ॐ साईं राम!!!
२४ जनवरी , १९१२~~~
आज सुबह मैं ज्यादा सो गया | इससे मुझे हर चीज़ में देर हुई |मुझे अपनी दिनचर्या में सब कुछ जल्दी जल्दी करना पड़ा | श्री दीक्षित को भी देर हुई ,और हर कोई इसी परेशानी में घिरा हुआ लगा | हमने साईं बाबा के दर्शन उनके बाहर जाते हुए किए , और फिर उपासनी , भीष्म और बापू साहेब जोग के साथ परमामृत का पाठ किया | उसके बाद मैं साईं बाबा के दर्शन के लिए मस्जिद गया | लक्ष्मी बाई कौजलगी हमारी परमामृत की कक्षा में उपस्थित हुई और मेरे पहुचंने के बाद मस्जिद गयी | साईं बाबा ने उन्हें अपनी सास कहा और उनके द्वारा प्रणाम करने पर हास परिहास किया | इससे मुझे ऐसा विचार आया कि बाबा ने उन्हें शिष्य रूप में स्वीकार कर लिया है | मध्यान्ह आरती सामान्य रूप से बल्कि बहुत शांती से संपन्न हो गयी | मेरे वहां से लौटने के बाद मैंने कोपरगाव के मामले दार श्री साने को बरामदे में बैठा हुआ पाया वे गावोत्थान के विस्तार कार्य और कब्रिस्तान और मरघट को हटाने के सम्बन्ध में लगान का कार्य कर रहे थे | भोजन के बाद मैंने कुछ पत्र लिखने चाहे लेकिन फिर श्री साने के साथ बातचीत करने बैठ गया | फिर श्री दीक्षित ने रामायण पडी | और बाद में साईं साहेब के दर्शन के लिए मस्जिद गया , लेकिन क्यूँ कि सभी को जल्दी ही भेज दिया गया इसी लिए उदी ली और चावड़ी के पास खड़ा हो गया | वहां में एक मुस्लिम कबीर पंथी सज्जन से मिला जो कुछ समय पहले साठे और असणाडे के साथ अमरावती आए थे | शाम को वाडे में आरती हुई और फिर चावडी में शेज आरती हुई और मैंने हमेशा की तरह चवर पकड़ा ।
जय साईं राम!!!
२४ जनवरी , १९१२~~~
आज सुबह मैं ज्यादा सो गया | इससे मुझे हर चीज़ में देर हुई |मुझे अपनी दिनचर्या में सब कुछ जल्दी जल्दी करना पड़ा | श्री दीक्षित को भी देर हुई ,और हर कोई इसी परेशानी में घिरा हुआ लगा | हमने साईं बाबा के दर्शन उनके बाहर जाते हुए किए , और फिर उपासनी , भीष्म और बापू साहेब जोग के साथ परमामृत का पाठ किया | उसके बाद मैं साईं बाबा के दर्शन के लिए मस्जिद गया | लक्ष्मी बाई कौजलगी हमारी परमामृत की कक्षा में उपस्थित हुई और मेरे पहुचंने के बाद मस्जिद गयी | साईं बाबा ने उन्हें अपनी सास कहा और उनके द्वारा प्रणाम करने पर हास परिहास किया | इससे मुझे ऐसा विचार आया कि बाबा ने उन्हें शिष्य रूप में स्वीकार कर लिया है | मध्यान्ह आरती सामान्य रूप से बल्कि बहुत शांती से संपन्न हो गयी | मेरे वहां से लौटने के बाद मैंने कोपरगाव के मामले दार श्री साने को बरामदे में बैठा हुआ पाया वे गावोत्थान के विस्तार कार्य और कब्रिस्तान और मरघट को हटाने के सम्बन्ध में लगान का कार्य कर रहे थे | भोजन के बाद मैंने कुछ पत्र लिखने चाहे लेकिन फिर श्री साने के साथ बातचीत करने बैठ गया | फिर श्री दीक्षित ने रामायण पडी | और बाद में साईं साहेब के दर्शन के लिए मस्जिद गया , लेकिन क्यूँ कि सभी को जल्दी ही भेज दिया गया इसी लिए उदी ली और चावड़ी के पास खड़ा हो गया | वहां में एक मुस्लिम कबीर पंथी सज्जन से मिला जो कुछ समय पहले साठे और असणाडे के साथ अमरावती आए थे | शाम को वाडे में आरती हुई और फिर चावडी में शेज आरती हुई और मैंने हमेशा की तरह चवर पकड़ा ।
जय साईं राम!!!