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Monday, April 2, 2012

ॐ साईं राम


७ जनवरी १९१२-


प्रातः मैं जल्दी उठा और काँकड आरती में सम्मिलित हुआ। साईं महाराज अत्याधिक प्रसन्न थे और यौगिक दृष्टि से निहार रहे थे। मेरा लगभग पूरा दिन एक प्रकार के परमानन्द में बीता। उसके बाद मैने, बापू साहेब जोग और उपासनी ने रँगनाथ की योगवशिष्ट पढी। हमने साईं महाराज को बाहर जाते हुए देखा और फिर कुछ युवा यवनों के साथ बैठकर बातचीत की जो मस्जिद में आए थे। उनमें से एक ने कुरान की कुछ आयतें भी सुनाई। दोपहर की आरती कुछ देर से हुई।

साईं महाराज ने एक बहुत अच्छी कहानी सुनाई उन्होंने कहा उनका एक बहुत अच्छा कुआँ था। उसका पानी हल्के नीले रँग का था और अथाह था। चार "मोथ" भी उसे खाली नहीं कर सकते थे और उसके पानी से सिंचित फल असाधारण रूप से ताजे और स्वादिष्ट थे। इसके बाद की कहानी उन्होंने नहीं सुनाई।

दोपहर को दीक्षित ने रामायण के दो अध्याय पडे। उपासनी, मैं और राम मारूति वहीं थे। फिर हम साईं महाराज के पास गए और घूमने के लिए भी उनके साथ गए। अँधरा हो चला थे। वह शायद क्रोधित थ या उन्होंने दिखाया कि वह लकडी काटने वाली स्त्री से नाराज़ हैं। रात को भीष्म के भजन और दीक्षित के भजन सुने।


जय साईं राम