ॐ साईं राम!!!
Khaparde's Shirdi Diary~खापर्डे शिरडी डायरी~
७ दिसम्बर , १९१०~~~
सुबह मेरे प्रार्थना करने के बाद श्री बालासाहेब भाते , जो एक निव्रत्त मामलेदार हैं , वाड़े में आए और हमसे बातचीत करने बैठे | वे यहाँ पिछले कुछ समय से रह रहे हैं और उनके चेहरे प् एक अदभुत शान्ति है | हमने साईं महाराज के बाहर जाते हुए दर्शन किए और दोपहर में उनके पास मस्जिद गए | मैं , बाबासाहेब सहस्त्रबुद्धे , मेरा पुत्र बाबा , बापूसाहेब जोग और उनके सब बच्चे इक्कठे गए और वहाँ बैठे | साईं माराज बड़े ही विनोदी भाव में दिखाई पड़ रहे थे | उन्होंने बाबासाहेब सहस्त्रबुद्धे से पूछा कि क्या वे बंबई से आए हैं |बाबासाहेब सहस्त्रबुद्धे ने इसका उत्तर "हाँ " में दिया | बाबासाहेब सहस्त्रबुद्धे से फिर पूछा गया कि , क्या वे बंबई वापस जाएँगे | उन्होंने फिर से इस बात का उत्तर ' हाँ ' में दिया , लेकिन ये भी कहा कि वे वहाँ रहने के बारे में निश्चित नहीं है क्यों कि यह परिस्थितियों पर निर्भर करे गा | साईं महाराज इस पर बोले - ' हाँ , कि ये सच है कि तुम्हारे हाथ में बहुत सारे काम हैं , अभी और भी करने हैं | तुम्हें यहाँ करीब चार- पाँच दिन रहना चाहिए | तुम यहीं रहोगे , यह तुम खुद देख लेना | जो अनुभव होते हैं वे सच हैं | वे काल्पनिक नहीं हैं | मैं यहाँ हज़ारों साल पहले था |' फिर साईं महाज मेरी ओर मुड़े और कोइ नई बात के बारे में बोलने लगे | वे बोले - " ये दुनिया भी मजेदार है , सभी मेरी प्रजा है , मैं सबको सामान रूप से देखता हूँ , लेकिन कुछ चोर बन जाते है , और मैं उनके लिए क्या कर सकता हूँ ? जो लोग खुद मौत के नज़दीक है वे दूसरों की मौत चाहते है और उसकी तैयारी करते हैं |ऐसे लोगों ने मुझे बहुत नाराज़ किया | उन्होंने मुझे अच्छी - खासी चोट पहुँचाई , लेकिन मैंने कुछ नहीं कहाँ | मैं चुप रहा | ईश्वर बहुत महान है उसके अधिकार सब जगह हैं वे सब से शक्तिशाली है | हर किसी को उसी स्थिति में खुश रहना चाहिए जिसमें ईश्वर उसको रखता है | लेकिन मैं बहुत सशक्त हूँ | मैं यहाँ आठ-दस हज़ार साल पहले था | '' मेरे पाथर ने उनसे कहानी सुनाने के लिए कहा जैसी उन्होंने पहले सुनाई थी | साईं महाराज ने पूछा कौनसी कहानी थी | मेरे पाथर ने जवाब दिया कि वह कहानी थीं भाईयों के बारे में थी जो एक मस्जिद में गए | उनमें से एक ने बाहर जा कर भिक्षा माँगनी चाही | बाकी भाई उसे यह करने देना नहीं चाहते थे , क्योंकि भिक्षा में माँगा हुआ खाना अशुद्ध होता और उनका चौका दूषित कर देता | तीसरे भाई ने उत्तर दिया कि अगर वह भोजन उनका चौका खराब कर दे तो उसकी टाँगे काट देनी चाहिए , वगैरह | साईं महाराज बोले वह बहुत अच्छी कहानी थी | वे एक और सुनाएँगे जब उन्हें सुनाने का मन करेगा | मेरे बेटे ने कहा कि उसे नहीं मालूम कि ऐसा कब होगा | और अगर उनका मन हमारे जाने के बाद करे तो उसका क्या फ़ायदा ? इस पर साईं साहेब ने उससे कहा कि वह भरोसा रखे कि कहानी उसके जाने से पहले सुनाई जाएगी | मैंने उनसे पूछा कि वे कल आराज़ क्यों थे , और उन्होंने जवाब दिया कि वे नाराज़ थे क्योंकि तेली ने कुछ कहा था | तब मैंने पूछा कि आज खाना परोसने के समय वे ऐसा कहते हुए क्यों चिल्लाए - " मत मै , मत मार ", उन्हों कहा कि वे इसलिए चिल्लाए थे क्योंकि पाटिल के परिवार वाले आपस में झगड़ रहे थे | साईं साहेब ने ऐसी अनोखी मधुरता से ये बात कही और वे ऐसे असाधारण ओज के साथ के बार मुस्कुराए कि यह बातचीत मेरी स्मृति में हमेशा अंकित रहेगी | बदकिस्मती से तभी कुछ और लोग आ गए और बातचीत बीच में ही रुक गई | हमें इस बात का भुत अफसोस हुआ लेकिन कुछ हो नहीं सकता था | हम इस बारे में बात करते हुए लौट आए | तात्यासाहेब नूलकर बातचीत के पहले हिस्से में मौजूद नहीं थे , लेकिन बाद में आए | बालासाहेब भाटे शाम को आए और हम सब फिर बात करने बैठे |
जय साईं राम!!!