Khaparde's Shirdi Diary~~~खापर्डे शिरडी डायरी~~~
१२ दिसम्बर , १९११ ~~~मैं और भीष्म यह सोचकर जल्दी उठ बैठे , कि काकड़ आरती शुरू होने वाली है लेकिन हम लोग करीब एक घंटा आगे थे | बाद में मेघा आया और हम आरती में शामिल हुए | फिर मैंने प्रार्थना की और साईं महाराज के बाहर जाने की प्रतीक्षा में बैठ गया |मैंने उनके तब दर्शन किए और वापस लौटने के बाद भी | मैंने इसके बीच का समय गोखले के गीत सुनने में बिता या | वह अच्छा गाता था | आज नाश्ता देर से हुआ क्योकि मेधा को बेल पत्र नहीं मिल सके और उसे उनके लिए बहुत दूर जाना पड़ा | इसलिए दोपहर की पूजा करीब डेड़ बजे तक समाप्त नहीं हुई | साईं महाराज बहुत प्रसन्न भाव में थे और बैठे हुए बातचीत करते और हँसते रहे | नास्ते के बाद मैं कुछ देर लेट गया और फिर अपने लोगों के साथ मस्जिद गया | साईं महाराज आनन्द भाव में थे और उन्होंने एक कहानी सुनाई | पास पड़े हुए एक फल को उठा कर उन्होंने मुझसे पूछा कि , यह कितने फल पैदा कर सकता है | मैंने उत्तर दिया कि , उतने हज़ारों बार जितने बीज इसके अन्दर है | वे बड़ी मधुरता से मुसुराएं और आगे बोले कि , ये तो अपने ही नियम का पालन करता है | उन्होंने यह भी बताया कि , किस तरह वहां एक बहुत भली और शुद्ध आचरण वाली लडकी थी , किस तरह उसने उनकी सेवा की और उन्नति की | हमें लगभग सूर्यास्त के समय ' उदी ' मिली और साईं महाराज के दर्शन के लिए , जब वे शाम की सैर के लिए बाहर निकलते है , हम चावड़ी के सामने खड़े हो गए | हमने उनके दर्शन किए और वापस आकर भीष्म गोखले , भाई और एक नवयुवक दीक्षित के भजन सुनाने बैठ गए |
माधव राव देशपांडे और उपासनी उपस्थित थे | शाम बहुत सुखद बीती |
जय साईं राम!!!