एक नेत्र विहीन व्यक्ति था। वह तकिया के पास रहता था। एक व्यक्ति ने उसकी पत्नि को फुसला लिया और नेत्र विहीन व्यक्ति को मार डाला। चावडी में चार सौ लोग इकट्ठा हुए और उसे दोषी करार दिया। उसका सिर काटने का फरमान जारी किया गया। यह कार्य गाँव के जल्लाद ने करना था। उसने इसे अपना कर्तव्य समझ कर नहीं अपितु किसी अन्य इरादे से पूरा किया। अगले जन्म में वह हत्यारा जल्लाद के घर बेटा बन कर पैदा हुआ।
इसके बाद साईं महाराज एक अन्य कहानी सुनाने लगे। तभी वहाँ एक फकीर आया और उसने साईं महाराज के चरण स्पर्श किए। साईं महाराज ने अत्यँत क्रोध प्रकट किया और उसे परे धकेल दिया किन्तु वह जिद पूर्वक बिना धीरज खोये वहीं खडा रहा। अन्त में साईं महाराज के क्रोध के कारण वह मस्जिद के आँगन की बाहर की दीवार के साथ जा कर खडा हो गया। बाबा ने गुस्से से आरती का थाल और भक्तो के द्वारा लाया गया भोग उठा कर फेंक दिया। उन्होंने राम मारूति को उठा लिया, बाद में उसने बताया कि उसे साईं महाराज के ऐसा करने से इतनी प्रसन्नता हुई मानो उसे उच्च अवस्था प्राप्त हुई हो। एक अन्य गाँव वासी और भाग्या के साथ भी साईं महाराज ने ऐसा ही व्यवहार किया।
सीताराम पुनः आरती का थाल लाये और हमने रोज़ की तरह लेकिन जल्दी में आरती की। म्हालसापति के पुत्र मार्तण्ड ने समय की सूझ दिखाते हुए समझाया कि आरती को सही तरीके से ही पूरा किया जाना चाहिए। उन्होंने ऐसा तब कहा जब साईं महाराज अपना स्थान छोड कर परे हट गए। परन्तु आरती पूर्ण होने से पूर्व वे वापिस अपने स्थान पर आ गए। सब कुछ भली प्रकार से सँपन्न हुआ सिवा इसके कि ऊदि का वितरण व्यक्तिगत रूप से नहीं अपितु सामूहिक रूप से हुआ। निश्चित रूप से साईं महाराज क्रोधित नहीं थे अपितु उन्होंने भक्तों को दिखाने के लिए ही सम्पूर्ण 'लीला' रची थी।
इन सब घटना क्रम के कारण सब कुछ देर से हुआ। तात्या पाटिल ने अपने पिता के अँतिम सँस्कार के मृत्युभोज का आयोजन किया था, अतः भोजन करते हुए हमें ४॰३० हो गए। क्योंकि बहुत देर हो चुकी थी अतः और कुछ करने का समय नहीं था इसलिए हम साईं महाराज के दर्शन करने चले गए जब वे घूमने जा रहे थे। उसी समय हमने उन्हें प्रणाम किया।
रोज़ की तरह वाडे में आरती हुई। मेघा इतना बीमार है कि वह खडा भी नहीं हो सकता। साईं महाराज ने रात में ही उसके अँत की भविष्यवाणी की। इसके पश्चात हम चावडी समारोह में सम्मिलित हुए । मैंने हमेशा की तरह छत्र उठाया। सब कुछ आराम से सँपन्न हुआ। सीताराम ने आरती की। रात को भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई।
P.S.
उप लेख- मैं यह बताना भूल गया कि जब साईं महाराज क्रोध में कुछ कह रहे थे तब उन्होंने यह भी कहा था कि उन्होंने मेरे पुत्र की रक्षा की थी और कई बार यह वाक्य भी दोहराया कि "फकीर दादासाहेब (अर्थात मुझे) को मारना चाहता है पर मैं ऐसा करने की आज्ञा नहीं दूँगा। उन्होंने एक और नाम का उल्लेख भी किया परन्तु वह मुझे अब याद नहीं है।
जय साईं राम