Khaparde's Shirdi Diary~~~खापर्डे शिरडी डायरी~~~
१६ दिसम्बर , १९११ ~~~पता चला कि मुझे ज़बर्दस्त सर्दी लग गई है | मैं काकड़ आरती के लिए समय पर नहीं उठ सका | मैं सुबह तीन बजे उठा और फिर देर तक सोता रहा | प्रार्थना के बाद मैं दरवेश साहेब फाल्के के साथ बातचीत करने बैठ गया , जिन्हें लोग बिना सोचे - विचारे हाजी साहेब या हज़रत कहते हैं | वे हिन्दू परम्परा के अनुसार एक कर्मयोगी कहे जा सकते हैं | और उनके पास सुनाने के लिए अनेकों किस्से - कहानियाँ हैं | मैंने साईं महाराज के बाहर जाते हुए और बाद में जब वे मस्जिद लौट रहे थे तब दर्शन किए | वे अत्यंत आनन्द भाव में थे , और बातें व हंसी मज़ाक करने बैठे | आरती के बाद मैं अपने ठिकाने पर लौटा , खाना खाया और थोड़ी देर के लिए लेट गया लेकिन सो नहीं पाया | अमरावती से उन्होंने मुझे अमृत बाजार पत्रिका के अलावा बंबई एडवोकेट के दो अंक भी भेजे , इसलिए पड़ने के लिए काफी सामग्री है | सेशन केस के प्रस्ताव के बारे में एक तार भी मिला | तीन दिन पहले वर्धा में एक केस की पेशकश के बारे में एक तार था | मैंने अस्वीकार कर दिया क्योंकि साईं महाराज ने लौटने की अनुमति नहीं दी | आज के तार के बारे मैं भी वही नतीज़ा हुआ | माधव राव देशपांडे ने मेरे लिए अनुमति माँगी , और साईं महाराज ने कहा कि मैं परसों या अब से एक महीने बाद जा सकता हूँ | इससे मामा तय हो गया हैं | मैंने उन्हें सामान्य दिनों की तरह चावडी के सामने नमन किया और आरती के बाद हम वाड़े में भीष्म के भजन सुनने बैठे | आज नए आने वालों में से श्री हाटे हैं जिन्होंने एल.एक.एण्ड.एस. की परीक्षा दी है | वे बहुत ही भले नवयुवक हैं | उनके पिता जी अमरेली में जज थे और बाद में पलिताना के दीवान बने , मेरे विचार से मैं उनके चाचा को जानता हूँ |
जय साईं राम!!!