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Tuesday, April 10, 2012

ॐ साईं राम


१४ जनवरी १९१२-


प्रातः जल्दी उठा, प्रार्थना की और बापू साहेब जोग तथा राम मारूति के साथ बैठ कर रँगनाथी योग वशिष्ठ का पठन किया। साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन करते हुए भी पठन जारी रखा। जब बाबा वापस आए तब उनके दर्शन के लिए मस्जिद गया, परन्तु वे स्नान की तैयारी कर रहे थे, अतः मैं लौट आया और दो पत्र लिख कर पुनः मस्जिद गया।
साईं महाराज मेरे प्रति अत्यंत कृपालु थे, उन्होंने मुझे और बलवन्त को बापू साहेब जोग द्वारा लाया हुआ तिल गुड दिया।

दोपहर की आरती थोडी देर से हुई क्योंकि मेधा की तबियत अभी भी ठीक नहीं है और आज तिल सक्रान्ति होने के कारण 'परोस' (भक्तों के द्वारा लाया गया भोग का थाल) में भी कुछ देर हुई। जब तक हमने वापिस आ कर भोजन किया तब तक ४ बज गए थे। दीक्षित ने कुछ देर रामायण पढी किन्तु हम पाठ में आगे नहीं बढ पाए। पुनः मस्जिद गया परन्तु साईं महाराज किसी को प्रवेश की अनुमति नहीं दे रहे थे, अतः मैं बापू साहेब के घर की तरफ चल पडा । सन्ध्या के नमस्कार के लिए समय पर पहुँच गया। खाँडवा के तहसीलदार अभी यहीं हैं, और इस स्थान की दिनचर्या के अनुरूप धीरे धीरे ढल रहे हैं।


एक सज्जन श्री गुप्ते अपने भाई और परिवार के साथ आए हैं। उन्होंने कहा कि वे थाने में रहने वाले मेरे एक मित्र श्री बाबा गुप्ते के दूर के रिश्तेदार हैं। मैंने उनके साथ बैठकर कुछ देर बातचीत की। रात को शेज आरती , भीष्म के भजन और दीक्षित की रामायण हुई। हम सभी ने सक्रान्ति भी मनाई।


जय साईं राम