ॐ साईं राम!!!
१९ जनवरी १९१२-
आज का दिन अत्यँत दुखद था। मैं बहुत जल्दी उठ गया और प्रार्थना करने के बाद देखा तो भी दिन नहीं चढा था। सूरज चढने में एक घँटा बाकी था। मैं पुनः लेट गया और मुझे बापू साहेब जोग ने काँकड आरती के लिए उठाया। दीक्षित काका ने मुझे बताया कि प्रातः ४ बजे मेघा चल बसा। काँकड आरती हुई किन्तु साईं महाराज ने स्पष्ट रूप से अपना श्री मुख नहीं दिखाया। ऐसा प्रतीत हुआ कि वे आँखें नहीं खोलेंगे । ना ही उन्होंने अपनी कृपा से भरी दृष्टि भक्त जनों पर डाली।
हम लौटे और मेघा के अँतिम सँस्कार की तैयारियां की। जब मेघा के शरीर को बाहर लाया गया तभी साईं महाराज बाहर आए और उन्होंने उच्च स्वर में उसकी मृत्यु के लिए आर्तनाद किया। उनके स्वर में इतना दर्द था कि वहाँ उपस्थित सभी लोगों की आँखे भीग गई। साईं महाराज गाँव के मोड तक मेघा के शव के साथ चले, और फिर दूसरी ओर मुड गए।
मेघा के शरीर को गाँव के बडे पेड के नीचे अग्नि के हवाले किया गया। इतनी दूर से भी मेघा की मृत्यु पर रोते हुए साईं महाराज की शोकाकुल आवाज़ सुनाई दे रही थी। वे अपना हाथ इस प्रकार हिला रहे थे मानों आरती में मेघा को अँतिम बिदाई दे रहे हों। सूखी लकडियाँ बहुतायत में थीं अतः शीघ्र ही ऊँची लपटें उठने लगी। दीक्षित काका, मैं, बापू साहेब जोग, उपासनी, दादा केलकर और अन्य सभी लोग वहीं थे और मेघा की प्रशँसा कर रहे थे कि साईं महाराज ने उसके शरीर को सिर, हृदय, कँधे और पैर पर छुआ।
अँतिम सँस्कार के बाद हमें बैठ कर प्रार्थना करनी चाहिए थी, परन्तु बापू साहेब जोग आ गए और मैं उनके साथ बैठ कर बातें करने लगा। बाद में जब मैं साईं महाराज के दर्शन के लिए मस्जिद गया तब उन्होंने मुझसे पूछा कि मैंने दोपहर कैसे बिताई? मुझे यह बताते हुए बडी शर्म महसूस हुई कि मैंने बाते करने में समय गँवाया। यह मेरे लिए एक सबक था।
मुझे याद आया कि किस प्रकार साईं महाराज ने मेघा की मृत्यु की तीन दिन पूर्व भविष्यवाणी की थी-" यह मेघा की अँतिम आरती है"। मेघा मरने के समय कैसा महसूस कर रहा होगा कि उसका सेवा का समय पूर्ण हो गया। वह यह सोच कर भी आँसू बहा रहा था कि वह साठे साहेब से नहीं मिल पाया जिन्हें वह अपना गुरू समझता था, और किस प्रकार उसने निर्देश दिया साईं महाराज की गायों को कैसे चरने के लिए छोडना है। उसने अन्य कोई इच्छा नहीं प्रदर्शित की। हम सबने उसके अतिशय भक्ति से पूर्ण जीवन की प्रशँसा की। मुझे बहुत दुख हुआ कि मैं उसके लिए प्रार्थना ना कर, बेकार की बातों में उलझा रहा।
भीष्म और मेरा पुत्र बलवन्त स्वस्थ नहीं हैं, अतः भजन नहीं हुए। रात को दीक्षित काका ने रामायण पढी। गुप्ते, अपने भाई और परिवार सहित आज सुबह बम्बई रवाना हो गए।
जय साईं राम!!!
१९ जनवरी १९१२-
आज का दिन अत्यँत दुखद था। मैं बहुत जल्दी उठ गया और प्रार्थना करने के बाद देखा तो भी दिन नहीं चढा था। सूरज चढने में एक घँटा बाकी था। मैं पुनः लेट गया और मुझे बापू साहेब जोग ने काँकड आरती के लिए उठाया। दीक्षित काका ने मुझे बताया कि प्रातः ४ बजे मेघा चल बसा। काँकड आरती हुई किन्तु साईं महाराज ने स्पष्ट रूप से अपना श्री मुख नहीं दिखाया। ऐसा प्रतीत हुआ कि वे आँखें नहीं खोलेंगे । ना ही उन्होंने अपनी कृपा से भरी दृष्टि भक्त जनों पर डाली।
हम लौटे और मेघा के अँतिम सँस्कार की तैयारियां की। जब मेघा के शरीर को बाहर लाया गया तभी साईं महाराज बाहर आए और उन्होंने उच्च स्वर में उसकी मृत्यु के लिए आर्तनाद किया। उनके स्वर में इतना दर्द था कि वहाँ उपस्थित सभी लोगों की आँखे भीग गई। साईं महाराज गाँव के मोड तक मेघा के शव के साथ चले, और फिर दूसरी ओर मुड गए।
मेघा के शरीर को गाँव के बडे पेड के नीचे अग्नि के हवाले किया गया। इतनी दूर से भी मेघा की मृत्यु पर रोते हुए साईं महाराज की शोकाकुल आवाज़ सुनाई दे रही थी। वे अपना हाथ इस प्रकार हिला रहे थे मानों आरती में मेघा को अँतिम बिदाई दे रहे हों। सूखी लकडियाँ बहुतायत में थीं अतः शीघ्र ही ऊँची लपटें उठने लगी। दीक्षित काका, मैं, बापू साहेब जोग, उपासनी, दादा केलकर और अन्य सभी लोग वहीं थे और मेघा की प्रशँसा कर रहे थे कि साईं महाराज ने उसके शरीर को सिर, हृदय, कँधे और पैर पर छुआ।
अँतिम सँस्कार के बाद हमें बैठ कर प्रार्थना करनी चाहिए थी, परन्तु बापू साहेब जोग आ गए और मैं उनके साथ बैठ कर बातें करने लगा। बाद में जब मैं साईं महाराज के दर्शन के लिए मस्जिद गया तब उन्होंने मुझसे पूछा कि मैंने दोपहर कैसे बिताई? मुझे यह बताते हुए बडी शर्म महसूस हुई कि मैंने बाते करने में समय गँवाया। यह मेरे लिए एक सबक था।
मुझे याद आया कि किस प्रकार साईं महाराज ने मेघा की मृत्यु की तीन दिन पूर्व भविष्यवाणी की थी-" यह मेघा की अँतिम आरती है"। मेघा मरने के समय कैसा महसूस कर रहा होगा कि उसका सेवा का समय पूर्ण हो गया। वह यह सोच कर भी आँसू बहा रहा था कि वह साठे साहेब से नहीं मिल पाया जिन्हें वह अपना गुरू समझता था, और किस प्रकार उसने निर्देश दिया साईं महाराज की गायों को कैसे चरने के लिए छोडना है। उसने अन्य कोई इच्छा नहीं प्रदर्शित की। हम सबने उसके अतिशय भक्ति से पूर्ण जीवन की प्रशँसा की। मुझे बहुत दुख हुआ कि मैं उसके लिए प्रार्थना ना कर, बेकार की बातों में उलझा रहा।
भीष्म और मेरा पुत्र बलवन्त स्वस्थ नहीं हैं, अतः भजन नहीं हुए। रात को दीक्षित काका ने रामायण पढी। गुप्ते, अपने भाई और परिवार सहित आज सुबह बम्बई रवाना हो गए।
जय साईं राम!!!