Om Sai Ram!!!
ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं
उदी और डाँक्टर पिल्ले~~~
डाँक्टर पिल्ले बाब के एक निष्ठ भक्त थे । इसी कारण वे उन पर अधिक स्नेह रखते थे और उन्हें सदा भाऊ कहकर पुकारते तथा हर समय उनसे वार्तालाप करके प्रत्येक विषय में परामर्श भी लिया करते थे । उनकी सदैव यही इच्छा रहती कि वे बाबा के समीप ही बने रहें । एक बार डाँक्टर पिल्ले को नासूर हो गया । वे काकासाहेब दीक्षित से बोले कि मुझे असहृ पीड़ा हो रही है और मैं अब इस जीवन से मृत्यु को अधिक क्षेयस्कर समझता हूँ । मुझे ज्ञात है कि इसका मुख्य कराण मेरे पूर्व जन्मों के कर्म ही है । जाकर बाबा से कहो कि वे मेरी यह पीड़ा अब दूर करें । मैं अपने पिछले जन्म के कर्मों को अगले दस जन्मों में भोगने को तैयार हूँ । तब काका दीक्षित ने बाबा के पास जाकर उनकी प्रार्थना सुनाई । साई तो दया के अवतार ही है । वे अपने भक्तों के कष्ट कैसे देख सकते थे । उनकी प्रार्थना सुनकर उन्हें भी दया आ गई और उन्होंने दीक्षित से कहा कि पिल्ले से जाकर कहो कि घबड़ाने की ऐसी कोई बात नहीं । कर्मों का फल दस जन्मों में क्यों भुगतना पड़ेगा । केवल दस रदिनों में ही गत जन्मों के कर्मफल समाप्त हो जायेंगे । मैं तो यहाँ तुम्हें धार्मिक और आध्यात्मिक कल्याण देने के लिये ही बैठा हूँ । प्राण त्यागने की इच्छा कदापि न करनी चाहिये । जाओ, किसी की पीठ पर लादकर उन्हें यहाँ ले आओ, मैं सदा के लिये उनका कष्टों से छुटाकारा कर दूँगा ।
तब उसी स्थिति में पिल्ले को वहाँ लाया गया । बाबाने अपने दाहिनी ओर उनके सिरहाने अपनी गादी देकर सुख से लिटाकर कहा कि इसकी मुख्य औषधि तो यह है कि पिछले जन्मों के कर्मफल को अवश्य ही भोग लेना चाहिये, ताकि उनसे सदैव के लिये छुटकारा हो जाये । हमारे कर्म ही सुखःदुख के कारण होते है, इसलिये जैसी भी परिस्थित आये, उसी में सन्तोष करना चाहिये । अल्ला ही सब को फल देने वाला है और वही सबका रक्षण करता है । ऐसा विचार कर सदैव उनका ही स्मरण करो । वे ही तुम्हारी चिन्ता दूर करेंगे । तन-मन-धन और वचन द्घारा उनकी अनन्य शरण में जाओ, फिर देखो कि वे क्या करते है । डाँक्टर पिल्ले ने कहा कि नानासाहेब ने मेरे पैर में एक पट्टी बाँधी है, परन्तु मुझे उससे कोई लाभ नहीं पहुँचा । नाना तो मूर्ख है बाबा ने कहा, वह पट्टी हटाओ, नहीं तो मर जाओगे । थोड़ी देर में ही एक कौआ आयेगा और वह अपनी चोंच इसमें मारेगा । तभी तुम शीघ्र अच्छे हो जाओगे ।
जब यह वार्तालाप हो ही रहा ता कि उसी समय अब्दुल, जो मसजिद में झाडू लगाने तथा दिया-बत्ती आदि स्वच्छ करने का कार्य करता था, वहाँ आया । जब वह दिया-बत्ती स्वच्छ कर रहा था तो अचानकर ही उसका पैर डाँक्टर पिल्ले के नासूर वाले पर पर पड़ा । पैर तो सूजा हुआ था ही और फिर अब्दुल के पैर से दबा तो उसमें से नासूर के सात कीड़े बाहर निकल पड़े । कष्ट असहनीय हो गया और डाँक्टर पिल्ले उच्च स्वर में चिल्ला पड़े । किन्तु कुछ काल के ही पश्चात् वे शांत हो कर गीत गाने लगे । तब बाबा ने कहा, देखा, भाऊ अब अच्छा हो गया है और गाना गा रहा है । गाने के बोल थे :
करम कर मेरे हाल पर तू करीम ।
तेरा नाम रहमान है और रहीम ।
तू ही दोनों आलम का सुलतान है ।
जहाँ में नुमायाँ तेरी शान है ।
फना होने वाला है सब कारोबार ।
रहे नूर तेरा सदा आशकार ।
तू आशिक का हरदम मददगार है ।
फिर डाँक्टर पिल्ले ने पूछा कि वह कौआ कब आयेगा और चोंच मारेगा । बाबा ने कहा अरे, क्या तुमने कौए को नहीं देखा । अब वह नहीं आयेगा । अब्दुल, जिसने तुम्हारा पैर दबाया, वही कौआ था । उसने चोंच मारकर नासूर को हटा दिया । वह अब पुनः क्यों आयेगा । अब जाकर वाड़े में विश्राम करो । तुम शीघ्र ही स्वस्थ हो जाओगे ।
उदी लगाने और पानी के संग पीने से बिना किसी औषधि या चिकित्सा के वे दस दोनों में ही नीरोग हो गये, जैसा कि बाबा ने उनसे कहा था ।
डाँक्टर पिल्ले बाब के एक निष्ठ भक्त थे । इसी कारण वे उन पर अधिक स्नेह रखते थे और उन्हें सदा भाऊ कहकर पुकारते तथा हर समय उनसे वार्तालाप करके प्रत्येक विषय में परामर्श भी लिया करते थे । उनकी सदैव यही इच्छा रहती कि वे बाबा के समीप ही बने रहें । एक बार डाँक्टर पिल्ले को नासूर हो गया । वे काकासाहेब दीक्षित से बोले कि मुझे असहृ पीड़ा हो रही है और मैं अब इस जीवन से मृत्यु को अधिक क्षेयस्कर समझता हूँ । मुझे ज्ञात है कि इसका मुख्य कराण मेरे पूर्व जन्मों के कर्म ही है । जाकर बाबा से कहो कि वे मेरी यह पीड़ा अब दूर करें । मैं अपने पिछले जन्म के कर्मों को अगले दस जन्मों में भोगने को तैयार हूँ । तब काका दीक्षित ने बाबा के पास जाकर उनकी प्रार्थना सुनाई । साई तो दया के अवतार ही है । वे अपने भक्तों के कष्ट कैसे देख सकते थे । उनकी प्रार्थना सुनकर उन्हें भी दया आ गई और उन्होंने दीक्षित से कहा कि पिल्ले से जाकर कहो कि घबड़ाने की ऐसी कोई बात नहीं । कर्मों का फल दस जन्मों में क्यों भुगतना पड़ेगा । केवल दस रदिनों में ही गत जन्मों के कर्मफल समाप्त हो जायेंगे । मैं तो यहाँ तुम्हें धार्मिक और आध्यात्मिक कल्याण देने के लिये ही बैठा हूँ । प्राण त्यागने की इच्छा कदापि न करनी चाहिये । जाओ, किसी की पीठ पर लादकर उन्हें यहाँ ले आओ, मैं सदा के लिये उनका कष्टों से छुटाकारा कर दूँगा ।
तब उसी स्थिति में पिल्ले को वहाँ लाया गया । बाबाने अपने दाहिनी ओर उनके सिरहाने अपनी गादी देकर सुख से लिटाकर कहा कि इसकी मुख्य औषधि तो यह है कि पिछले जन्मों के कर्मफल को अवश्य ही भोग लेना चाहिये, ताकि उनसे सदैव के लिये छुटकारा हो जाये । हमारे कर्म ही सुखःदुख के कारण होते है, इसलिये जैसी भी परिस्थित आये, उसी में सन्तोष करना चाहिये । अल्ला ही सब को फल देने वाला है और वही सबका रक्षण करता है । ऐसा विचार कर सदैव उनका ही स्मरण करो । वे ही तुम्हारी चिन्ता दूर करेंगे । तन-मन-धन और वचन द्घारा उनकी अनन्य शरण में जाओ, फिर देखो कि वे क्या करते है । डाँक्टर पिल्ले ने कहा कि नानासाहेब ने मेरे पैर में एक पट्टी बाँधी है, परन्तु मुझे उससे कोई लाभ नहीं पहुँचा । नाना तो मूर्ख है बाबा ने कहा, वह पट्टी हटाओ, नहीं तो मर जाओगे । थोड़ी देर में ही एक कौआ आयेगा और वह अपनी चोंच इसमें मारेगा । तभी तुम शीघ्र अच्छे हो जाओगे ।
जब यह वार्तालाप हो ही रहा ता कि उसी समय अब्दुल, जो मसजिद में झाडू लगाने तथा दिया-बत्ती आदि स्वच्छ करने का कार्य करता था, वहाँ आया । जब वह दिया-बत्ती स्वच्छ कर रहा था तो अचानकर ही उसका पैर डाँक्टर पिल्ले के नासूर वाले पर पर पड़ा । पैर तो सूजा हुआ था ही और फिर अब्दुल के पैर से दबा तो उसमें से नासूर के सात कीड़े बाहर निकल पड़े । कष्ट असहनीय हो गया और डाँक्टर पिल्ले उच्च स्वर में चिल्ला पड़े । किन्तु कुछ काल के ही पश्चात् वे शांत हो कर गीत गाने लगे । तब बाबा ने कहा, देखा, भाऊ अब अच्छा हो गया है और गाना गा रहा है । गाने के बोल थे :
करम कर मेरे हाल पर तू करीम ।
तेरा नाम रहमान है और रहीम ।
तू ही दोनों आलम का सुलतान है ।
जहाँ में नुमायाँ तेरी शान है ।
फना होने वाला है सब कारोबार ।
रहे नूर तेरा सदा आशकार ।
तू आशिक का हरदम मददगार है ।
फिर डाँक्टर पिल्ले ने पूछा कि वह कौआ कब आयेगा और चोंच मारेगा । बाबा ने कहा अरे, क्या तुमने कौए को नहीं देखा । अब वह नहीं आयेगा । अब्दुल, जिसने तुम्हारा पैर दबाया, वही कौआ था । उसने चोंच मारकर नासूर को हटा दिया । वह अब पुनः क्यों आयेगा । अब जाकर वाड़े में विश्राम करो । तुम शीघ्र ही स्वस्थ हो जाओगे ।
उदी लगाने और पानी के संग पीने से बिना किसी औषधि या चिकित्सा के वे दस दोनों में ही नीरोग हो गये, जैसा कि बाबा ने उनसे कहा था ।
Jai Sai Ram!!!