ॐ साईं राम
२० जनवरी १९१२-
प्रातः प्रार्थना के लिए मैं दिन चढने के पूर्व समय पर उठ गया और अपनी दिनचर्या के सभी कार्य उसी प्रकार किए जिससे यहाँ पर सभी लोगों को सुविधा हो। दिन सुहाना प्रतीत हुआ, और वह अच्छे से बीता। मैने बापसाहेब जोग, उपासनी और राम मारूति के साथ 'परमामृत' पढी। भीष्म और मेरे पुत्र बलवन्त की तबियत ठीक नहीं है। हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और फिर लौटने पर दर्शन किए। उन्होंने बैठकर सुखद रूप से बातचीत की।
अभी एक गाँव के जागीरदार आए लेकिन साईं महाराज ने उन्हें पूजा करना तो दूर, पास तक नहीं आने दिया। कई लोगों ने उसके लिए अनुनय की किन्तु सब बेकार सिद्ध हुआ। अप्पा कोते आए और उन्होंने बहुत कोशिश के बाद साईं महाराज से इतनी अनुमति ली कि वह जागीरदार मस्जिद मे आ कर धूनि के पास के स्तम्भ की पूजा कर ले पर वे उसे 'ऊदी' नहीं देंगे। मुझे लगा कि साईं महाराज क्रोधित होंगे परन्तु ऐसा नहीं हुआ और दोपहर की आरती भली प्रकार से सम्पन्न हुई। साईं महाराज ने बापू साहेब जोग को निर्देश दिया कि अब वे ही सभी समय सब आरतियाँ करेंगे। मेघा की मृत्यु से दो दिन पूर्व मैनें ऐसे ही घटनाक्रम की अपेक्षा की थी।
मध्याह्न आरती के बाद मैनें बैठ कर समाचार पत्र पढा। दीक्षित के छोटे भाई (जो अब भुज के कार्यकारी दीवान हैं), खाँडवा में वकालत करते हैं , आज सुबह आए और दोपहर को उनके बम्बई के कर्मक भी आए। दीक्षित के भाई ने उन्हें काम पर लौटने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया जो कि बेकार सिद्ध हुआ। उन्होंने साईं महाराज से भी प्रार्थना की परन्तु साईं महाराज ने निर्णय स्वयँ दीक्षित पर ही छोड दिया।
बापू साहेब जोग के भी चार अतिथि आए हैं। उनकी पत्नि की बहन के पति जो कि साँगली के मुख्य खजान्ची हैं, दिल्ली दरबार से लौटते हुए अपने पूरे परिवार के साथ यहाँ आए हैं। उनकी पत्नि बापू साहेब जोग की पत्नि को अपने साथ ले जाना चाहती हैं ,परन्तु साईं महाराज ने इसकी अनुमति नहीं दी।
हमने साईं महाराज के उस समय दर्शन किए जब वे शाम की सैर के लिए बाहर आए। बाद में वाडे में और फिर शेज आरती हुई। दीक्षित ने हमेशा की तरह रामायण पढी। आज भजन नहीं हुए क्योंकि भीष्म अस्वस्थ हैं और बलवन्त की तबियत पहले से ज़्यादा खराब है। यहाँ मोरेश्वर जनार्दन पथारे भी अपनी पत्नि के साथ आए हुए हैं। वे लकवे कि शिकार हैं और उन्होंने बहुत दुख भोगा है। वसई के जोशी आए हैं और वे यहाँ गाई जाने वाली प्रार्थनाओं की कुछ छपी हुई प्रतिलिपियाँ भी लाए हैं।
जय साईं राम!!!
२० जनवरी १९१२-
प्रातः प्रार्थना के लिए मैं दिन चढने के पूर्व समय पर उठ गया और अपनी दिनचर्या के सभी कार्य उसी प्रकार किए जिससे यहाँ पर सभी लोगों को सुविधा हो। दिन सुहाना प्रतीत हुआ, और वह अच्छे से बीता। मैने बापसाहेब जोग, उपासनी और राम मारूति के साथ 'परमामृत' पढी। भीष्म और मेरे पुत्र बलवन्त की तबियत ठीक नहीं है। हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और फिर लौटने पर दर्शन किए। उन्होंने बैठकर सुखद रूप से बातचीत की।
अभी एक गाँव के जागीरदार आए लेकिन साईं महाराज ने उन्हें पूजा करना तो दूर, पास तक नहीं आने दिया। कई लोगों ने उसके लिए अनुनय की किन्तु सब बेकार सिद्ध हुआ। अप्पा कोते आए और उन्होंने बहुत कोशिश के बाद साईं महाराज से इतनी अनुमति ली कि वह जागीरदार मस्जिद मे आ कर धूनि के पास के स्तम्भ की पूजा कर ले पर वे उसे 'ऊदी' नहीं देंगे। मुझे लगा कि साईं महाराज क्रोधित होंगे परन्तु ऐसा नहीं हुआ और दोपहर की आरती भली प्रकार से सम्पन्न हुई। साईं महाराज ने बापू साहेब जोग को निर्देश दिया कि अब वे ही सभी समय सब आरतियाँ करेंगे। मेघा की मृत्यु से दो दिन पूर्व मैनें ऐसे ही घटनाक्रम की अपेक्षा की थी।
मध्याह्न आरती के बाद मैनें बैठ कर समाचार पत्र पढा। दीक्षित के छोटे भाई (जो अब भुज के कार्यकारी दीवान हैं), खाँडवा में वकालत करते हैं , आज सुबह आए और दोपहर को उनके बम्बई के कर्मक भी आए। दीक्षित के भाई ने उन्हें काम पर लौटने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया जो कि बेकार सिद्ध हुआ। उन्होंने साईं महाराज से भी प्रार्थना की परन्तु साईं महाराज ने निर्णय स्वयँ दीक्षित पर ही छोड दिया।
बापू साहेब जोग के भी चार अतिथि आए हैं। उनकी पत्नि की बहन के पति जो कि साँगली के मुख्य खजान्ची हैं, दिल्ली दरबार से लौटते हुए अपने पूरे परिवार के साथ यहाँ आए हैं। उनकी पत्नि बापू साहेब जोग की पत्नि को अपने साथ ले जाना चाहती हैं ,परन्तु साईं महाराज ने इसकी अनुमति नहीं दी।
हमने साईं महाराज के उस समय दर्शन किए जब वे शाम की सैर के लिए बाहर आए। बाद में वाडे में और फिर शेज आरती हुई। दीक्षित ने हमेशा की तरह रामायण पढी। आज भजन नहीं हुए क्योंकि भीष्म अस्वस्थ हैं और बलवन्त की तबियत पहले से ज़्यादा खराब है। यहाँ मोरेश्वर जनार्दन पथारे भी अपनी पत्नि के साथ आए हुए हैं। वे लकवे कि शिकार हैं और उन्होंने बहुत दुख भोगा है। वसई के जोशी आए हैं और वे यहाँ गाई जाने वाली प्रार्थनाओं की कुछ छपी हुई प्रतिलिपियाँ भी लाए हैं।
जय साईं राम!!!